कोरोना वायरस से उपचार का अत्यंत प्रभावशाली उपाय - प्रतिदिन यज्ञ

यज्ञ कोरोना वायरस या किसी भी अन्य प्रकार के विषाणुओं से बचाव और प्रभावित होने पर उपचार का अत्यंत प्रभावशाली उपाय है। इससे वातावरण शुद्ध होता है और जीवनी शक्ति बढ़ती है। अतः प्रतिदिन यज्ञ में, गाय के शुद्ध घी के साथ, न्यूनतम पाँच आहुतियाँ गायत्री महामंत्र और तीन आहुतियाँ महामृत्युञ्ज मंत्र की अवश्य दें ।
निम्न औषधियों को समान मात्रा में मिलाकर विशेष हवन सामग्री तैयार की जा सकती है।
अगर, तगर, गिलोय, तुलसी, जटामांसी, हाउबर, नीम की पत्ती, नीम की छाल, कालमेघ, जायफल, जावित्री, आज्ञाघास, कड़वी बच, नागरमोथा, सुगंधबाला, लोंग, भीमसेनी कपूर, देवदारु, शीतल चीनी, सफेद चंदन, दारू हल्दी। सभी वस्तुएँ आसानी से बाजार में उपलब्ध हो जाती हैं।
हमारे ऋषियों ने महामृत्युंजय मंत्र को मृत संजीवनी महामंत्र कहा है। इसके जप से स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और अकाल मृत्यु का डर समाप्त हो जाता है । इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा भी राम मनोहर लोहिया अस्पताल, दिल्‍ली के मरीजों पर इसके प्रभाव के लिए शोधकार्य हुए हैं और अत्यंत प्रभावशाली परिणाम मिले हैं। सभी लोगों से न्यूनतम एक माला महामृत्युञ्ज मंत्र जप करने का अनुरोध है |
हवन कुण्ड, हवन सामग्री, बलि वैश्वा किट इत्यादि ऑनलाइन (www.awgpstore.com) घर पर ही शांतिकुंज से प्राप्त करने की व्यवस्था है.

वर्तमान कोरोना वायरस रूपी महामारी के निवारणार्थ आध्यात्मिक अनुष्ठान एवं राहत सेवा कार्य

कोरोना के प्रकोप को कम करने उद्देश्य से करोड़ों गायत्री साधक अपने-अपने घरों में ही जप-तप अनुष्ठान के माध्यम से एक विशेष आध्यात्मिक प्रयास कर रहे है । वरिष्ठ परिजनों एवं श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या जी द्वारा ऑनलाइन सुबह शाम स्वाध्याय एवं मार्गदर्शन का क्रम चल रहा है ।

सेवा के क्रम में शांतिकुंज का आपदा प्रबंधन विभाग ने सक्रियता के साथ राज्य सरकार से मिलकर जरूरत मंदों को भोजन, आवश्यक सामग्री इत्यादि पहुचाने का क्रम एवं जागरूकता आभियान प्रारंभ कर दिया है । 3000 से भी अधिक भोजन पैकेट रोज वितरित किये जा रहे है - View Details.

सभी शक्तिपीठ एवं केन्द्रों से जीजी एवं श्रद्धेय द्वारा सेवा कार्य रूप भोजन बनाना एवं सरकार की मदद से जरूरत मंदों तक इसे पहुचाने का अनुरोध किया गया है सम्बंधित पत्र यहाँ देखे
सरकार द्वारा चलने वाले राहत कार्यो को गति प्रदान करते हुए शांतिकुंज द्वारा मुख्यमंत्री राहत कोश में एक करोड़ रु की राशी अनुदान स्वरुप दी गयी ।

परिजन इस कार्य में सहयोग हेतु राशी ऑनलाइन या अकाउंट ट्रान्सफर द्वारा जमा कर सकते है. जीजी का पत्र

विषाणुओं को मारने की ही बात न सोची जाय

अखंड ज्योति दिसंबर १९७३ का यह लेख हमें covid-19 जैसे वायरस को समझने में मदद करेगा 
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राकफैलर फाउण्डेशन तथा इण्डियन कोन्सिल आफ मेडिसिन रिसर्च ने पिछले दिनों विषाणुओं की आकृति-प्रकृति के सम्बन्ध में तो सुविस्तृत लेखा-जोखा तैयार किया है, पर वे भी ऐसा कुछ ठोस उपाय नहीं निकाल सके कि किस प्रकार इन रक्त बीजों से छुटकारा पाया जाय। क्योंकि उनके आक्रमण ऐसे छद्म और इतने तीव्र होते हैं कि जब तक रोक-थाम का अवसर आवे-तब तक तो वे अपना तीन चौथाई काम पूरा कर लेते हैं। 
विषाणुओं की खोजबीन न केवल भारत में, वरन् समस्त संसार में हो रही है। किन्तु अब तक जो परिणाम निकले हैं वे बहुत उत्साहवर्धक नहीं है। क्योंकि मारण प्रयोग की सार्थकता पूर्णतया संदिग्ध होती चली जा रही है। इसका एक कारण तो यह है कि रोग कीटकों के साथ-साथ जीवन-रक्षक स्वास्थ्य कीटाणु भी मरते हैं, ............
विषाणुओं की भयंकरता और उनकी हानि कम नहीं हैं। उनके निराकरण का उपाय किया जाना चाहिए। पर वह अति उत्साह भरा और एकांकी नहीं होना चाहिए। मारक औषधियों की उल्टी प्रतिक्रिया को ध्यान में रखते हुए उनका प्रयोग फूँक-फूँक कर करने में ही कल्याण है।
गुत्थी का हल आज निकल या कल, संयम और सादगी की अध्यात्म परम्परा को जीवन में स्थान देने पर ही निकलेगा। विषाणुओं का मारण जितना उचित है, उससे लाख गुना आवश्यक यह है कि हम समझदारी ओर सरलता की सौम्य जीवन पद्धति अपनायें। साथ ही मल संचय की उस गुँजाइश की जड़ उखाड़ने में निरन्तर प्रवृत्त रहें, जिसके कारण कि इन विषाणुओं की उत्पत्ति होती है।

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संरक्षक संस्थापक

एक सन्त, युगपुरुष, दृष्टा, सुधारक आचार्य श्रीराम शर्मा जिन्होने युग निर्माण योजना आन्दोलन का सूत्रपात किया। जिन्होने तपस्या का अनुशासित जीवन जीते हुए आध्यात्मिक श्रेष्ठता प्राप्त कर समस्त मानवता को प्रेरित किया । जिन्होने बदलते समय के अनुसार हमारे दृष्टिकोण को, विचारों को, संवेदनशीलता का विस्तार करने के लिये, जीवन को बदलने के लिये सत्साहित्य का सृजन किया ।

परम पूज्य गुरुदेव एक ऐसे साधक, द्रष्टा, विचारक रहे हैं, जिनको व्यक्ति, परिवार, समाज और देश-विदेश में घट रही अथवा घटने वाली घटनाओं की तह में जाकर उन्हें आर-पार देखने की अलौकिक सूक्ष्म दृष्टि प्राप्त थी। जो दृश्य-अदृश्य जगत् की विविध परिस्थितियों को निमिष मात्र में भाँपकर उन्हें नियन्त्रित कर लेते थे।

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वास्तव में दुर्लभ और व्यावहारिक लेखन गायत्री मंत्र, साधना और यज्ञ विज्ञान पर .

अद्वितीय आंदोलनविचार क्रांति के पहले ही मुद्दे के साथ "अखण्ड ज्योति " 1939 में पहली पुस्तक में उन्होंने लिखा था "में क्या हूँ ? ", वास्तविक में एक उपनिषद स्तर के काम आत्म के ज्ञान पर ।

पूरा ग्रंथ, हिन्दी, पूरे वैदिक इंजील (वेद, उपनिषद, दर्शन , पुराण और स्मृति की )

प्रमुख पुस्तकालयों द्वारा मान्यता : इन्क्लूडिंग आई .आई.टी मुम्बई , स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेनसिलवेनिया , सिडनी यूनिवर्सिटी ,वेस्टर्न रेलवे हिंदी डिवीज़न -मुम्बई , भंडारकर ओरिएण्टल रिसर्च इंस्टिट्यूट -पुणे

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