हरिद्वार के सप्त सरोवर क्षेत्र में ऋषिकेश रोड पर स्टेशन से ६ कि.मी. दूर महर्षि विश्वामित्र की तपःस्थली पर युगऋषि परम पूज्य आचार्य पं.श्रीराम शर्मा एवं वंदनीया भगवती देवी शर्मा की प्रचण्ड तप-साधना से अनुप्राणित विशाल, दर्शनीय, जीवंत तीर्थ। d
स्थापनाएँ-युगतीर्थ में दिव्य प्राण ऊर्जा का प्रचण्ड प्रवाह बनाए रखने के लिये स्थापित है ।
1. हजारों करोड़ गायत्री मंत्र जप से अनुप्राणित 'अखण्ड दीप' ।
2. हजारों नैष्ठिक साधकों द्वारा नित्य आहुतियों से पुष्ट 'अखण्ड अग्नि' ।
3. युगशक्ति गायत्री का प्राणवान मंदिर, दिव्य जीवन विद्या के मूर्धन्य 'सप्त ऋषि,' तीर्थ चेतना के श्रोत 'प्रखर प्रज्ञा-सजल श्रद्धा' के प्रतीक ।
4. आध्यात्मिक ऊर्जा के सनातन केन्द्र देवात्मा हिमालय का भव्य मंदिर, मनुष्य में देवत्व जगाने वाले सभी धर्म-सम्प्रदाय के पवित्र प्रतीक चिह्न, जड़ीबूटियों की दुर्लभ वाटिका और गायत्री परिवार की स्थापना से लेकर अब तक की गतिविधियों पर आधारित प्रदर्शनी आदि ।

प्रवृत्तियाँ - युगतीर्थ, आध्यात्मिक सैनीटोरियम कहे जाने वाले इस आश्रम में व्यक्ति, परिवार एवं समाज निर्माण की अनेक प्रभावशाली गतिविधियाँ नियमित रूप से चलती रहती हैं । जैसे-जीवन जीने की कला के नौ दिवसीय सत्र (प्रतिमाह तीन)
लोकसेवियों के युग शिल्पी सत्र (प्रतिमास १ से २९ तारीख तक) । ग्राम्य विकास प्रशिक्षण, कुटीर उद्योग प्रशिक्षण, नैतिक शिक्षा हेतु शिक्षण-प्रशिक्षण, ग्राम स्वास्थ्य सेवियों के विशेष सत्र, विविध प्रशासनिक अधिकारियों के लिये व्यक्तित्व परिष्कार सत्र आदि ।

सभी प्रशिक्षण निःशुल्क हैं । देश-विदेश में स्थापित हजारों गायत्री शक्तिपीठों, प्रज्ञापीठों का मार्गदर्शन केन्द्र पत्राचार कक्ष साधकों, लोकसेवियों के लिये प्रेरणा-परामर्श की व्यवस्था है । सैकड़ों उच्च शिक्षित सेवाभावी स्वयं सेवक मात्र निर्वाह राशि लेकर सारी गतिविधियों को संचालित करते हैं ।[...more...]".


"ऋषियों की आत्माओं को सूक्ष्म शरीर में हिमालय में रहने वाले, तलब किया जा करने के लिए लागू किया और शांतिकुंज में यहां स्थापित किया था। विभिन्न देवताओं के मंदिरों में विभिन्न स्थानों पर बनाया गया है, लेकिन एक ही स्थान पर सभी ऋषियों  की आत्माओं के रहने वाले स्थापना कहीं और नहीं पाया जा सकता। यह अभी भी पता चला है कि ऋषि की न केवल मात्र मूर्तियों यहां प्रतीकात्मक पूजा लेकिन के लिए स्थापित किया गया और अधिक महत्वपूर्ण है किसी को भी पर्याप्त रूप से शुद्ध और ठीक-देखते उनके विशेष ऊर्जा की मजबूत कंपन महसूस कर सकते हैं। इस प्रकार, शांतिकुंज और ब्रह्मवर्चस  सभी ऋषि की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करते हैं।"  

-पंडित श्रीराम  शर्मा  आचार्य (my life, its legacy and message)


कुछ विशिष्ट धाराएँ


शान्तिकुञ्ज व्यक्तित्व गढ़ने की टकसाल है। जाति, संप्रदाय, धर्म, पंथ आदि संकीर्णताओं से ऊपर उठकर लोगों को यह जीवन जीने की कला सिखाता है। उन्हें आत्मवादी जीवन जीने की प्रेरणा देता है। हर धर्म-वर्ग के लोग यहाँ आकर साधना करते हैं, शिक्षण लेले हैं।

यहाँ शरीर, मन व अंत:करण को स्वस्थ, समुन्नत बनाने के लिए अद्वितीय अनुकूल वातावरण, मार्गदर्शन एवं शक्ति-अनुदान मिलते हैं।

शान्तिकुञ्ज व्यक्ति को अंध विश्वास, मूढ़मान्यता, भाग्यवाद आदि से उठकर कर्मवादी बनने की प्रेरणा देता है। हर बात को तर्क-तथ्य और प्रमाण की कसौटी पर कसते हुए उसे विवेक पूर्वक अपनाने की प्रेरणा यहाँ दी जाती है।

शान्तिकुञ्ज प्राचीन भारतीय परंपरा के अनुरुप सयुंक्त परिवारों के प्रचलन को प्रोत्साहित करने वाला आदर्श केन्द्र है। यह विशाल आश्रम स्वयंसेवा से ही संचालित है। योग्यता के अनुसार कार्य और आवश्यकता के अनुसार साधन यहाँ रहने वाले परिवारीजनों को उपलब्ध कराये जाते हैं। सभी परस्पर हितों का ध्यान रखते हैं।

दुनिया के जो विषय हैं, वह यहाँ हैं ही नहीं। दुनिया पद, पैसा और प्रतिष्ठा के लिए कार्य करती है, शान्तिकुञ्ज सेवा और परोपकार की भावना को प्रोत्साहित करता है।

गायत्री चेतना (युगचेतना) का विश्वयापी विस्तार यहाँ से हो रहा है। पूरे विश्व में गायत्री परिवार द्वारा स्थापित ६००० से अधिक शक्तिपीठ-शाखाएँ हैं, जो यहाँ की प्रेरणा और मार्गदर्शन में जनजागरण व अध्यात्म के पुनर्जीवन के कार्यों में संलग्न हैं।

यहाँ के शिक्षण में धर्म विज्ञान का समन्वय है जो धार्मिक गतिविधियाँ यहाँ चलायी जाती हैं, उनकी वैज्ञानिकता का बोध भी कराया जाता है।



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