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नौ वर्षीय मातृशक्ति श्रद्धांजलि नवसृजन महापुरश्चरण

एक विलक्षण आध्यात्मिक पुरूषार्थ ( नौ वर्षीय मातृशक्ति श्रद्धांजलि नवसृजन महापुरश्चरण) की घोषणा अपने इस विराट गायत्री परिवार के लिए सूक्ष्म जगत से हुई है । 1943 से 1994 तक स्थूल रूप से गायत्री परिवार के संरक्षक के रूप में परम पूज्य गुरुदेव की अभिन्न परम वंदनीया शक्तिस्वरूपा स्नेहसालिता माता भगवती देवी शर्मा जी ने अपने आराध्य पूज्य गुरुदेव श्रीराम शर्मा आचार्य जी के साथ एक अभूतपूर्व पुरूषार्थ संपन्न किया था । 1994 में अपनी आध्यात्मिक एवं स्थूल लीला को समेट कर वे अपने आराध्य की कारण सत्ता में व में विलीन हो गईं । 1926 में जन्मीं हमारी उसी मातृसत्ता की जन्मशताब्दी का प्रसंग समीप आ रहा है । 2026 में सितम्बर माह में आश्विन कृष्ण चतुर्थी को उनके जन्म को एक शतक पूरा हो जायेगा । इस उपलक्ष्य में हम सभी उनके बालकों उनकी स्मृति में एक आध्यात्मिक महापुरूषार्थ नौ वर्ष तक सतत चलाते रहकर उसकी पूर्णाहुति 2026 में करने का संकल्प किया है ।

यह युग परिवर्तनकारी महाअनुष्ठान 9 जुलाई, गुरुपूर्णिमा 2017 से आरंभ होकर 29 जुलाई, गुरुपूर्णिमा 2026 को समाप्त होगा । इसमें करोड़ो परिजनों की भागीदारी होने जा रही है ।

२०२६ का वर्ष तीन महासंयोग लेकर आ रहा है ।
1. पहला तो मातृसत्ता की जन्मशताब्दी 
2. दूसरा अखंड दीपक के प्रज्वलन ( वसंत पंचमी, १९२६) के सौ वर्ष पूर्ण तथा
3. तीसरा महायोगी श्री अरविंद द्वारा घोषित भागवत सिद्धि दिवस ( २४ नवंबर १९२६) और उनकी चौबीस वर्षीय अखंड साधना की घोषणा का वर्ष ।

प्रारंभिक तीन वर्षों की योजना का विस्तार

इस साधनात्मक महापुरुषार्थ के पूरा होने तक हमारे इस कारवाँ में बारह करोड़ सृजन- साधक और जुड़ जाएँगे । इस तरह सतयुग की वापसी का हमारा संकल्पित अभियान पूरा होने के निकट पहुँच जाएगा । अब पढ़ें  कैसे इसे करना है; ताकि लक्ष्य पूर्ति तक हम पहुँच सकें ।

उपासना
यह क्रम हमारे साधक- परिजन नियमित रूप से करते ही हैं; परंतु अब हमें नए गायत्री- उपासक और जोड़ना है, जो युगनिर्माण की इस विचारधारा से अविच्छिन्न रूप से जुड़े रहें । इसके लिए निम्न प्रकार की साधनाओं का क्रम है । यह बड़ा सरल और सभी के लिए करने में सुगम है ।

(I) आत्मबोध एवं तत्त्वबोध की साधना-
आत्मबोध की साधना हर दिन नया जन्म की भावना के साथ प्रतिदिन प्रात : की जाती है । हम अपने स्वरूप, ईश्वरीय अनुग्रह एवं जीवन के महत्त्व को एक प्रकार से भुला बैठे हैं । अपने आपे को भूल जाना सबसे बड़ी विडंबना है । सवेरे उठते ही याद करें, किसलिए यह मानव जीवन आपको मिला? मात्र पाँच मिनट प्रभु के अनुग्रह को स्मरण कर दिन भर की एक सुनियोजित योजना बनाएँ एवं मन- ही अपने को और भी श्रेष्ठ बनाने की विधिवत् रूपरेखा मन में तैयार करें । आध्यात्मिक ध्यान में आत्मबोध की प्रक्रिया आत्मविस्मृति से उबारकर स्वरूप एवं लक्ष्य की ओर ले जाती है । यह आराम से बिस्तर या कुरसी पर प्रात :काल उषापान के बाद की जा सकती है ।


तत्त्वबोध की साधना-
रात्रि में सोने से पूर्व की जाती है । यह हर रात्रि नई मौत का ध्यान करते हुए की जाती है । मृत्यु के समय हमें सहज ही जीवन भर के सारे क्रियाकलाप स्मरण हो आते हैं । हम भी रात्रि में निद्रा में जाने से पूर्व यही सोचें कि दिन भर क्या किया? कहीं किसी को भावनात्मक चोट तो नहीं पहुँचाई । जो प्रात : सोचा था, वह दिन में बन पड़ा कि नहीं । यदि नया जन्म मिले तो अब कल प्रात : से जो नया रुटीन बनेगा, कैसे बनाएँगे, ताकि वह सफलतापूर्वक बीते । बस, यही सब सोचते हुए भगवान को यह दिन देने के लिए धन्यवाद देते हुए बिना किसी चिंता के सो जाएँ । यह निद्रा एक प्रकार से योगनिद्रा होती है । सभी जानते हैं कि बहुसंख्य मौतें रात्रि में सोते समय हृदयाघात के कारण होती हैं । आपकी योगनिद्रा- प्रभु के चरणों में सभी कुछ अर्पण का भाव आपको अगला दिन तरोताजा दे सकता है । रोज ५ से १० मिनट, इसके लिए रखें । दिन भर का मूल्यांकन एवं मृत्यु के समय में भगवच्चिंतन । यही इस साधना का सार है ।

गायत्री जप- उपासना के क्रम में स्नान के पश्चात गायत्री जप की बारी आती है । प्रत्येक परिजन को पाँच माला नित्य करनी हैं । तीन वर्ष तक लगातार । नहीं बन सकने पर ५० गायत्री मंत्रलेखन करें या रोज गायत्री चालीसा पाठ पाँच बार करें । साधनात्मक पुरुषार्थ इन तीनों में से किसी एक से ही पूरा हो जाएगा । समय हो तो तीनों कर लें । जप द्वारा आपकी आत्मा उस परमेश्वर को पुकारती है, जिसे हम एक प्रकार से भूल ही बैठे हैं । जप की पुकार- सुमिरन इस बहुमूल्य को खोजने के लिए है, जिसे हम अनायास जीवनयात्रा में खो चुके हैं । मुख को अग्निचक्र कहा गया है । पाचन ही नहीं; बल्कि इस दिव्य कुंड से वाक्शक्ति का भी उद्भव होता है । यह अग्निचक्र स्थूलरूप से पाचन का, सूक्ष्मरूप से उच्चारण का तथा कारणरूप से चेतनात्मक दिव्य प्रवाह उत्पन्न करने का कार्य करता है । जपयोग से विचार- प्रवाह बदल जाता है । नकारात्मकता तिरोहित हो जाती है एवं श्रेष्ठ विधेयात्मक चिंतन मन में स्थापित होने लगते हैं । गायत्री मंत्र की सामर्थ्य अद्भुत है । तेजस्विता, श्रेष्ठता और दिव्यता का ध्यान जप को सशक्त बनाता है । जप के साथ सविता के तेज का ध्यान करते चलें । सद्बुद्धि की अनेकानेक प्रार्थनाएँ हैं, पर सबसे सशक्त है- गायत्री मंत्र । यदि जप न बन पड़े तो मंत्रलेखन एवं गायत्री चालीसा का पाठ भी किया जा सकता है । नए साधकों- उपासकों को इनसे जोड़ा जा सकता है ।

ध्यान अंतर्जगत की यात्रा
प्रतिदिन तीन में से किसी एक का ध्यान करें-
(i) तीन शरीरों का ध्यान
(ii) प्राण संचार- साधना का ध्यान
(iii) पंचकोश जागरण का ध्यान

ये सभी ध्यान परमपूज्य गुरुदेव की वाणी में रिकार्ड किए रखे हैं । उन्हीं का उपयोग किया जाए । ध्यान से उपासना- जप में प्राण आ जाता है । वस्तुतः ध्यान अंतर्जगत की यात्रा कराता है एवं हमारे मन- मस्तिष्क को श्रेष्ठ विचारों में स्नान कराता है । ध्यान से पूर्व पूज्यवर की एक पुस्तक जरूर पढ़ लें- ' उपासना के दो चरण जप और ध्यान ' । ४० पृष्ठों की इस किताब का एक- एक अक्षर मनन- हृदयंगम करने योग्य है । ध्यान से जप में प्राण- प्रतिष्ठा अच्छी तरह होगी एवं उपासना ठीक से संपन्न होगी । उपासना काल में स्वाध्याय हेतु दो पुस्तकें बड़ी महत्त्वपूर्ण हैं-

(i) मैं क्या हूँ । ( सन् १९४०)
(ii) महाकाल और युग प्रत्यावर्तन प्रक्रिया ( सन् १९६७)

साधना का अर्थ अपने आप को साधना

साधना का अर्थ अपने आप को साधना । अपने ऊपर अपना नियंत्रण । जहाँ उपासना की अवधि निर्धारित है । वहाँ साधना चौबीस घंटे की होती है । चार संयम इसमें मदद करते हैं-

(i) साप्ताहिक उपवास- रविवार या गुरुवार को एक समय का ।
(ii) अणुव्रत- आहार नियंत्रण, मौन, सत्संकल्प का पाठ आदि । इनका पालन भी करना ।
व्यक्तिगत साधना में स्वाध्याय हेतु ये निम्नलिखित पुस्तकें हैं-

(i) हमारा युगनिर्माण सत्संकल्प
(ii) गायत्री का सूर्योपस्थान
(iii) अचेतन, चेतन, सुपरचेतन मन- वाड्मय खंड २२
(iv) प्राणशक्ति एक दिव्य विभूति- वाड्मय खंड १७
(v) गायत्री महाविज्ञान ( संयुक्त संस्करण)

पूरे तीन वर्ष हमें स्वाध्याय के लिए मिले हैं, ताकि साधना और उपासना निभा सकें । हम अगले चरण के योग्य बन सकें । स्वाध्याय के साथ नोट्स बनाने का अभ्यास भी अच्छा है । इससे स्मृति बढ़ेगी एवं लेखन- क्षमता भी विकसित होगी । इस अवधि में क्या- क्या बन पड़ा? इसका मूल्यांकन आपके लेखन से भी हो सकता है ।

आराधना द्वारा जन- जन तक पहुँचना

आराधना कहते हैं विराट ब्रह्म की- परमात्मा के इस साक्षात् विग्रह- संसार की सेवा- साधना । इसे हमने तीन भागों में बाँटा है ।
(i) युवाशक्ति
(ii) नारीशक्ति
(iii) प्रौढ़साधकों सहित सभी हमारे परिजन ।

आराधना द्वारा हम जन- जन तक पहुँचना चाहते हैं । यह समय महाकाल की पुकार सुनकर सेवा- साधना द्वारा पीड़ित मानवता को हर तरह से राहत पहुँचाने का है । सुविधा संवर्द्धन, पीड़ा निवारण तथा पतन निवारण में अंतिम साधना श्रेष्ठतम मानी गई है । इसी को लक्ष्य रखकर प्रत्येक के लिए कार्ययोजना बनाई गई है ।

युवाशक्ति की भूमिका
(i) विद्यालयों में समूह भावना विकास, विद्यार्जन क्षमता की अभिवृद्धि, संवेदना विस्तार के विभिन्न पक्षों पर चर्चा । इनके लिए परमपूज्य गुरुदेव के विचारों को धुरी बनाकर छोटे- छोटे दृष्टांत व कथानकों द्वारा छात्र- छात्राओं में रुचि बढ़ाना मूल लक्ष्य है । साथ ही अनेक विषयों पर चर्चा- परिचर्चा, वाद- विवाद, कहानी- काव्य प्रस्तुतीकरण, खेल- स्पर्धाओं एवं प्रतियोगिताओं, अंत्याक्षरी आदि के आयोजन किए जा सकते हैं ।

(ii) महाविद्यालयों में लाइब्रेरी आदि की स्थापना की जाए । वक्तृत्व कला, प्रज्ञागीत गायन आदि की स्पर्धाएँ , युगसाहित्य पर चर्चा- परिचर्चा का क्रम भी बनाया जा सकता है । विभिन्न विषयों पर पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेशन बनाकर, दिखाकर उनकी कार्यशालाएँ आयोजित की जा सकती हैं । शिक्षक- छात्र संगठन बनाकर पारस्परिक तालमेल से '' अखण्ड ज्योति '' क्लब एवं स्वाध्याय मंडल की स्थापना कर पारस्परिक गोष्ठी आयोजित हो सकती है । हर महाविद्यालय में एक आध्यात्मिक स्वाध्याय मंडल की स्थापना हो । युवा संगठन हर कॉलेज का सक्रिय हो जाए ।

(iii) वैज्ञानिक अध्यात्मवाद पर युवाओं को केंद्रित करना हमारा लक्ष्य है । २१वीं सदी का धर्म वैज्ञानिक अध्यात्मवाद है । इसके विभिन्न विषय बनाए जा सकते हैं । विचारवान, बुद्धिजीवी, प्रखर चिंतकों को आमंत्रित कर हमारे युवा उनसे संक्षेप में उनका विवेचन एवं कार्यान्वयन पर चर्चाओं के क्रम बना सकते हैं । युगसाहित्य की प्रदर्शनी स्थान- स्थान पर लगाई जा सकती है । शोधकर्त्ताओं को इन विषयों पर शोध हेतु आमंत्रित करें । विश्वविद्यालय एवं ब्रह्मवर्चस में हुए शोधों पर पारस्परिक संवाद का क्रम बने तथा प्रतिमाह उन पर एक समीक्षा बैठक हो ।

(iv) ग्रामीण, तहसील/प्रखंड, जिला, प्रांत दिया स्तर पर युवा संगठन व्यवस्थित बनता चला जाए ।

(v) युवा संगठनों की रीति- नीति पुस्तक के अनुसार दिए गए कार्यक्रमों का विधिवत् आयोजन हो । ' उत्तिष्ठत् जाग्रत ' पुस्तक को आधार बनाया जाए । सप्तक्रांति आधारित राष्ट्र के नवनिर्माण हेतु पंचअभियान- युवाजाग्रति अभियान, वृक्षगंगा अभियान, ग्रामतीर्थ योजना, बाल संस्कारशाला अभियान एवं भागीरथी जलाभिषेक अभियान में सबकी भागीदारी हो । आराधनापरक ये कार्यक्रम राष्ट्र के भविष्य के स्वरूप का निर्धारण करेंगे । हमें कम- से एक प्रतिशत ( राष्ट्र की युवाशक्ति लगभग ७० करोड़ है) युवाओं से आरंभ कर १ वर्षों में दस प्रतिशत तक पहुँचना है ।

(vi) विद्यालय के छात्र- छात्राओं की निःशुल्क कोचिंग व्यवस्था लागू हो । न्यूनतम लागत पर व्यवस्था बनाकर यह सेवा का पुण्यकार्य पूरा किया जाए। बहुत से विद्यार्थी अपनी प्रतिभा को इसके अभाव में परिष्कृत नहीं कर पाते ।

(vii ) युवा स्थान- स्थान पर योग प्रशिक्षण- होलिस्टिक हेल्थ के प्रोजेक्ट्स पर शिक्षण का क्रम आयोजित करें । इसके लिए चाहें तो देव संस्कृति विश्वविद्यालय की मदद ले लें । प्रतिदिन प्रात: स्थान- स्थान पर योग के प्रशिक्षण आयोजित किए जा सकते हैं । स्वस्थ युवा ही विकसित भारत का आधार बनेगा ।

(viii) युवा संगठनों के सशक्त रूप अब उभर कर आने चाहिए । राजनीति से दूर रहकर राष्ट्रनिर्माण हेतु युवा गुणात्मक एवं संख्यात्मक स्तर पर बढें । प्रतिवर्ष पाँच गुना वृद्धि की बात सोचें, ताकि २०२० तक हम पंद्रह गुना अधिक संख्या के युवाओं की शक्ति प्रस्तुत कर सकें ।


(ix) पॉवर पाइंट प्रेजेंटेशन से लेकर गतिविधियों के रिकार्ड आदि का डिजीटाइजेशन करें । कंप्यूटर संचालन में सभी की गति हो । सोशल मीडिया का व्यवस्थित उपयोग करना सभी को आता हो । हम सोशल मीडिया को रचनाधर्मी बनाना चाहते हैं । वह संभव है, यदि हमारे युवा प्रशिक्षित हों । सभी टेक- सेवी हों ।


नारीशक्ति की भूमिका-
हमें आधी जनशक्ति पर विशेष ध्यान देना होगा । इस नौवर्षीय योजना में हमने इसीलिए युवाशक्ति नारीशक्ति एवं परिजन- ये तीन ही वर्गीकरण लिए हैं । नारीशक्ति बहुत बडी़ है एवं मिशन के प्रत्येक क्रिया- कलापों में बढ़- चढ़कर योगदान करती है । देखा जाए तो पुरुषों से भी बढ़कर है । पर अभी सामाजिक- आध्यात्मिक प्रयोजनों में उसका योगदान कम है । धार्मिक आयोजनों- कर्मकांडों में तो उसकी उपस्थिति है; पर हम चाहते हैं कि अब वह दोमुखी गतिविधियों हाथ में ले । इसके लिए विस्तार से अगले अंक में नारीशक्ति एवं परिजनों की भूमिका पढ़ें ।

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Highlights


  • गुरु पूर्णिमा से रक्षाबंधन तक वृहद वृक्षारोपण अभियान
  • नौ वर्षीय मातृशक्ति श्रद्धांजलि नवसृजन महापुरश्चरण
  • युवा क्रांति रथ
  • देव संस्कृति पुष्टिकरण लोक आराधन महायज्ञ



परिचय

गायत्री परिवार जीवन जीने कि कला के, संस्कृति के आदर्श सिद्धांतों के आधार पर परिवार,समाज,राष्ट्र युग निर्माण करने वाले व्यक्तियों का संघ है।

वसुधैवकुटुम्बकम् की मान्यता के आदर्श का अनुकरण करते हुये हमारी प्राचीन ऋषि परम्परा का विस्तार करने वाला समूह है गायत्री परिवार।

एक संत, सुधारक, लेखक, दार्शनिक, आध्यात्मिक मार्गदर्शक और दूरदर्शी युगऋषि पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा स्थापित यह मिशन युग के परिवर्तन के लिए एक जन आंदोलन के रूप में उभरा है।

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