गुरु पूर्णिमा को अनुशासन पर्व भी कहा जाता है। अनुशासन मानने वाला ही शासन करता है, यह तथ्य समझे बिना राष्ट्रीय या आत्मिक प्रगति सम्भव नहीं है।
आध्यात्मिक स्तर पर गुरु- शिष्य के सम्बन्धों में तो अनुशासन और भी गहरा एवं अनिवार्य हो जाता है। गुरु शिष्य को अपने पुण्य, प्राण और तप का एक अंश देता है। वह अंश पाने की पात्रता, धारण करने की सामर्थ्य और विकास एवं उपयोग की कला एक सुनिश्चित अनुशासन के अन्तर्गत ही सम्भव है। वह तभी निभता है, जब शिष्य में गुरु के प्रति गहन श्रद्धा विश्वास तथा गुरु में शिष्य वर्ग की प्रगति के लिए स्नेह भरी लगन जैसे दिव्य भाव हों। गुरु पूर्णिमा पर्व गुरु- शिष्य के बीच ऐसे ही पवित्र, गूढ़ अन्तरङ्ग सूत्रों की स्थापना और उन्हें दृढ़ करने के लिए आता है।
गुरु पूर्णिमा पर व्यास पूजन का भी क्रम है। जो स्वयं चरित्रवान हैं और वाणी एवं लेखनी से प्रेरणा संचार करने की कला भी जानते हैं, ऐसे आदर्शनिष्ठ विद्वान् को व्यास की संज्ञा दी जाती है। गुरु व्यास भी होता है। इसलिए गुरु- पूजा को व्यास पूजा भी कहते हैं।
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