परमपूज्य गुरुदेव की चौबीस महापुरश्चरणों की पूर्णाहुति पर की गई स्थापना माना जा सकता है, जिसे विनिर्मित ही गायत्री परिवार रूपी संगठन के विस्तार के लिए किया गया था । इसकी स्थापना से पूर्व चौबीस सौ तीर्थों के जल व रज को संग्रहीत करके यहाँ उनका पूजन किया गया । एक छोटी किन्तु भव्य यज्ञशाला में हिमालय के महान सिद्धयोगी की धूनी से ७०० वर्ष पुरानी अखण्ड अग्नि स्थापित की गई तथा एक गायत्री महाशक्ति का मंदिर विनिर्मित किया गया । चौबीस सौ करोड़ गायत्री मंत्रों का लेखन, जो श्रद्धापूर्वक नैष्ठिक साधकों द्वारा किया गया, यहाँ पर संरक्षित कर रखा गया है । पूज्य गुरुदेव की साधना स्थली व प्रातःकाल की लेखनी की साधना की कोठरी यदि अखण्ड ज्योति संस्थान में थी, तो उनकी जन- जन से मिलने, साधनाओं द्वारा मार्गदर्शन देने की कर्मभूमि गायत्री तपोभूमि थी । यहाँ पर १०८ कुण्डीय गायत्री महायज्ञ में जून १९५३ में पहली बार पूज्यवर ने साधकों को मंत्र दीक्षा दी । यहीं पर १९५६ में नरमेध यज्ञ तथा ११५८ में विराट सहस्र कुण्डीय यज्ञायोजन संपन्न हुए । श्रेष्ठ नर रत्नों का चयन कर, गायत्री परिवार को विनिर्मित करने का कार्य यहीं व्यक्तिगत मार्गदर्शन द्वारा संपन्न हुआ । हिमालय प्रवास से लौटकर पूज्य आचार्यश्री ने युग निर्माण योजना के शतसूत्री कार्यक्रम एवं सत्संकल्प की तथा युग निर्माण विद्यालय के एक स्वावलंबन प्रधान शिक्षा देने वाले तंत्र के आरंभ होने की घोषणा की । यह विधिवत ११६४ से आरंभ किया गया एवं अभी भी सफलतापूर्वक चल रहा है । जिस कक्ष में परमपूज्य गुरुदेव सभी से मिला करते थे, अब वह साधना स्थली में परिवर्तित कर दिया गया है ।

मंदिरों एवं आश्रमों को देवस्थान कहलाने का गौरव देव प्रतिमाओं की अपेक्षा दैवी प्रवृत्तियों के प्रसारण केंद्र के नाते दिया जाता रहा है । गायत्री तपोभूमि की स्थापना इसी पुण्य परंपरा को पुनर्जीवित तथा व्यावहारिक बनाने के महान उद्देश्य से की गई है । प्राण ऊर्जा को दिव्य वातावरण में उभारने के लिए पूज्यवर ने २४ वर्ष कठोर तप, श्यामा गाय को जौ खिलाकर, गोबर के साथ निकले हुए जौ को साफ करके, २ रोटी बनाकर छाछ के साथ सेवन करके चौबीस- चौबीस लक्ष जप के चौबीस गायत्री महापुरश्चरण किए हैं । वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं० श्रीराम शर्मा आचार्य ने ३० .५. ११५३ से २२. ६. १९५३ तक उपवास (मात्र गंगाजल लेकर) किया तथा वेदमाता, देवमाता, विश्वमाता गायत्री की स्थापना एवं प्राण- प्रतिष्ठा की । इस महान अनुष्ठान के अंतर्गत अनेक साधकों द्वारा २४ लाख गायत्री मंत्र का जप, सवा लाख गायत्री चालीसा का सस्वर पाठ, यजुर्वेद, गीता, रामायण का पाठ, गायत्री सहस्रनाम, गायत्री कवच, रुद्राष्टाध्यायी एवं दुर्गा सप्तशती का पाठ, महामृत्युंजय जप, ६० हजार गायत्री मंत्र से आहुतियाँ १२५ करोड़ गायत्री मंत्र लेखन की स्थापना आदि महान कार्य का संपादन बड़ी ही भावना के साथ संपन्न किया गया ।

इस महान अभियान को गति देने हेतु उनके गुरुदेव ने दो अमूल्य रत्न (वस्तु) उन्हें प्रदान किए । जिसमें अखण्ड दीप तथा अखण्ड अग्नि का प्रमुख स्थान है । जब तक पूज्यवर मथुरा में रहे, यह अखण्ड दीप घीयामण्डी में जलता रहा । अब शांतिकुंज में प्रज्वलित है ।
वसंत पंचमी सन् १९५५ से १५ माह तक निरंतर इस यज्ञशाला में गायत्री महायज्ञ के साथ- साथ विशेष सरस्वती यज्ञ, रुद्र यज्ञ, महामृत्युंजय यज्ञ, विष्णु यज्ञ, शतचंडी यज्ञ, नवग्रह यज्ञ, चारों वेदों के मंत्र यज्ञ, ज्योतिष्टोम, अग्निष्टोम आदि यज्ञ एक- एक माह तक होते रहे । इन यज्ञों की पूर्णाहुति २०. ४.१९५६ से २४४.१९५६ तक नवरात्र के समय चल रहे १०८ कुण्डीय (नरमेध यज्ञ) महायज्ञ से हुई । इसमें ५-६ हजार व्यक्तियों द्वारा १२५ लाख आहुतियाँ दी गईं तथा पूर्ण रूप से लोकमंगल के लिए जीवनदानियों की शृंखला इसी महायज्ञ से आरंभ हुई । इसी अवसर पर गुरुदेव- माताजी द्वारा जेवर, पुस्तक, प्रेस, जमीन आदि भौतिक पदार्थ गायत्री माता को दान किए गए ।

२३. ११. १९५८ से २६. ११. ११५८ तक इस युग के महानतम सहस्र कुण्डीय गायत्री यज्ञ का संपादन हुआ जिसमें ४ लाख व्यक्तियों ने भाग लिया । २४ लाख गायत्री मंत्र की आहुतियां दी गईं, सवा लाख गायत्री मंत्र लेखन, २४ करोड़ गायत्री मंत्र जप एवं सवा लाख गायत्री चालीसा पाठ किए गए ।
११७१ में पूरे भारतवर्ष में पाँच सहस्र कुण्डीय यज्ञ संपन्न हुए जिसका संचालन इसी सिद्धपीठ के द्वारा किया गया । बहराइच (उ.प्र.), महासमुन्द (म.प्र.), पोरबंदर (गुजरात), भीलवाड़ा (राजस्थान), टाटानगर (बिहार) में यज्ञ संपन्न हुए । इसके बाद ही यहाँ से भारतीय संस्कृति के उत्थान एवं धर्म- प्रचार के लिए साधकों को प्रशिक्षण देकर देश के कोने- कोने में भेजा गया । अवतारी, महापुरुषों की शृंखला की पुनरावृत्ति के अंतर्गत पूज्य गुरुदेव भी २० जून ११७१ को इस सिद्धपीठ को छोड़कर शांतिकुंज, हरिद्वार चले गये, परंतु उनकी सूक्ष्म प्रेरणा एवं मार्गदर्शन में यहाँ के व्यवस्थापकों एवं कार्यकर्ताओं के द्वारा अभी भी युगांतरीय चेतना को जन-जन तक पहुँचाने हेतु अनेक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं ।

गायत्री तपोभूमि मथुरा की एक शाखा गुजराती भाषा में प्रकाशित साहित्य के प्रचार- प्रसार हेतु अहमदाबाद में गायत्री ज्ञानपीठ, पाटीदार सोसाइटी, जूनावाडज में स्थित है । गायत्री ज्ञानपीठ अहमदाबाद का संचालन युग निर्माण योजना, मथुरा द्वारा ही होता है । गायत्री तपोभूमि के प्रांगण में निम्नलिखित प्रकल्प एवं विभाग कार्यरत हैं ।

(१) गायत्री माता का मंदिर एवं महाकाल का मंदिर-
सिद्धपीठ के मंदिर में गायत्री माता के मंदिर की स्थापना की गई है तथा अगल- बगल के कक्ष में क्रमश: पूज्यवर गुरुदेव एवं वंदनीया माताजी की प्रतिमाओं एवं चरण पादुकाओं की स्थापना की गई है । पूज्य गुरुदेव के कमरे में २४०० तीर्थो का जल-रज तथा अस्थि कलश भी रखा गया है । इसके साथ ही वंदनीया माताजी के कमरे में २४०० करोड़ मंत्रलेखन की स्थापना है । मंत्र- लेखन साधना का एक आदोलन सारे देश में निरंतर चल रहा है । यहाँ महाकाल का मंदिर भी स्थित है । जहाँ प्रति वर्ष महाशिवरात्रि पर अखण्ड रामायण पाठ सहित दो दिवसीय भव्य आयोजन किया जाता है ।

(२) अखण्ड जप एवं यज्ञ-
मंदिर के प्रांगण में प्रात: आरती से सायं आरती तक अखण्ड जप चलता रहता है, जिसका सीधा प्रभाव वायुमंडल पर पड़ता है । इस जप का लाभ अनेक समस्या से ग्रसित परिजनों को मिलता रहा है । अखण्ड अग्नि में प्रतिदिन प्रात: यज्ञशाला में यज्ञ होता है जिसमें सभी लोग शामिल होते हैं ।

(३) निःशुल्क संस्कारों की व्यवस्था-
धर्मतंत्र से लोकशिक्षण के अनेकानेक कार्यक्रम यहाँ से चलते हैं, जिसमें भारतीय संस्कृति के अंतर्गत पुरुष को पुरुषोत्तम की भूमिका में प्रतिष्ठापित करने वाले संस्कार बहुत प्रभावशाली ढंग से कराने की सुगम व्यवस्था आश्रम में है । दूर- दूर से लोग दिव्य वातावरण में संस्कार कराने बहुधा पहुँचा करते हैं ।

(४) युग निर्माण बिद्यालय-
युग निर्माण विद्यालय में १६ से २० वर्ष के कक्षा १० उत्तीर्ण छात्र १० माह के प्रशिक्षण में यज्ञ, कर्मकांड, संस्कार, संगीत, कंप्यूटर, ऑफसेट, प्रिंटिंग, वाइंडिंग, लेमीनेशन एवं स्क्रीन प्रिंटिंग उद्योग, बिजली के उपकरण बनाना, रेडियो, ट्रांजिस्टर और टेलीविजन बनाना आदि का प्रशिक्षण प्राप्त कर क्षेत्र में समाज- सेवी के रूप में कार्य कर रहे हैं ।

(५) युग साहित्य का प्रकाशन-
परमपूज्य गुरुदेव ने युग व्यास, वसिष्ठ तथा विश्वामित्र की तरह कार्य किया है एवं समाज को ऊँचा उठाया है । उन्होंने गायत्री विद्या, उपासना, साधना, आराधना, अध्यात्म, विज्ञान, बाल- निर्माण, स्वास्थ्य संवर्धन, आत्मचिंतन, परिवार- निर्माण, विचारक्रांति, कथा, कर्मकांड, धर्मतंत्र से लोक शिक्षण, नैतिक शिक्षा, नारी जागरण, प्रज्ञापुराण, आर्षग्रंथ आदि का लेखन किया है, जिसे यहाँ हर समय मानव- मात्र के कल्याण के लिए उपलब्ध कराया गया है ।

(६) निःशुल्क आवास-
गायत्री तपोभूमि में युग निर्माण मिशन के परिजन, कार्यकर्त्ता, विद्यार्थी एवं अतिथियों के लिए निःशुल्क गायत्री, दुर्वासा, भगवती, सरस्वती, हिमालय, प्रज्ञा, साधक निवास आदि भवन हैं
भवनों का निर्माण परमपूज्य गुरुदेव के समय से आज तक निरंतर होता ही रहा है, किन्तु कण- कण में उन्हीं की ही प्राण- चेतना का अनुभव किया जा सकता है ।

(७) वंदनीया माताजी का भोजनालय-
गायत्री तपोभूमि में वंदनीया माताजी के चौके में सभी के लिए निःशुल्क भोजन की व्यवस्था होती है । शुद्ध सात्विक भोजन प्रात: ११ बजे से तथा सायं ६ -३० से आरम्भ होता है । अतिथि, शिविरों में आने वाले परिजन एवं युग निर्माण विद्यालय के छात्र भोजनालय में भोजन ग्रहण करते हैं ।

(८) युग निर्माण योजना प्रेस-
गायत्री तपोभूमि की अपनी प्रिंटिंग प्रेस हैं, जिनमें बड़ी रोटरी मशीनें, दो रंग वाली तथा एक पाँच रंगों वाली ऑफसेट मशीनें हैं ।
स्वचालित बाइंडिंग मशीनें भी हैं, जिसमें तीव्र गति से पुस्तकों की बाइंडिंग हो जाती है । युग निर्माण योजना द्वारा प्रकाशित पत्रिकाएँ तथा पुस्तकों का कंपोजिंग कम्प्यूटर कक्ष में तथा छपाई का कार्य प्रेस में होता है

(१) पत्रिका प्रकाशन-
गायत्री तपोभूमि से दो मासिक पत्रिकाओं का प्रकाशन होता है । ''युग निर्माण योजना'' मासिक हिंदी में तथा ''युग शक्ति गायत्री'' गुजराती में प्रकाशित होती है । इनका वार्षिक शुल्क क्रमश ४२ -०० तथा ६५ -०० रुपए है ।

(१०) सद्वाक्यों का प्रकाशन-
मिशन के विचारक्रांति अभियान के अंतर्गत प्रेरणाप्रद सद्वाक्यों के विभिन्न आकार के पोस्टर चित्र एवं स्टीकर प्रकाशित किए जाते हैं । ऐसे ही सद्वाक्य आश्रम की दीवारों पर भी लिखे हुए हैं । ये दीवारें बोलती दीवारें हैं, जो सदा रास्ता चलते लोगों को शिक्षा देती रहती हैं । स्टीकर्स एवं पोस्टर्स घरों, व्यापारिक प्रतिष्ठानों, कार्यालयों एवं स्टेशनों आदि स्थानों पर लगाने का अभियान देशभर में चलाया जाता है ।

(११) शिविरों का आयोजन-
गायत्री तपोभूमि प्राचीन काल से ऋषियों की तपस्थली रही है । अत: यहाँ के दिव्य वातावरण में साधना करने का लाभ अधिक मिलता है । यहाँ निरंतर प्रतिमाह तीन १ दिवसीय साधना शिविर तथा ४० दिवसीय साधना शिविर लगते रहते हैं । आश्रम के अनुशासन में साधना करने वाले पात्र साधकों का इन शिविरों में स्वागत है । विद्यालयों के ग्रीष्मावकाश में छात्र- छात्राओं एवं युवक युवतियों के शिविर भी आयोजित किए जाते हैं ।

(१२) हवन सामग्री निर्माण-
गायत्री तपोभूमि में हवन सामग्री का निर्माण बड़े पैमाने पर होता है । यहाँ हवन सामग्री की शुद्ध जड़ी- बूटियों के संग्रह हेतु भांडागार है । स्वचालित मशीन से हवन सामग्री तैयार की जाती है । यह हवन सामग्री शुद्ध जड़ी- बूटियों से निर्मित होती है और सस्ते दर पर देश भर में पहुँचाई जाती है ।

(१३) दातव्य चिकित्सालय-
गायत्री तपोभूमि के आश्रम में आश्रमवासियों गरीबों, असहायों के लिए एक चिकित्सालय है जहाँ आयुर्वेदिक, होमियोपैथिक, एलोपैथिक योग प्राणायाम, प्राकृतिक चिकित्सा, फिजियोपैथिक तथा पैथोलोजी का कार्य कुशल एवं योग्य चिकित्सकों तथा सहायकों के द्वारा किया जाता है ।

(१४) विभिन्न विभाग-
आश्रम की सुचारु व्यवस्था के लिए विभिन्न विभागों के आधुनिक कार्यालय हैं । आश्रम में इण्डियन ओवरसीज बैंक की शाखा एवं डाकखाना भी है । हिंदी विभाग (युग निर्माण योजना पत्रिका), गुजराती विभाग (युग शक्ति गायत्री गुजराती पत्रिका), डाक विभाग, लेखा विभाग, कम्प्यूटर विभाग, एकाउण्ट विभाग, शाखा विभाग, मंत्र लेखन विभाग, पंजीयन विभाग, साहित्य वितरण एवं साहित्य स्टाल, विचारक्रांति अभियान विभाग, हवन सामग्री चक्की, प्रेस एवं प्रकाशन विभाग, स्टोर विभाग के द्वारा कार्य सुचारु रूप से संचालित होता रहता है ।

(१५) सप्तसूत्री आन्दोलन-
युग निर्माण योजना से सात आंदोलनों का सूत्रपात किया गया है- (१) साधना आंदोलन (२) शिक्षा (३) स्वावलंबन (४) पर्यावरण (५) नारी जागरण (६) स्वास्थ्य (७) कुरीति उन्मूलन व्यसन मुक्ति । इसके अतिरिक्त पूज्य गुरुदेव ने युग निर्माण योजना के शतसूत्री कार्यक्रम दिए हैं । उनका भी संचालन यहीं से होता है । इन कार्यक्रमों की पुस्तकें भी प्रकाशित की गई हैं ।

(१६) ठंडे जल की प्याऊ-
आश्रम में अनेक ठंढे जल के कूलर लगे हैं, जहाँ यात्रियों के लिए ठंढा जल पीने हेतु उपलब्ध है ।

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