१. प्रार्थना
वह शक्ति हमें दो दयानिधे, कर्तव्य मार्ग पर डट जायें।
पर सेवा, पर उपकार में हम, निज जीवन सफल बना जायें।
हम दीन- दुःखी, निबलों, विकलों, के सेवक बन संताप हरें।
जो हों भूले, भटके, बिछुड़े, उनको तारें, खुद तर जायें। वह शक्ति......
छल- द्वेष, पाखण्ड झूठ, अन्याय से निश दिन दूर रहें।
जीवन हो शुद्ध सफल अपना, शुचि प्रेम, सुधा रस बरसायें। वह शक्ति...
निज आन- मान, मर्यादा का, प्रभु ध्यान रहे, अभिमान रहे,
जिस देवभूमि में जन्म लिया, बलिदान उसी पर हो जायें। वह शक्ति.....
अ. प्रार्थना
-- बच्चों को पंक्ति में बिठाकर कक्षा आरंभ करें।
-- ध्यान मुद्रा में बैठने का निर्देश दें- कमर सीधी, हाथ गोदी में बायाँ हाथ नीचे, दायाँ हाथ ऊपर, आँखें बंद।
-- मंत्रों का उच्चारण धीरे- धीरे कराएँ।
-- ध्वनियों के सही उच्चारण पर ध्यान दें, यह देखें कि कौन
छात्र गलत उच्चारण कर रहा है? उसे बीच में ही रोक कर सही
उच्चारण का अभ्यास कराएँ।
-- उच्चारण में आरोह और अवरोह पर ध्यान दें।
-- प्रतिमाह प्रार्थना के दो मंत्र (नये) सिखायें, पहले सप्ताह सिखायें, दूसरे सप्ताह दोहराने- याद करने को कहें।
-- गायत्री मंत्र का तीन बार धीरे- धीरे उच्चारण कराएँ।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
ब. गुरु- वंदना
ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुरेव महेश्वरः,
गुरुरेव परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः॥
अखण्ड मण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्,
तत्पदं दर्शितं येन, तस्मै श्री गुरवे नमः॥
मातृवत् लालयित्री च, पितृवत् मार्गदर्शिका,
नमोऽस्तु गुरु सत्तायै, श्रद्धा- प्रज्ञा युता च या॥
स. वेदमाता- देवमाता की वंदना
ॐ आयातु वरदे देवि! त्र्यक्षरे ब्रह्मवादिनी,
गायत्रिच्छन्दसां मातः, ब्रह्मयोने नमोऽस्तुते।
ॐ स्तुता मया वरदा वेदमाता, प्रचोदयन्तां पावमानी द्विजानाम् आयुः प्राणं प्रजां पशुं, कीर्तिं द्रविणं ब्रह्मवर्चसम्। मह्यं दत्वा व्रजत ब्रह्मलोकम्।
ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव यद्भद्रं तन्नऽआ सुव। ॐ शान्तिः, शान्तिः, शान्तिः।
द. विशेष
विभिन्न धर्म- सम्प्रदाय के बच्चे हों तब उनकी प्रार्थना (देखें पृष्ठ- १७)
अवश्य करें अथवा केवल सूर्य का ध्यान करवायें। उसके तेजस्, वर्चस्
को अपने अन्दर धारण करने का भाव करने को कहें।
२. बाल प्रबोधन
अ. प्रेरणाप्रद कहानी
प्रति सप्ताह एक प्रेरणाप्रद कहानी सुनाएँ। कहानी में दी गयी
प्रेरणा को हृदयंगम करने के लिए छात्रों से वार्तालाप करें।
कहानियाँ याद कराएँ ।।
संदर्भ- १. पुस्तक से
२. बाल निर्माण की कहानियाँ (भाग- १ से १६ तक)
३. पंचतंत्र की कहानियाँ
४. प्रेरणाप्रद कहानियाँ
५. उपनिषदों की कथाएँ
ब. प्रेरक प्रसंग/दृष्टांत
प्रति सप्ताह एक प्रेरक प्रसंग /दृष्टांत सुनाएँ।
संदर्भ- १. पुस्तक से
२. प्रज्ञा पुराण (भाग- १ से ४ तक)
३. प्रेरणाप्रद दृष्टान्त (वाङ्मय खण्ड- ६७)
४. महापुरुषों की अविस्मरणीय जीवन प्रसंग (वाङ्मय खण्ड- ५०, ५१)
५. मरकर भी अमर हो गए जो (वाङ्मय खण्ड- ४४)
- इन प्रेरक प्रसंगों/दृष्टान्तों से क्या सीखा? छात्रों से चर्चा करें।
स. सुविचार/सद्वाक्य
प्रति सप्ताह एक सद्वाक्य सुनायें और बड़े- बड़े शब्दों में
लिखकर कक्षा में टाँगें। उस ओर छात्रों का ध्यान आकर्षित करें।
दूसरे सप्ताह में पहले के लिखे हुए वाक्य पर छात्रों से चर्चा
करें, वाक्य के मूल संदेश को छात्रों के जीवन में उतारने का
अभ्यास करायें।
संदर्भ-
- बोलती दीवारें (पुस्तक)
- विचार सूक्तियाँ (वाङ्मय क्र. ६९, ७०)
३. प्रज्ञागीत
प्रति माह दो नये गीत सिखायें, शब्दों के सही उच्चारण एवं अर्थ का बोध करायें।
संदर्भ- पुस्तक से, प्रज्ञागीत, क्रांति गीत, समूह गान एवं सहगान कीर्तन पुस्तक ।।
४. जीवन विद्या
(जीवन में सुव्यवस्था एवं संस्कार संवर्धन हेतु विशेष पाठ्यक्रम)
बालकों की जीवनचर्या सुव्यवस्थित करने, नैतिकता व आस्तिकता
संवर्धन हेतु जीवन विद्या अध्याय में से प्रति सप्ताह क्रम वार
थोड़ा- थोड़ा अभ्यास कराएँ।
संदर्भ-
१. पुस्तक
२. विद्यार्थी जीवन की दिशाधारा
३. नैतिक शिक्षा भाग- १ एवं २
४. सफल जीवन की दिशाधारा
५. सफलता के सात सूत्र- साधन
६. भावी पीढ़ी का नवनिर्माण
५. ध्यान/जप
गायत्री मंत्र का ५ मिनट जप एवं उगते सूर्य का ध्यान।
प्रार्थना- असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योर्तिगमय, मृत्योर्मा अमृतंगमय्।
६. शुभकामना
सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखमाप्नुयात्।
७.शांति पाठ
ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष शान्तिः, पृथिवी शान्तिरापः, शान्तिरोषधयः शान्तिः। वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः, शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः, सर्व शान्तिः, शान्तिरेव शान्तिः, सा मा शान्तिरेधि। ॐ शान्तिः, शान्तिः, शान्तिः। सर्वारिष्ट सुशान्तिर्भवतु।
हिन्दी अनुवाद :-
शान्ति कीजिए- शान्ति कीजिए।
प्रभु त्रिभुवन में- शान्ति कीजिए॥
जल में, थल में और गगन में- शान्ति कीजिए।
अन्तरिक्ष में अग्नि पवन में- शान्ति कीजिए॥
औषधि वनस्पति वन उपवन में- शान्ति कीजिए।
सकल विश्व के जड़ चेतन में- शान्ति कीजिए॥
प्रभु त्रिभुवन में..................
शान्ति विश्व निर्माण सृजन में- शान्ति कीजिए।
नगर ग्राम में और भवन में- शान्ति कीजिए॥
जीव मात्र के तन में मन मे- शान्ति कीजिए।
और जगत के हर कण- कण में- शान्ति कीजिए॥
प्रभु त्रिभुवन में..................
८. युग निर्माण सत्संकल्प पाठ एवं जयघोष
यहाँ वर्णित १८
संकल्प इक्कीसवीं सदी के उज्ज्वल भविष्य की सर्वोपयोगी आचार
संहिता है। जीवन में इन सूत्रों को अपनाकर कोई भी व्यक्ति उन्नति
के शिखर पर पहुँच सकता है। इसका प्रत्येक सूत्र व्यक्ति, परिवार,
समाज और राष्ट्र में आमूलचूल परिवर्तन की आधार शिला है
व्यक्ति निर्माण और राष्ट्रोत्थान के बीज इन्हीं सूत्रों में विद्यमान हैं। इन्हें ठीक प्रकार से समझें। इन पर मनन- चिंतन करें। बालकों से युग निर्माण सत्संकल्प का पाठ कराएँ तथा किसी एक का सरल अर्थ एवं महत्व समझाएँ और उसे अपने जीवन का अंग बनाने के लिए उन्हें प्रेरित करें।
० हम ईश्वर को सर्वव्यापी, न्यायकारी मानकर उसके अनुशासन को अपने जीवन में उतारेंगे।
० शरीर को भगवान् का मंदिर समझकर आत्म- संयम और नियमितता द्वारा आरोग्य की रक्षा करेंगे।
० मन को कुविचारों और दुर्भावनाओं से बचाये रखने के लिए स्वाध्याय एवं सत्संग की व्यवस्था रखे रहेंगे।
० इन्द्रिय संयम, अर्थ संयम, समय संयम और विचार संयम का सतत अभ्यास करेंगे।
० अपने आपको समाज का एक अभिन्न अंग मानेंगे और सबके हित में अपना हित समझेंगे।
० मर्यादाओं को पालेंगे, वर्जनाओं से बचेंगे, नागरिक कर्त्तव्यों का पालन करेंगे और समाजनिष्ठ बने रहेंगे।
० समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी और बहादुरी को जीवन का एक अविच्छिन्न अंग मानेंगे।
० चारों ओर मधुरता, स्वच्छता, सादगी एवं सज्जनता का वातावरण उत्पन्न करेंगे।
० अनीति से प्राप्त सफलता की अपेक्षा नीति पर चलते हुए असफलता को शिरोधार्य करेंगे।
०
मनुष्य के मूल्यांकन की कसौटी, उसकी सफलताओं, योग्यताओं एवं
विभूतियों को नहीं, उसके सद्विचारों और सत्कर्मों को मानेंगे।
० दूसरों के साथ वह व्यवहार नहीं करेंगे, जो हमें अपने लिए पसन्द नहीं।
० नर- नारी परस्पर पवित्र दृष्टि रखेंगे।
०
संसार में सत्प्रवृत्तियों के पुण्य प्रसार के लिए अपने समय,
प्रभाव, ज्ञान, पुरुषार्थ एवं धन का एक अंश नियमित रूप से लगाते
रहेंगे।
० परम्पराओं की तुलना में विवेक को महत्त्व देंगे।
० सज्जनों को संगठित करने, अनीति से लोहा लेने और नव सृजन की गतिविधियों में पूरी रुचि लेंगे।
०
राष्ट्रीय एकता एवं समता के प्रति निष्ठावान् रहेंगे। जाति,
लिंग, भाषा, प्रान्त, सम्प्रदाय आदि के कारण परस्पर कोई भेद- भाव न
बरतेंगे।
०
मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है, इस विश्वास के आधार पर
हमारी मान्यता है कि हम उत्कृष्ट बनेंगे और दूसरों को श्रेष्ठ
बनायेंगे, तो युग अवश्य बदलेगा।
० हम बदलेंगे- युग बदलेगा, हम सुधरेंगे- युग सुधरेगा। इस तथ्य पर हमारा परिपूर्ण विश्वास है।
जयघोष
कक्षा समाप्त होने पर उत्साह पूर्वक जयघोष करें- कराएँ।
१. गायत्री माता की -- जय २. यज्ञ भगवान की -- जय
३. वेद भगवान की -- जय ४. भारतीय संस्कृति की -- जय
५. भारत माता की -- जय ६. एक बनेंगे -- नेक बनेंगे
७. हम सुधरेंगे -- युग सुधरेगा ८. हम बदलेंगे -- युग बदलेगा
९. विचार क्रांति अभियान -- सफल हो, सफल हो, सफल हो
१०. ज्ञान यज्ञ की लाल मशाल -- सदा जलेगी, सदा जलेगी।
११. ज्ञान यज्ञ की ज्योति जलाने -- हम घर- घर में जाएँगे।
१२. नया सबेरा, नया उजाला -- इस धरती पर लाएँगे
१३. नया समाज बनाएँगे -- नया जमाना लाएँगे १४. जन्म जहाँ पर -- हमने पाया
१५. अन्न जहाँ का -- हमने खाया १६. वस्त्र जहाँ के -- हमने पहने
१७. ज्ञान जहाँ से -- हमने पाया १८. वह है प्यारा -- देश हमारा
१९. देश की रक्षा कौन करेगा -- हम करेंगे, हम करेंगे
२०. युग निर्माण कैसे होगा -- व्यक्ति के निर्माण से
२१. माँ का मस्तक ऊँचा होगा -- त्याग और बलिदान से
२२. मानव मात्र -- एक समान
२३. जाति वंश सब -- एक समान
२४.नर और नारी -- एक समान
२५. नारी का सम्मान जहाँ है -- संस्कृति का उत्थान वहाँ है
२६. जागेगी भाई जागेगी -- नारी शक्ति जागेगी
२७. नशा नाश की जड़ है भाई -- जिसने किया मुसीबत लाई
२८. हमारी युग निर्माण योजना -- सफल हो, सफल हो, सफल हो
२९. हमारा युग निर्माण सत् संकल्प -- पूर्ण हो, पूर्ण हो, पूर्ण हो
३०. इक्कीसवीं सदी -- उज्ज्वल भविष्य
३१. वन्दे वेद मातरम्
९. कक्षा के उपरान्त संस्कार संवर्धन हेतु निम्रलिखित गतिविधियाँ चलाएँ
१. सप्ताह में पड़ने वाले पर्व- त्योहारों का संक्षिप्त आयोजन करें।
२. सप्ताह में जिन छात्रों का जन्मदिन आया हो, उनका संक्षिप्त आयोजन कर जन्मदिन संस्कार मनायें।
३. बाल शिष्टाचार- चर्चा एवं प्रयोग।
४. प्रज्ञायोग।
५. आओ खेलें खेल (मूल्य परक, मनोरंजक तथा मैदानी खेल)
(खेल परिशिष्ट) एक या दो खेल समयानुसार
६. रोचक अभ्यास (रोचक अभ्यास परिशिष्ट) एक या दो समयानुसार करायें।
संस्कार संवर्धन हेतु अन्य गतिविधियाँ -
१. प्रतियोगिताएँ, मनोरंजन, कहानी, निबंध, भाषण आदि।
२. आसन प्राणायाम- सूर्य नमस्कार, प्रज्ञायोग के आसन आदि।
३. लघुनाटक एवं नृत्य नाटिका। पुरस्कार के रूप में पुस्तकेंभेंट करें।
४. पर्वों त्योहारों की प्रेरणा और यथा संभव/ समय उनका संक्षिप्त आयोजन।
५. महापुरुषों के जन्मदिन मनाना, उनके बचपन के प्रेरणाप्रद प्रसंगों की जानकारी देना।
६. शैक्षणिक भ्रमण आयोजन- वर्ष में एक या दो बार।
१०. भ्रमण
वर्ष में एक या दो बार सांस्कृतिक भ्रमण कार्यक्रम आयोजित करें।
सबके लिए सद्बुद्धि, सबके लिए उज्जवल भविष्य की प्रार्थनाएँ
गायत्री मंत्र - सार्वभौम प्रार्थना
ॐ भूर्भवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
भावार्थ- उस प्राण स्वरूप, दुःखनाशक, सुख स्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी,
पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अन्तरात्मा में धारण करें।
वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करे।
जैन- नमो अरिहंताणं। नमो सिद्धाणं। नमो आयरियाणं।
नमो उवज्झायाणं। नमो लोए सव्व- साहूणं।
एसो पंच- नुमक्कारो सव्व- पावप्पणसणो।
मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं हवइ मंगलं॥
सिक्ख- एक ओंकार (ॐ) सतिनामु, कर्तापुरखु, निर्भउ, निर्वैरु, अकालमूरति अजूनी सैभं,गुरुप्रसाद। जपु। आदि सचु, जुगादि सचु। है भी सचु नानक होसी भी सचु।
मुस्लिम- बिस्मिल्लाहिर्रहमाननिर्रहीम् अल्- हम्दु लिल्लाह- ए रब्बिल आलमीन। अर्रहमानिर्रहीम्। मालिकेयौमिद्दीन। ईय्याकन- अबोदो वइय्याक नस्तईन। एहदिनस्सेरातल् मुस्तकीम। सीरातल्लजीनऽअन- अम्तो गैरिल मगदूब- ए अलैहिम्- वलद्दुआलिन। आमीन
क्रिश्चियन-
Almighty God unto whom all hearts be open, all desires known, and from
whom no secrets are hid; cleanse the thoughts of our hearts by the
inspiration of Thy Holy Spirit, that we may perfectly love thee, and
worthily magnify thy Holy Name through Christ our Lord
यहाँ परमात्मा चेतन सत्ता (Super power) के रूप में हैं। उसका- अल्लाह, गॉड, वाहे गुरु, तीर्थंकर, बुद्ध आदि अपने इष्टानुसार, ध्यान किया जा सकता है।