बाल संस्कारशाला मार्गदर्शिका

अध्याय- ६-भाग -२ मनोरंजक खेल

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१. कुहनी से छूना- यह खेल यथा सम्भव छोटे बच्चों के लिये है। इसमें छूने जा रहे बालक को अपना बायाँ कान बायें हाथ से पकड़कर भागने वाले साथियों को बायीं कुहनी से छूना है।
२. सिर से छूना- पीछा करने वाला बालक अपने दोनों हाथ पीछे (पीठ पर) बाँधे रखकर अपने शेष साथियों को सिर से छूता है। जो साथी छूआ जाएगा वह बाहर होगा।
३. मैं शिवाजी- इस खेल में दो बच्चे चुने जाते हैं, एक ‘‘अ’’ और दूसरा ‘‘ब’’ ‘अ’ ‘ब’ को छूने दौड़ता है, जब कि शेष खिलाड़ियों में से कोई एक इन दोनों के बीच में से ‘‘मैं शिवाजी’ कहते हुए दौड़ेगा। इस पर तत्काल ‘‘अ’’ इस बीच में से निकले साथी को छूने का प्रयास करेगा। यदि ‘‘मैं शिवाजी’’ कहकर दौड़ने वाले बालक को ‘‘अ’’ छू लेता है तो ‘‘मैं शिवाजी’’ कहने वाले बालक को ‘‘अ’’ के पीछे दौड़ना है।
४. भस्मासुर- प्रत्येक बालक को अपना बायाँ हाथ सिर पर रखना है। सीटी बजने पर, प्रत्येक बालक को दूसरे का सिर पर रखा हाथ हटाकर अपना हाथ वहाँ रखने का प्रयास करना है। ऐसा होने न पाये, इसलिये प्रत्येक को भागते रहकर बचना है। जिसके सिर पर दूसरे साथी का हाथ रखा गया, वह बाहर हो जाएगा।
५. भैया! तू कहाँ है ?- एक गोला बनाकर, उसमें दो बालकों को उनकी आँखें रूमाल से बाँधकर कर खड़ा करेंगे। इन दो में से एक (छूनेवाला) बालक पूछेगा ‘‘भैया तू कहाँ है?’’ दूसरा बालक अपना स्थान छोड़कर कहीं से कहेगा ‘‘भैया, मैं यहाँ हूँ।’’ अन्य सभी बालक भी उसे बहकाने के लिये ऐसा ही करेंगे। पहला बालक इसी प्रकार प्रश्न पूछता जायेगा और उत्तर आने की दिशा से दूसरे साथी को ढूँढ़ने का प्रयास करेगा। दूसरा साथी यदि छूआ जाता है तो वह ‘‘बाहर हो जायेगा।’’
६. ताण्डव नृत्य - एक बड़ा गोला भूमि पर बनाएँ। इस गोले के अन्दर सारे बालक खड़े होंगे। दोनों हाथों को पीछे से आपस में पकड़े रखना है। शिक्षक की सीटी बजते ही बालक पैरों के पंजों पर उछलने लगेंगे। प्रत्येक बालक को उछलते हुए दूसरे के पैर पर अपना पैर रखने का प्रयास करना है। जिसके पैर पर दूसरे का पैर पड़ेगा वह ‘‘बाहर’’ जायेगा।
७. वीरो! ऐसा करो - इस खेल में शिक्षकों द्वारा बालकों को गोले में खड़ा कर, भिन्न- भिन्न प्रकार के आदेश (जैसे- बैठ जाओ, खड़े हो जाओ, दोनों कान पकड़ो, नाक पकड़ो, एक हाथ ऊपर, एक पाँव ऊपर, नाचो इत्यादि) देता है। बालकों को उन्हीं आदेशों का पालन करना है। जिनमें ‘‘वीरो’’ शब्द आदेश के पूर्व हो (जैसे वीरो! कान पकड़ो) जो बालक बिना ‘‘वीरो’’ शब्द के आदेशानुसार करेगा वह ‘‘बाहर’’ हो जायेगा। जो बालक अन्त तक रहेगा वह विजयी होगा। पुस्तिका के प्रारंभ में लिखी हुयी आज्ञाएँ इस खेल के माध्यम से सिखाना सरल होगा।

८. संकेत- शिक्षक बालकों को तीन संकेत देता है, बालकों को संकेत के अनुसार क्रिया करनी है।
१. मनुष्य- दोनों हाथों से प्रणाम करने की स्थिति लेना।
२. बन्दूक- बन्दूक चलाने जैसी हाथों की स्थिति लेना।
३. गधा- दोनों हाथों से कान पकड़ना।
शिक्षक गोले के बीच में खड़े होकर, परिधि पर खड़े बालकों को शीघ्रता से एक के पश्चात् एक संकेत (आज्ञा) देता है और स्वयं भी तदनुसार अपनी स्थिति ठीक या जानबूझकर गलत बनाता है। जो बालक गलत स्थिति लेते हैं, वे ‘‘बाहर’’ हो जाते हैं।
९. नेता ढूँढ़ो- सारे बालक गोलाकार बैठते हैं। किसी एक बालक को दूर जाने को कहकर शिक्षक किसी अन्य बैठे बालक को ‘‘नेता’’ नियुक्त करता है। तत्पश्चात दूर भेजे गये बालक को फिर से गोल में बुलाया जाता है और उसे ‘‘नेता’’ ढूँढ़ने को कहा जाता है। उसके गोल में आने के पश्चात् नियुक्त नेता कुशलतापूर्वक, आये बालक को न दिखायी दे, इस प्रकार विविध हावभाव, हलचल (जैसे ताली बजाना, कान पकड़ना, सिर पर थपथपाना इत्यादि) करता है। शेष बैठे बालक उसका अनुकरण करते हैं। इस समय वे नेता को सीधा नहीं देखते। नेता बीच- बीच में कुशलता से अपनी क्रियाएँ इस प्रकार बदलता है कि बाहर से आये बालक को वे ध्यान में न आये। नेता ढूँढ़ने को आया हुआ बालक गोल में घूमता, चक्कर लगाता है। ढूँढ़ने आया बालक यदि गलत बालक को नेता कहता है, तो उसे पाँच बैठकें लगानी पड़ती हैं। तीन बार प्रयास करने पर भी यदि बालक नेता ढूँढ़ने में असफल रहे, तो उसे एक गीत गाना पड़ता है।
१०. चिड़िया ‘भुर्रर्’- शिक्षक बालकों को गोलाकार में खड़ा कर स्वयं गोल के केन्द्र में खड़ा होता है। तब वह एक के बाद एक पशु पक्षियों के नाम बोलता जाता है। (उदा. घोड़ा, साँप, कुत्ता, चिड़िया, मोर...) किसी पक्षी का नाम बोलते ही बालक दोनों हाथ ऊँचे कर जोर से ‘‘भुर्रर्’’ कहते हैं। परन्तु पक्षी के अतिरिक्त किसी पशु का नाम सुनने पर यदि कोई बालक ‘‘भुर्रर्’’ कहता है या हाथ ऊपर उठाता है तो वह ‘‘बाहर’’ हो जाता है। अन्त तक रहने वाला बालक विजेता होता है।
११. तीर- नीर गोला बनाकर उस पर बालक खड़े रहते हैं। गोले के अन्दर नीर (अर्थात पानी) और बाहर तीर (अर्थात भूमि) होगा। शिक्षक शीघ्रता से ‘तीर- नीर’ किसी भी क्रम में कहता जाता है। तीर कहने पर गोल के बाहर और नीर कहने पर गोले के अन्दर उछलकर जाना है। गलत करने वाला बालक बाहर हो जाता है। बालकों को सारे कार्य उछलकर करने हैं। जो अन्त तक रहेगा, वह विजयी होगा।
१२. दृश्य बनाओ- दस ग्यारह बालकों का समूह बनाकर उनमें से ही एक को गण प्रमुख नियुक्त करें। किसी भी एक दृश्य अथवा स्थान की घोषणा प्रशिक्षक द्वारा किये जाने पर बालकों को उस दृश्य की रचना करनी है। उदाहरण के तौर पर मन्दिर कहते ही बालक मन्दिर का दृश्य बनायेंगे। जैसे- दो ऊँचे बालक एक दूसरे का हाथ पकड़कर मन्दिर का मुख्य द्वार बनायेंगे। उसके पीछे आशीर्वाद की मुद्रा में एक बालक भगवान बनकर बैठेगा। कोई पुजारी बनकर प्रसाद बाँटेगा तो कोई हाथ उठाकर घण्टा बजायेगा। कुछ भक्त फूलमाला पहनायेंगे कुछ आरती का अभिनय करेंगे। इसी अभिनय के दौरान सीटी बजने पर बालक जिस मुद्रा में हैं, वैसे ही स्तब्ध बिना हिले- डुले खड़े हो जायेंगे। प्रशिक्षक सभी गणों का दृश्य देखकर विजेता गण की घोषणा करेगा। इस खेल में बालकों की कल्पनाशक्ति विकसित होती है। व्यायाम शाला, संस्कार वर्ग, बाजार, स्वतंत्रता संग्राम, चिकित्सालय, विद्यालय, बस स्थानक, कार्यालय, कारखाना, यात्रा, विवाह, दीपावली इत्यादि अनेक प्रसंगों को लेकर दृश्य बनाये जा सकते हैं।
१३. समूह बनाइये- इस खेल में विद्यार्थियों के सामान्यतः पाँच या छः समूह बनें, इस प्रकार से पर्चियाँ बनाई जायें। कुल पर्चियों के छः भाग कीजिए जैसे- देवता, स्वतंत्रता सेनानी, प्राणी, पक्षी, संत, राजा इत्यादि समूह बनाइये।
१. देवता- शंकर, विष्णु, ब्रह्मा, इंद्र, राम, कृष्ण, हनुमान, गणपति आदि।
२. स्वतंत्रता सेनानी- गांधी, नेहरू, राजगुरु,आजाद, भगतसिंह, सरदार पटेल आदि।
३. पशु- बाघ, सिंह, लोमड़ी, सियार, बन्दर, हिरण, कंगारु, खरगोश, बैल आदि।
४. पक्षी- कौवा, बगला, मैना, तोता, मोर, चिड़िया, चील, गरूड़, बतख, मुर्गी आदि।
५. सन्त- तुलसी, सूरदास, कबीर, नानक, ज्ञानेश्वर, तुकाराम, मीराबाई आदि।
६. राजा- शिवाजी, राणाप्रताप, छत्रसाल, चन्द्रगुप्त, अशोक, अकबर, औरंगजेब, शिवीराजा, राजा दशरथ, संभाजी आदि।
     उपर्युक्त नाम डालकर पर्चियाँ तैयार कीजिये। प्रत्येक गण में समान संख्या में पर्चियाँ रखिए। पर्चियाँ बाँटने से पहले खेल की रूपरेखा समझाइये। खेल खेलते समय कोई भी मुंह से बोलेगा नहीं। केवल अभिनय करते हुए घूमेगा। जैसे देवता आशीर्वाद की मुद्रा में घुमता दिखाई देगा। स्वतंत्रता सेनानी- ‘‘भारत माता की जय’’ ऐसे हाथ उठाकर नारा लगाने का मूक अभिनय करेगा। पक्षी उड़ने का, प्राणी चार पैर से चलने का, सींग का, अभिनय करते हुए ही घूमेंगे। बच्चे इससे अपने समूह के बालकों को एकत्रित करेंगे। सारी पर्चियाँ इकट्ठा कर शिक्षक के पास देकर जो समूह सबसे पहले पंक्ति में खड़ा होगा वह विजयी घोषित होगा। समूह में कितनी पर्चियाँ है यह पहले ही बता दिया जाता है। खेल समाप्त होने पर प्रत्येक बालक आगे आकर वह कौन था यह बताएँ तो खेल और भी आनन्ददायी होगा।

१४. चित्र पूरा बनाओ -इस खेल के लिये पहले १०- १० बालकों की पंक्ति बनाइये। पंक्ति के अंत में एक ड्रॉईंग पेपर और एक स्केच पेन रख दीजिए। खेल शुरू होते ही पंक्ति का पहला बच्चा पीछे जाकर चित्र बनाना प्रारम्भ करेगा। उस समय पाँच तक गिनती बोलनी है। जैसे ही गिनती बन्द होगी चित्र बनाना भी बन्द होगा। फिर दूसरा लड़का चित्र बनाने उठेगा तब तक पहला अपने स्थान पर आकर बैठ जायेगा। दूसरे के समय छः तक गिनती होगी। फिर तीसरे के समय सात तक इस तरह अन्तिम बालक तक १५ तक गिनती जायेगी। १५ तक गिनती में चित्र पूरा होना चाहिए। बच्चों को न बताते हुए सारे चित्र एकत्रित कीजिए। पंक्ति के पहले बच्चे को बुलाकर पूछिये कि उसने किस चित्र का प्रारंभ किया था? उसके बताने पर चित्र सभी बच्चों को दिखाइए। प्रायः चित्र कुछ और ही बन जाता है। जैसे मन्दिर का चित्र पहाड़ बन जाता है। हाथी, वृक्ष का रूप ले लेता है, गलत चित्र बना देखकर बच्चे खूब हंसते हैं। कभी- कभी ऐसा भी होता है, कि पहले बच्चे की कल्पना के अनुसार ही चित्र सही बनता है। ऐसे चित्र के लिए तालियाँ बजाकर अभिनन्दन कीजिए। इस खेल में यह सावधानी बरतनी होगी कि पहला बच्चा अपने मन का चित्र किसी से न कहे।
१५. आगे कदम स्पर्धा- इस खेल के लिये पाँच- छः बालकों की अलग- अलग पंक्तियाँ बनाइये। हर बालक को एक दूसरे की कमर पकड़कर शृंखला तैयार करनी है। एक- दो बोलते ही सबको सीमा रेखा तक जाकर फिर पीछे लौट आना है। दौड़ते हुए यदि शृंखला टूट गई तो वह समूह पराजित हो जायेगा। जो समूह सबसे पहले लौटेगा वह विजयी घोषित होगा। मैदान यदि छोटा हो तो तीन- चार फेरियाँ करवाइये।
१६. गुब्बारा प्रतियोगिता- आठ या दस बालकों की अलग- अलग पंक्तियाँ बनाइये। कम से कम दो पंक्तियाँ हों। आखिर के लड़के के हाथ में एक फूला हुआ गुब्बारा दीजिए। अन्तिम लड़का अपने हाथ का गुब्बारा आगे खड़े लड़के के पैरों के बीच से उसे देगा। इसी प्रकार हर लड़के को दोनों पैरों के बीच से गुब्बारा सबसे पहले बालक तक पहुँचाना है। पहले बालक के पास गुब्बारा आते ही उसे दौड़कर सीमा रेखा को छूकर पंक्ति के अन्त में खड़े होना है। फिर वही क्रिया, पैरों के बीच से गुब्बारा देना शुरू करनी है। पंक्ति के प्रत्येक बालक को सीमा रेखा छूकर इसी क्रम में पीछे आना है। जिस समूह के बालक सबसे पहले यह दौड़ पूर्ण करेंगे वे विजयी घोषित होंगे। इस बीच गुब्बारा फट जायेगा तो वह समूह पराजित समझा जायेगा।
१७. गुब्बारा दौड़- दस बालकों के दो समूह बनाइये। इसमें एक समूह के पास दस गुब्बारे दीजिए। अब इस समूह को इन गुब्बारों को उड़ाते हुए सीमा रेखा तक ले जाना है। दूसरे समूह को, एक भी गुब्बारा सीमा रेखा तक न जा पाये, इसलिये गुब्बारे फोड़ना है। दोनों समूहों को गुब्बारे उड़ाने का अवसर दीजिए। जो समूह अधिक गुब्बारे सीमा रेखा तक ले जाने में सफल होगा वह विजयी होगा।
१८. टपाल स्टेशन- सभी बालकों को एकत्रित करके गोला बनाएँ। हर बालक को एक- एक गाँव का नाम लेने के लिए कहें। (उदा.- दिल्ली, मद्रास, कलकत्ता, कानपुर इत्यादि, ध्यान में रखने हेतु प्रशिक्षक यदि सभी नाम लिखकर रखता है तो कोई आपत्ति नहीं है।) जिस बालक की बारी है, उसे बीच में बुलाकर उसके हाथ में कागज, रूमाल या कोई भी अन्य वस्तु देकर यह वस्तु पत्र है, ऐसा कहिए। इस बालक को किसी भी गाँव का नाम कहकर वहाँ पत्र पहुँचाने को कहिए। यदि बालक ने उक्त गाँव वाले बालक के पास पत्र पहुँचाया तो उसके लिए तालियाँ बजाएँ एवम् जिस बालक के पास पत्र पहुँचा है उसे अगले गाँव का नाम देकर पत्र पहुँचाने को कहें। यदि पत्र गलत बालक के पास पहुँचा होगा तो उसे दो बार और अवसर दिया जाये और यदि फिर भी गलती हुई हो तो वह बालक खेल से बाहर हो जायेगा। गाँव का नाम कहने से पूर्व सभी यदि नीचे की पंक्ति एक साथ गाते हैं तो खेल में और भी आनन्द आयेगा।
बालक- डाकिया भाई, डाकिया भाई पत्र हमारा लो, हमारे मामा के गाँव बिना भूले दो।
शिक्षक- मामा हमारे रहते हैं.................गाँव।
१९. शब्द ढूँढ़ो- सभी बालक गोलाकार बैठें। एक बालक दूर भेजा जाएगा। गोले में बालकों के द्वारा एक शब्द निश्चित किया जायेगा। दूर गया हुआ बालक लौटकर मण्डल के केन्द्र पर खड़ा रहेगा। संकेत मिलने पर (बजने पर) वह शब्द सभी को जारे से और तेजी से बोलना होगा। केन्द्र पर खड़े हुए बालक को वह शब्द कौन सा है यह बताना है। यदि उसे तीन प्रयत्नों में असफलता मिली तो उसे कुछ सामान्य दण्ड दें और दूसरे बालक से खेल प्रारंभ करें।
२०. रूमाल ले भागना- सारे बालक गोलाकार बैठें। गोले के केन्द्र में एक रूमाल इस प्रकार रखा जाय कि उसका बीच का भाग ऊपर उठा हुआ हो। सभी बालक पैर के पंजों पर (उकड़ूँ) बैठेंगे और दाहिने हाथ से बायाँ टखना और बायें हाथ से दाहिना टखना पकड़ेंगे। सीटी बजते ही (या आदेश होते ही) सभी बालक ऊपर बतायी स्थिति में उछलते, कूदते, हुए रूमाल मुँह से उठाने के लिये आगे बढ़ेंगे। रूमाल मुँह से उठाने वाला उसी स्थिति में गोले के बाहर आने लगे तब अन्य बालक इस रूमाल लेजाने वाले बालक को, अपनी उकडूँ स्थिति न छोड़ते हुए, धक्के मारकर गिराने का प्रयास करें। यदि यह बालक गिर जाता है तो वह बाहर हो जाता है। अन्य बालक भी जिनकी अपनी स्थिति टूट जाती है, अर्थात् हाथ छूट जाते हैं या एड़ियाँ टिक जाती हैं, वे भी बाहर हो जाते हैं। बचे हुए बालक पुनः खेल प्रारंभ करते हैं। स्थिति बनाये रखकर मुँह से रूमाल उठाकर गोले के बाहर आनेवाला बालक विजयी होता है।

२१. घोड़ा- सवारी को दो समान संख्या के दलों में बाँटें। एक दल के एक बालक से किसी लकड़ी के खम्भे को (या किसी बालक की कमर को) हाथों से पकड़कर खड़े होने को कहा जाता है। दल के अन्य बालक एक दूसरे के पीछे, अगले साथी की कमर को बांहों से पक्का पकड़ते हैं। इस प्रकार एक शृंखला सी बन जाती है। इन बालकों को यह सावधानी रखनी चाहिए कि प्रत्येक को अपना सिर नीचे रखना है। अब दूसरे दल के बालक कुछ दूरी से, एक के बाद एक दौड़कर आते हैं। आगे झुककर खड़े बालकों की पीठ पर उछलकर सवार हो जाते हैं। सवार हुए बालकों के पैर भूमि से नहीं लगने चाहिए, अन्यथा उनका दल बाहर हो जायेगा। घोड़ी बने हुए दल का सबसे पहला (पिछला) बालक अन्य की तुलना में हट्टा- कट्टा होना उचित होगा। जिस दल के अधिक बालक बिना गिरे सवार हो सकेंगे वह दल विजयी होगा। दुर्बल बालकों को इस खेल में न रखें।
२२. आओ, खेलें खेल- घेरे में एक जगह खाली छोड़ दो। दो बच्चों को घेरे के बाहर इस प्रकार खड़ा करो कि इनके मुँह विपरीत दिशा में हों। सीटी बजते ही दोनों खिलाड़ी जिस दिशा में उनका मुँह होगा, उधर दौड़ेंगे और जो स्थान खाली है, जहाँ पर वे खड़े थे, उसे पूरा करेंगे। वे आपस में जहाँ मिलें एक फुट के फासले पर खड़े होंगे। बायाँ हाथ मिलाएँगे तथा मुस्कुराएँगे। उसके बाद वे दौड़कर खाली स्थान को पूरा करेंगे। उनमें से एक बाहर बचेगा, जो फिर से दौड़ेगा किसी की पीठ पर हाथ लगायेगा। फिर मिलने पर, बायाँ हाथ मिलाएँगे और मुस्कराने की क्रियाओं को दुहराएँगे। इस प्रकार खेल चलता रहेगा। सभी का नम्बर जब तक न आ जाये तब तक यह क्रम चलेगा।
नोटः- १. दुबारा किसी को छूने की भूल न की जाय।
२. कभी- कभी ऐसा हिस्सा बच जाता है जहाँ से बारी नहीं आती। उधर के ही दोनों खिलाड़ियों को भी चुना जा सकता है और खेल खेला जा सकता है।
२३. काश्मीर किसका है- यह खेल बड़े और हट्टे- कट्टे बालकों के लिये है। एक गोला बनाकर सभी बालकों को उस पर खड़ा किया जाता है। किसी एक बालक को केन्द्र में खड़ा करके उसके चारों ओर लगभग १ मीटर त्रिज्या का गोल बनाया जाता है। अब यह बालक ऊँचे स्वर में पूछता है ‘‘काश्मीर किसका है?’’ शेष बालक उसी प्रकार ऊँचे स्वर में एक साथ कहते हैं ‘‘हमारा है’’ इस प्रकार तीन बार प्रश्न उत्तर होने पर सारे बालक दौड़कर बीच में खड़े बालक की ओर जाकर, उसे गोले से बाहर धकेलते हुए स्वयं गोले में खड़े होने का प्रयास करते हैं। सीटी बजते ही यह संघर्ष रूकता है और उस समय बीच में बने गोले में खड़े बालक को विजयी घोषित किया जाता है। अब यह विजयी बालक बीच के गोले में खड़ा होता है और सारा खेल उसी प्रकार पुनः खेला जाता है। धक्का मुक्की में कपड़ों को खींचना या फाड़ना नहीं है, यह पहले ही समझा दें ।।
२४. कुक्कुट युद्ध- सभी बालकों को समान संख्या में बाँटकर दो गण बनाएँ। बालकों को क्रमांक दें। क्रमांक पुकारते ही दोनों गणों के एक- एक बालक को कुक्कुट की स्थिति लेने को बताया जाता है। स्थिति इस प्रकार ली जाती है- बायीं टाँग मोड़कर पीछे की ओर बायें हाथ से पकड़ी जाती है और दाहिने हाथ से पीछे से बायाँ हाथ पकड़ते हैं। यह कुक्कुट स्थिति है। अब इस स्थिति में बायीं टाँग से फुदकते हुए, दोनों बालक एक दूसरे को कन्धे से धक्के मारकर खदेड़ने का प्रयास करते हैं। जो बालक गिर जाता है, या जिसका पैर या हाथ छूट जाता है। वह बाहर हो जाता है।
२५. झूल झूल झण्डा झूल- इस खेल में बालकों को गोले में (गोलाकार) दौड़ने को कहा जाता है। शिक्षक कुछ नारे (घोषणा) लगाते हैं जैसेः-
१. झूल झूल- झण्डा झूल। २. संगठन में शक्ति है।
३. शक्ति को- बढ़ाना है। ४. जय भवानी- जय शिवाजी।
(नारों का पहला भाग शिक्षक कहेगा, और दूसरा भाग ऊँचे स्वर में बालक पूरा करेंगे।) नारे लगाते समय बालक भागते रहेंगे। तत्पश्चात शिक्षक एकाएक १,२,३,४ में से किसी एक अंक (जैसे दो)कहेगा। यह सुनते ही बालक उस अंक के अनुसार आपस में गुट बनायेंगे। उदा. ‘दो’ कहने पर बालक दो- दो के गुट बनायेंगे जिस बालक या बालकों को किसी गुट में स्थान नहीं मिलता, वे ‘बाहर’ हो जाते हैं।
२६. साँप- केंचुली संख्या में बालकों को २ या ३ गणों में बाँटते हैं। सभी गण सामने मुँह करके इस प्रकार खड़े होते हैं कि प्रत्येक गण का बालक आगे झुककर अपना दाहिना हाथ दोनों पैरों के बीच से पीछे की ओर निकालता है, जिसे पीछे वाला बालक अपने बायें हाथ से पकड़ता है। इस प्रकार सभी बालक करते हैं।
गण का सबसे अगला बालक केवल दाहिना हाथ और सबसे पीछे वाला बालक केवल बायाँ हाथ काम में लाते हैं। इस प्रकार सभी गण सिद्ध होने पर सीटी बजते ही, प्रत्येक गण का सबसे पीछेवाला बालक नीचे भूमि पर पैरों को मिलाये रखकर और बिना हाथ छोड़े लेटता है और अन्य बालक पीछे हटते हुए, अपनी बारी आने पर भूमि पर लेटते हैं। पकड़े हुए हाथ छूटने न पायें, इसका ध्यान रखा जाता है। जो गण बिना हाथ छोड़े, (अर्थात् बिना शृंखला तोड़े)भूमि पर पहले लेटता है, वह विजयी होता है। खेल में, फिर से उठकर प्रारम्भिक स्थिति में आने को भी गणों को कहा जा सकता है।

२७. नौका युद्ध- बालकों को दो समान संख्या के गणों में बाँटकर उन्हें विपरीत दिशा में मुँह करके खड़ा किया जाता है। तत्पश्चात् प्रत्येक गण के बालक आपस में, एक दूसरे के हाथ में हाथ (बाँहों में बाँहें) डालकर और हाथों को अपनी छाती के आगे पक्का पकड़ेंगे। इस प्रकार प्रत्येक गण की एक पक्की शृंखला रूपी नौका बन जायेगी। सीटी बजते ही प्रत्येक गण की नाव दूसरे गण की नाव को, नारे लगाते हुए, पीठ से धक्के मारकर तोड़ने का प्रयास करेगी। जिस गण की श्रृंखला (नाव) टूट जायेगी, वह गण पराजित हो जायेगा।
२८. अग्निकुण्ड- सभी बालक हाथ पकड़कर बीच में बने गोले के चारों ओर खड़े होंगे। बीच में बना गोला अग्निकुण्ड होगा। सीटी बजते ही सारे बालक बिना हाथ छोड़े एक- दूसरे को अग्निकुण्ड में धकेलने का प्रयास करेंगे। जिन बालकों के दोनों पैर अग्निकुण्ड में चले जायेंगे, वे बाहर हो जायेंगे। इसी प्रकार जिन दो बालकों के हाथ छूट जायेंगे, वे भी बाहर हो जायेंगे।
२९. भेड़िया- बकरी बालक, दो को छोड़कर हाथ पकड़ कर एक पक्का गोला बनाएँगे। एक बालक गोले के अन्दर और दूसरा बालक बाहर होगा। अन्दर वाला बालक बकरी और बाहर वाला बालक भेड़िया होगा। भेड़िया बकरी को खाने के लिये गोले में घुसने का प्रयास करेगा। गोले पर खड़े बालक बकरी को अन्दर आने या बाहर जाने में कोई बाधा नहीं डालेंगे। परन्तु भेड़िये को अन्दर जाने या बाहर निकलने में कड़ी बाधा डालेंगे। भेड़िये द्वारा बकरी पकड़े जाने पर, ये दोनों बालक आपस में अपना रूप बदलेंगे और खेल शुरू रहेगा। भेड़िया- बकरी की एक जोड़ी के स्थान पर दो जोड़ियाँ बनाकर भी खेल खेला जा सकता है।
३०.घुटने पर रूमाल बांधना- दो बालक आमने सामने खड़े किये जाते हैं। दोनों बालकों के हाथ में एक रूमाल होगा और प्रत्येक बालक दूसरे के घुटने पर रूमाल बांधने का प्रयास करेगा, जबकि दूसरा उसे बाँधने नहीं देगा। दोनों के प्रयास में जो दूसरे के घुटने में रूमाल बाँधने में सफल होगा वह विजयी होगा। रूमाल बाँधने में एक गाँठ तो कम से कम होनी ही चाहिए।
३१. भूत की गली- बालकों को दो गणों में बाँटकर, प्रत्येक गण को दूसरे गण के सम्मुख आमने- सामने मुख करके दो पंक्तियों में लगभग १ मीटर की दूरी पर खड़ा किया जाता है। इस प्रकार ये दो पंक्तियाँ भूत की गली बनाती हैं। अब एक- एक करके बालक निर्धारित दूरी से और दिशा से दौड़ता हुआ आता है और इन दो पंक्तियों के बालक उसकी पीठ पर मुक्के या थप्पड़ लगाते हैं। मुक्के या थप्पड़ केवल पीठ पर ही लगाये जायें इस बात की सावधानी रखनी है। इसी प्रकार उसके मार्ग में कोई और रूकावट नहीं लानी है और न बालकों को अपना स्थान छोड़ना है। सभी बालक एक के बाद एक इस प्रकार दौड़ते हुए आ कर गली पर करते हैं। गली पार होने पर फिर से वे अपने स्थान पर गली में खड़े हो जायेंगे।
३२. स्थान दोगे?- सारे बालक गोलाकार में खड़े होंगे। एक बालक ‘‘क्ष’’ गोले में बालकों के आगे से जाते हुए ‘‘स्थान दोगे?’’ कहेगा। बालक ‘‘क्षमस्व’’ कहेंगे। इस प्रकार जब यह बालक ‘‘क्ष’’ पूछता हुआ घूम रहा हो तब गोले में कोई भी दो बालक संकेत कर के आपस में स्थान बदलने का प्रयास करेंगे। संकेत घूम रहे बालक के ध्यान में न आएँ यह देखा जाय। स्थान बदलते समय यदि ‘‘क्ष’’ ने उनमें से एक स्थान ले लिया, तो स्थान खोने वाला बालक ‘‘क्ष’’ जैसे ही, ‘‘स्थान दोगे?’’ कहकर घूमता जायेगा। इस प्रकार खेल चलता रहेगा।
३३. डाक आई- एक गोल घेरा खींचें और सब को उसमें बिठा दें। गेंद घेरे में बैठे किसी एक खिलाड़ी को दे दें। लम्बी सीटी बजते ही गेंद दायीं ओर से एक से दूसरे के पास होती हुई आगे बढ़ेगी। प्रशिक्षक कभी भी सीटी बजाये तो जिसके हाथ में गेंद होगी वह खड़ा होकर कुछ सुनाएगा। यदि कोई बालक हिचक महसूस करे तो उसे निम्रलिखित करने को या सुनाने को कहा जा सकता है। जैसे- हँस कर दिखना, गाना गाओ, चुटकुला सुनाओ, पहाड़ा सुनाओ, बकरी की बोली बोलो, रेल चलने की आवाज करो, कई तरह की छींकें निकालो, लंगड़ी टाँग से सब की परिक्रमा करो, हकलाकर अपना नाम बोलो, किसी की नकल उतारो आदि। यह खेल इसी प्रकार चाहे जितनी देर चलाएँ।
नोटः- १. सीटी के स्थान पर चम्मच थाली से आवाज की जा सकती है। गाना भी गा सकते हैं।
३४. पक्षी और पेड़- एक खिलाड़ी घेरे में खड़े हुए खिलाड़ियों में से किसी एक खिलाड़ी से पूछेगा ‘‘तुम्हारा क्या नाम है? तुम कहाँ रहते हो/रहती हो?’’ इसके उत्तर में वह अपने नाम व रहने के स्थान का पहला अक्षर बतायेगा। ‘प्रश्न पूछने वाला खिलाड़ी’ उसका उत्तर देगा। यदि वह सही उत्तर न दे पाया तो लंगड़ी चाल से सारे घेरे का चक्कर लगाकर घेरे पर खड़े किसी खिलाड़ी की कमर पर हाथ लगायेगा। अब वह खिलाड़ी घेरे के बीच में जाकर खड़ा होगा। वह किसी दूसरे खिलाड़ी से वही प्रश्न पूछेगा। जैसे- तुम्हारा क्या नाम है? तुम कहाँ रहते हो? उसके उत्तर में वह खिलाड़ी उत्तर देगा/ देगी। मेरा नाम ‘को’ है मैं ‘आ’ पर रहती हूँ। यदि प्रश्न पूछने वाला खिलाड़ी इसका उत्तर ‘‘कोयल आम के पेड़ पर रहती है।’’ दे देता है तो वह और किसी से प्रश्न करेगा।
नोटः- तोता, गौरेया, चिड़िया, कौआ, चील, बाज, मोर, मैना, कबूतर, कठफोड़वा आदि के रहने के स्थानों का पता करें व उनके सम्बन्ध में प्रश्न पूछे जायें।

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