१. विषय कठिन लगनाः- अधिक परिश्रम करें। अपने प्रयत्नों को आवश्यकता अनुसार बढ़ायें। थोड़ा विश्राम लेकर फिर आगे बढ़ें। बीच में थोड़ा मनोविनोद कर लें।
२. प्रारंभिक शिक्षा अपूर्ण अथवा दोषयुक्त होना, नींव कच्ची होनाः- प्रारम्भिक शिक्षा कमजोर होने पर पढ़ा हुआ समझ में नहीं आना, उस विषय में अरूचि के कारण याद नहीं रहना आदि स्वाभाविक है। ऐसी अवस्था में उन्नति के लिए आवश्यक है कि पहले की कक्षाओं की उस विषय की पुस्तकों को भली प्रकार से दोहराया जाए। भाषा में शब्द भण्डार व व्याकरण का ज्ञान बढ़ाया जाए। गणित व विज्ञान के सिद्धान्त समझे जाएं गणित हेतु पहाड़ों (tables) को ३० की संख्या तक कण्ठस्थ किया जाए। दुबारा मजबूत किया जाए, अध्ययन का विषय कुछ भी हो, समय -समय पर दोहरा लेने से निपुणता में वृद्धि हो जाती है तथा शिक्षण काल की एक गम्भीर कठिनाई दूर करने में मदद मिलती है।
३. पढ़ाई की गलत रीति का अवलम्बनः- शुरू की कक्षाओं में या प्रारम्भिक पढ़ाई में गलत तरीके अपनाने पर वे विकास की सीमा बाँध देते हैं। ऐसे में पढ़ने की विधियों में परिवर्तन करें। जैसे किसी विषय में यदि केवल महत्तवपूर्ण अंश पढ़ने का अभ्यास हो तो ऐसे में विषय का ज्ञान अधूरा रह जाता है। अतः संपूर्ण विषय पढ़ें। नोट बनाना प्रारम्भ करें। नोट लेने की अपनी विधि में परिवर्तन करें। आप जो भी परिवर्तन या विकल्प सोच सकते हों, उन्हें बारी- बारी आजमा कर देखें।
समझ- बूझकर योजना बनाएँ व प्रयोग की तैयारी करें। फिर पढ़ाई में बिना किसी तैयारी के कूद पड़ने का प्रयोग करें, बड़ी तत्परता से पढ़ें... फिर उपेक्षा से पढ़ें... रात में देर तक पढ़ाई करें...सबेरे जल्दी पढ़ें, हर अवस्था में परिणामों को देखें तथा अपने लिए सर्वोत्तम विधि को खोज लें।
४. रूचि का कम होना :- पढ़ाई मन लगाकर न करना, सीखने की इच्छा- शक्ति दुर्बल हो जाना, प्रयास कमजोर पड़ जाना तरक्की की गति पहले जैसी न रहना आदि। इसके लिए चाहे वास्तविक शौक न भी हो तो भी कार्य में मन लगाएं। यह बनावटी रूचि यथासमय वास्तविक रूचि में बदल जाती है। अपने उत्साह की अग्नि को तेजी से जलता रखें, अपनी पढ़ाई में आनन्द लेने का अभ्यास करें। इस पढ़ाई के (स्वयं के लिए) महत्व की कल्पना करें।
५. साधारणता को स्वीकार कर लेना :- जो पढ़ाई हो रही है सो ठीक है...पास तो हो ही जाएंगे आदि ऐसे में आगे उन्नति करने के लिए आत्म- प्रतियोगिता एक बड़ी प्रभावकारी प्रेरणा है। आत्म- प्रतियोगिता अर्थात अपने ही पिछले दिन या पिछले सप्ताह में की पढ़ाई से उन्नति करना। प्रगति का ग्राफ बनाएं। किसी आदर्श विद्यार्थी से भी ईर्ष्या रहित प्रतियोगिता कर सकते हैं। वैसे दूसरों के साथ प्रतियोगिता करने के बजाए आत्म- प्रतियोगिता अच्छी है, क्योंकि इससे कमजोर व बुद्धिमान दोनों को स्फूर्ति मिलती है।
६. थकानः- मानसिक व शारीरिक थकान के कारण भी पढ़ाई में शिथिलता आती है। वास्तव में शरीर के अंग प्रायः १०० वर्ष या उससे अधिक समय सक्षमता- पूर्वक बिना रूके निरंतर कार्य करते हैं। बिना थके व बिना रूके। जैसे हृदय, गुर्दे, फेफड़े आदि। ऐसे ही मस्तिष्क भी निरंतर कार्य कर सकता है। वास्तव में थकान का विचार ही थकान लाता है, इस बात पर चिन्तन एवं प्रयोग करें।
७. थकान का कारणः- मानिसक थकान का मुख्य कारण है- जी ऊबना। इससे कार्यक्षमता, पढ़ाई की गति कम हो जाती है, ऐसे में विषय बदल कर पढ़े, खुली हवा में थोड़ी कसरत कर थकावट की भावना को दूर करें। रूचिकर विषय को प्रबल उत्साह या शौक से पढ़ना शुरू करने पर थकान एक जादू समान उड़ जाएगी।
८. अगर मन को रूचिपूर्वक पढ़ाई में लगाए रखा जाए। पढ़ते समय शरीर को किसी प्रकार का परिश्रम या असुविधा न हो तो न थकावट होगी, ना ही पढ़ने की क्षमता में कोई कमी आयेगी।
९. उचित मात्रा में प्रकाश हो, प्रकाश की दिशा बांये कंधे के ऊपर से हो, कमरा हवादार हो, शांत हो, कुर्सी- टेबल ठीक ऊँचाई व आकार के हों। पढ़ते समय शरीर के अंग ढीले रहें, उन पर कम से कम खिंचाव पड़े। इससे थकान को दूर रखने में मदद मिलेगी।
१०. उत्तम रीति से संचालित शिक्षा जिसमें सीखने का संकल्प किसी प्रबल प्रेरणा से हो तो वह थकावट दूर रखने में बहुत प्रभावशाली होती है। प्रबल विचारों में थकान पर विजय पाने की बड़ी शक्ति भरी रहती है। जैसे देश का गौरव बढ़ाने की भावना, माँ- बाप का नाम रोशन करने की भावना।
११. मेरिट सूची में आने की महत्वाकांक्षा, पढ़ाई में उत्कृष्टता पाने की अभिलाषा, किसी को प्रसन्न करने की इच्छा, कर्त्तव्य पालन का संकल्प, लोक सेवा की कामना मानिसक व शारीरिक दक्षता बढ़ाने वाले हैं। एक प्रबल विचार, चाहे वह कुछ भी हो, मनुष्य को असाधारण काम करने के लिए प्रेरित करता है। किसी उच्च आदर्श या भावना से प्रेरित होकर मनुष्य दुःख और कष्ट भूल जाता है और कठिनाइयों का सामना करते हुए प्रयत्नशील रहता है, जब तक कि वह अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लेता। जैसे जन्मभूमि की आजादी, सत्य के मार्ग पर चलने का संकल्प।
१२. थकान व शिथिलता के बावजूद यदि दृढ़तापूर्वक प्रयत्न जारी रखा जाए तो शक्ति भी पुनः लौट आती है। अरूचि और थकावट की अवहेलना कर काम में डटे रहा जाए तो हम मानसिक शक्ति के महान् स्रोतों को पा सकते हैं। आशातीत, उच्चतम और चमत्कारपूर्ण ढंग से कार्यों को पूर्ण कर सकते हैं।
१३. क्रोध या आवेश में व्यक्ति असाधारण शक्ति का प्रदर्शन करता है। एक गाय ममतावश बछड़े की रक्षा के लिए शेर से भी भिड़ जाती है। माता अपनी संतान को खतरे में देख शेरनी के समान हो जाती है। किन्हीं संतो, विचारकों की प्रेरणा से व्यक्ति बड़े विलक्षण काम कर डालते हैं। अतः सच्चाई तो यह है कि हममें से अधिकांश लोग अपनी दक्षता की चरम सीमा तक कभी नहीं पहुँचते। अलबेलेपन में, निचले स्तर पर ही, अज्ञात जीवन जीकर, इस संसार से विदा हो जाते हैं।
१४. सभी के भीतर गुप्त शक्तियों के भण्डार दबे रहते हैं। इन खजानों को पाने का रहस्य है, कि ठहराव काल में भी शक्तियों की पुनरावृत्ति अपने कार्य को रोके नहीं, जब तक की शक्ति की दूसरी पर्त ना खुल जाए। ऐसे समय में शवासन द्वारा शरीर को तथा ध्यान द्वारा मन को थोड़ी देर विश्राम देना अत्यंत उपयोगी है। लगातर कठिन परिश्रम से ही यह योग्यता प्राप्त होती है कि आप अपनी गुप्त शक्तियों का कठिन कार्य के समय इच्छानुसार आह्वान कर सकें।
अ. पढ़ाई में अच्छे अंक कैसे लाएँ?
इसके लिए एक कार्यशाला सम्पन्न की गई। कार्यशाला में विद्यार्थियों के कुल बारह ग्रुप बनाये गये थे। जिनमें निम्र विषयों पर विचार निष्कर्ष निकाले गये ः-
१.पढ़ाई में अच्छे अंक पाने के लिए आप क्या- क्या करेंगे?
२. अगर आपको कुछ दिनों के लिए आपकी कक्षा में लीडर का रोल करने के लिए कहा जाय तो आप क्या- क्या करेंगे?
३. एक आदर्श विद्यार्थी एवं आदर्श नागरिक के रूप में आपके क्या कर्त्तव्य है?
४. घर में अपनी माँ एवं पिता जी की आप क्या- क्या मदद कर सकते हैं?
५. आपके आदर्श महापुरुष कौन- कौन हैं एवं उनकी किन विशेषताओं /प्रेरणओं से आप प्रभावित हुए ?
६. व्यवहार कला (Art of Behaviour) नीचे ‘‘पढ़ाई में अच्छे अंक पाने के लिए’’ विषय पर जो विचार- विमर्श हुआ उनके निष्कर्ष दिये जा रहे हैं।
ब. नियमित पढ़ाई के दिनों में
१. स्कूल में प्रतिदिन नियमपूर्वक उपस्थिति देंगे। प्रयास करेंगे कि कभी अनुपस्थित न हों।
२. दृढ़ संकल्प करेंगे कि परीक्षा में इतने प्रतिशत अंक लाने ही हैं, फिर उस अनुसार तैयारी में जुट जायेंगे।
३. अपनी पढ़ाई को योजनाबद्ध तथा व्यवस्थित बना कर करेंगे। समय का एक दिनचर्या चार्ट बनायेंगे उसका दृढ़ता पूर्वक पालन करेंगे।
४. स्मरणशक्ति बढ़ाने के विभिन्न तरीकों को सीखकर उनका अपनी पढ़ाई में प्रयोग करेंगे। पूरा मन लगाकर पढ़ाई का अभ्यास करेंगे।
५. पढ़ाई शुरु करने से पहले मन ही मन ईश्वर का स्मरण करेंगे (तमसो मा ज्योतिर्गमय..)
६. क्लास में शिक्षक जो पढ़ाते हैं उसे ध्यान पूर्वक सुनेंगे तथा नोट्स बनायेंगे। शिक्षक जो पढ़ाने वाले होंगे उसे पहले से घर पर पढ़ लेंगे।
७. किसी प्रश्न का हल न आने पर अथवा कोई बात समझ में न आने पर अपने शिक्षक, माता- पिता अथवा योग्य मित्रों की मदद लेंगे।
८. हम पढ़ाई में रुचि पैदा करेंगे। समझते- हुए पढ़ेंगे। रटेंगे नहीं लेकिन मूल बातों को स्पष्ट करेंगे। अवसर आने पर उसका अपने जीवन में प्रयोग भी करते रहेंगे।
९. पूरे साल नियमित पढ़ाई करेंगे ताकि परीक्षा के पहले ज्यादा पढ़ाई करने का तनाव न रहे। केवल दोहराने व अभ्यास की जरूरत रहे।
१०. टी.वी., रेडियो, टेपरिकार्डर आदि देखते- सुनते, लेटे- लेटे या आराम कुर्सी पर बैठ कर पढ़ाई नहीं करेंगे। आलस्य में अपना समय बर्बाद नहीं करेंगे।
११. जब मित्रों से मिलना हो तब उनके साथ पढ़ाई के विषय में चर्चा करेंगे।
१२. हम अपने लिखने की गति बढ़ायेंगे ताकि प्रश्न पत्र समय से पूरा कर सकें। समय कम होने पर चित्रों को मुक्तहस्त से बनायेंगे। इसका पहले से अभ्यास करेंगे।
१३. अपनी हस्तलिपि को गति में लिखते हुए भी सुंदर बनाने का अभ्यास करेंगे ताकि पेपर्स अधूरे न छूट जायें।
१४. पढ़ने- लिखने में एकाग्रता बढ़ाने के लिए प्रतिदिन ध्यान, प्राणायाम व योग साधना का अभ्यास करेंगे।
१५. शरीर को खान- पान की शुद्धि तथा व्यायाम आदि द्वारा स्वस्थ रखेंगे ताकि बीमारी आदि से शारीरिक, मानसिक व पढ़ाई का नुक्सान न उठाना पड़े।
स. परीक्षा के दिनों में
१. सकारात्मक चिंतन करेंगे कि हम अपने लक्ष्य को प्राप्त करके ही रहेंगे।
२. हर विषय के लिए संक्षिप्त नोट्स की एक छोटी पॉकेट डायरी बनायेंगे। उनमें महत्वपूर्ण बिन्दु लिखेंगे। जब- जब भी समय मिलेगा उसे देखकर मन ही मन विस्तार से पढ़ाई का मनन करेंगे।
३. पिछली बार जिस भी विषय में अंक कम आये होंगे, उस पर अधिक मेहनत करेंगे।
४. पहले के पेपर्स को परीक्षा हाल की तरह अभ्यास के रूप में हल करेंगे।
५. अगर कोई पेपर अच्छा न गया हो तो उस पर अनावश्यक चिंता करने के बजाए अगले पेपर्स की और अच्छी तरह तैयारी करने के लिए संकल्प पूर्वक जुट जायेंगे।
६. प्रवेश पत्र पर लिखें निर्देशों को पहले से ही अच्छी तरह पढ़ लेंगे।
द. परीक्षा हॉल में
१. परीक्षा हॉल में हमारे केवल दो साथी हैं (१) हमारी वर्ष भर की नियमित पढ़ाई (२) हमारा आत्म विश्वास। यह दोनों साथ होने पर भय की कोई बात नहीं।
२. परीक्षा देने जाते समय आत्म विश्वास पूर्वक सोचेंगे कि मैंन पढ़ा है उसी में से पेपर आने वाला है।
३. पेपर लिखने के पहले हम दो क्षण ईश्वर का स्मरण करेंगे फिर बिना घबराये पेपर को हल करना प्रारम्भ करेंगे।
५. प्रश्नों को ध्यान पूर्वक पढ़कर जो पूछा गया है उसी का जवाब देंगे। अनावश्यक नहीं।
६. प्रश्न पत्र डरते हुए हल नहीं करेंगे बल्कि आत्म विश्वास के साथ करेंगे। अपने आत्म बल व इच्छा शक्ति को बढ़ायेंगे।
७. जो प्रश्न अच्छी तरह से आते होंगे उन्हें पहले हल करेंगे, शेष उनके बाद। आवश्यकता अनुसार इनके लिए जगह खाली छोड़कर आगे के सहज प्रश्न पहले हल करेंगे।
८. परीक्षा हॉल में इधर उधर देखकर, अन्य अनावश्यक कार्यों में समय व्यर्थ न गंवायेंगे। अनुचित तरीकों से सफलता प्राप्त करने के बजाय अपने परिश्रम व आत्मबल द्वारा प्राप्त कम अंकों पर ही संतोष करेंगे। आगे और अधिक मेहनत कर उसकी भरपाई का प्रयास करेंगे।
९. परीक्षा देने के बाद पेपर के बारे में अनावश्यक बातचीत से आत्मविश्वास कम होता है। अतः सीधे घर जाकर अगले पेपर की तैयारी में मन लगायेंगे।