बाल संस्कारशाला मार्गदर्शिका

अध्याय- ४ जीवन विद्या

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       शिक्षा और विद्या में मौलिक अन्तर है। शिक्षा उसे कहते हैं जो जीवन के बाह्य प्रयोजनों को पूर्ण करने में सुयोग्य मार्गदर्शन करती है। साहित्य, शिल्प, कला, विज्ञान, उद्योग, स्वास्थ्य, समाज आदि विषय शिक्षा की परिधि में आते हैं। विद्या का क्षेत्र इससे आगे का है- आत्मबोध, आत्मनिर्माण, कर्त्तव्य निष्ठा, सदाचरण, समाज- निष्ठा आदि वे सभी विषय विद्या कहे जाते हैं, जो व्यक्ति के चिन्तन, दृष्टिकोण एवं सम्मान में आदर्शवादिता और उत्कृष्टता का समावेश करते हैं।

       विद्या दया, करुणा, ममता, उदारता, परमार्थ- परायणता, सेवा- सहकारिता, शिष्टता, शालीनता, चरित्र- निष्ठा, शौर्य- साहस, न्याय- प्रियता, सुव्यवस्था, समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, बहादुरी जैसे गुणों का विकास करती है।

       शिक्षा और विद्या दोनों के समन्वय से ही व्यक्ति जीवन जीने की कला सीखता है। अतः यह परम आवश्यक है कि बालकों में बपचन से ही शिक्षा के साथ- साथ विद्या का भी सवंर्धन किया जाए, ताकि वे बड़े होकर एक सफल व्यक्ति, महामानव बन सकें। इसके लिए सबसे पहली आवश्यकता है सुव्यवस्थित जीवन- विद्या अध्याय में बालकों के लिए एक व्यवस्थित दिनचर्या एवं अभ्यास क्रम दिया गया है, जिसे जीवन में अपनाने हेतु बालकों को प्रयत्न करना है। इससे बालकों के जीवन में सुव्यवस्था, नैतिकता, आस्तिकता, कर्त्तव्य परायणता जैसे गुणों का विकास होगा। आचार्य एवं अभिभावक उन्हें किस प्रकार सहयोग करें, इस हेतु मार्गदर्शन देने का भी प्रयास किया गया है।

१. जागरण

आचार्य क्या करें ??
-सूर्योदय के पूर्व जागने के लाभ बतायें।
-संसार के समस्त जीव जन्तु सूर्योदय के पूर्व जाग जाते हैं।
-प्रातः प्राणवायु स्वास्थ्यवर्धक एवं प्राणवर्धक होती है।
-प्रातः जगने वाला व्यक्ति स्वस्थ समृद्ध एवं बुद्धिमान बनता है।
-प्रातः सूर्योदय से पूर्व जागने से शरीर में ऐसे हारमोन्स निकलते हैं, जो व्यक्ति को सदाचारी एवं कर्त्तव्यनिष्ठ बनाने में मदद करते हैं।
-हमारे ऋषि, महामानव, अवतार सूर्योदय से पहले जागते थे। (स्व- विवेक एवं स्वाध्याय से उदाहरण प्रस्तुत करें)
-प्रातः सूर्योदय पूर्व जागरण हेतु छात्रों से संकल्प करायें।
-कर (हाथ) दर्शन का महत्व छात्रों को समझायें।
-हाथ मनुष्य के कर्म के प्रतीक हैं।
-अपना भला- बुरा इन्हीं हाथों से करते हैं, अतः हमारे हाथ पवित्र और परिश्रमी बनें।
-निम्रलिखित मंत्र याद कराएँ।
कराग्रे वस्ते लक्ष्मीः कर मध्ये सरस्वती।
कर मूले गोविन्दः प्रभाति कर दर्शनम्॥
भावार्थ- हाथों के अग्रभाग पर लक्ष्मी, मध्य में सरस्वती और मूल में गोविन्द का निवास है।
-व्यवस्थित और अव्यवस्थित जीवन के अलग- अलग चार्ट छात्रों को दिखाकर व्यवस्थित जीवन के प्रति उन्हें प्रेरित करें।
-आत्मबोध की साधना का स्वरूप सरल शब्दों में समझायें। हर दिन नया जन्म और हर रात नयी मौत है। (मनुष्य की आत्मा परमात्मा का अंश है, मनुष्य भगवान का राजकुमार है, महान है तथा अपने भाग्य का निर्माता आप है।)
-दिनभर की दिनचर्या का स्वरूप छात्रों को स्पष्ट करें अच्छे काम करने और बुरे काम से बचने की संकल्पशक्ति का विकास करायें।
-धरती माता को नमन् के मंत्र का अभ्यास कराएँ।
सत्यं वृहदृतमुग्रं दीक्षा तपो ब्रह्म यज्ञः, पृथिवीं धारयन्ति
सा नो भूतस्य भव्यस्य, पत्न्युरुं लोकं पृथिवी नः कृणोतु॥
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः।

अथर्ववेद १२/१/१

भावार्थ- सत्य निष्ठा, विस्तृत यथार्थ बोध, दक्षता, क्षात्रतेज, तपश्चर्या, ब्रह्मज्ञान और त्याग- बलिदान, ये भाव मातृभूमि का पालन- पोषण और संरक्षण करते हैं। (इन्हीं गुणों से धरती माता प्रसन्न होती है।) भूतकालीन और भविष्य में होने वाले सभी जीवों का पालन करने वाली मातृभूमि हमें विस्तृत स्थान, उदार हृदय प्रदान करे। माँ पृथ्वी हम आपको बारम्बार प्रणाम करते हैं।

महत्व समझायें-

    पृथ्वी हमारी माता है, जो हमें अन्न, जल एवं वस्त्र प्रदान करती है हमें जीवन भर धारण करती है तथा हमारा पालन- पोषण करती है, भारत भूमि देवभूमि है, जिस पर अनेक अवतारों ऋषियों एवं महापुरुषों ने जन्म लिया है।

बालक क्या करें?

- प्रातः सूर्योदय के पूर्व संकल्प पूर्वक जागें।
- यह न सोचें कि हमें कोई जगायेगा तब ही उठेगें। स्वयं ही उठ जायें। यदि घड़ी हो तो स्वयं घड़ी अलार्म भर कर अपने पलंग के पास स्टूल आदि पर रखें, जैसे ही अलार्म बजे, तुरंत जाग जायें, उठते ही आलस्य त्यागकर बिस्तर पर बैठ जायें, कमरे में लगे सूर्योदय व गायत्री माता के चित्र का दर्शन करें।
- दोनों हथेलियाँ आपस में रगड़ कर चेहरे पर, आँखों, व कानों पर फिरायें। इससे निद्रा दूर होती है तथा चेतनता आती है।
- दोनों हथेलियों को सामने करके दर्शन करें तथा मंत्र बोलें-
कराग्रे वस्ते लक्ष्मी कर मध्ये सरस्वती।
कर मूले तु गोविन्दः प्रभाते कर दर्शनम्॥
- शान्त बैठकर आंखें बंद कर लें तथा प्रतिदिन नया जन्म मानकर आत्म चिंतन करें, एवं दिन भर अच्छे काम करने का संकल्प करें। दिनभर में क्या- क्या करना है, उसकी मन ही मन योजना बनाएँ। (इसे आत्मबोध साधना कहते हैं)
- पृथ्वी माता को प्रणाम करें-
सत्यं वृहदृतमुग्रं दीक्षा तपो ब्रह्म यज्ञः, पृथिवीं धारयन्ति
सा नो भूतस्य भव्यस्य, पत्न्युरुं लोकं पृथिवी नः कृणोतु॥ नमस्तस्यै...
मंत्र बोलें अथवा गायत्री मंत्र बोलकर बिस्तर त्याग दें।
- रात को सोते समय प्रातः जल्दी उठने का संकल्प करके सोएँ।
माता पिता क्या करें?
-अलार्म घड़ी एवं तांबे के लोटे में जल की व्यवस्था बना दें।
-कमरे में उगते सूर्य का, गायत्री मंत्र का चित्र इस तरह टांगें कि उठते ही उस पर बच्चे की दृष्टि पड़े।
-माता- पिता स्वयं भी सूर्योदय के पूर्व जगें
-बच्चा जब चरण स्पर्श करे, तो स्नेहपूर्वक उसके सिर पर हाथ फेरकर उसे आशीर्वाद दें।
-जो बच्चों को सिखाते हैं, उस पर बड़ों को भी अमल करना है, तभी वह बच्चे के मन मस्तिष्क पर स्थाई रूप से अंकित होगा, बच्चों के दैनिक क्रियाकलापों में प्रेरणा- प्रोत्साहन दें।

२. सुव्यवस्था

आचार्य क्या करे?
-- बच्चों को अपने वस्त्र, जूते, शयन कक्ष एवं परिसर की स्वच्छता एवं व्यवस्था का महत्व बताएँ।
-- श्रम के प्रति सम्मान के भाव जगाएँ, श्रमेव जयते।
तुलनात्मक चित्रः-
-- एक लड़का कुर्सी पर बैठकर पढ़ रहा है, सामने मेज पर किताबें व्यवस्थित रखी दिखायी दे रही हैं। कमरे में हर वस्तु यथा स्थान रखी है। वस्त्र हैंगर पर टंगे हैं, एक ओर जूते चप्पल लाइन से रखे हैं, कमरे में बिस्तर पर साफ चादर ठीक से बिछी है, सूर्योदय का चित्र टंगा है।
-- उपरोक्त के विपरीत अव्यवस्था का चित्र बनाएँ। दोनों का तुलनात्मक दृश्य प्रस्तुत करें।
-- बच्चों से निर्णय करायें और जीवन के हर क्षेत्र में व्यवस्थित रहने का संस्कार विकसित करें।
बालक क्या करें ??
-- बिस्तर से उठते ही अपने बिस्तर को ठीक करें, तकिया एवं ओढ़नी को व्यवस्थित कर निर्धारित स्थान पर रख दें।
माता पिता क्या करें?
-- बच्चों को अपने बिस्तर की स्वच्छता आदि छोटे- छोटे कार्य स्वयं करने के लिए प्रेरित करें। प्यार से प्रेरणा दें।

३. ऊषापान

बालक क्या करें?
-- बिस्तर से उठकर रात्रि से तांबे के लोटे में रखा जल जितना पी सकें- पियें?
माता पिता क्या करें ?? आचार्य क्या करें?
उषापान का लाभ एवं तरीका बतायें। जैसे-
-पेट साफ हो जाता है, कब्ज का नाश होता है,
-शरीर- स्वस्थ्य रहता है, दिनभर ताजगी बनी रहती है।
-पेट से ही अनेक बीमारियाँ पैदा होती हैं अतः ऐसी बीमारियों से रक्षा हो जाती है।
-शरीर की गर्मी शान्त हो जाती है, मन- मस्तिष्क शान्त रहता है।
-जल चिकित्सा विज्ञान का सामान्य ज्ञान दें।

४. माता- पिता को प्रणाम

बालक क्या करें?
-- प्रातः जागरण के उपरान्त माता पिता रूपी साक्षात् देवों का चरण स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त करें।
आचार्य क्या करे?
-माता- पिता को प्रणाम/ चरण स्पर्श का महत्व बतायें।
-- मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, गुरु देवो भव का भाव समझायें। बड़ों को सम्मान देने का संस्कार विकसित करें।
अभिवादन शीलस्य नित्य वृद्धोप सेविनः
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयु आयुःविद्या यशोबलम्

भावार्थ- जो नित्य प्रणाम करने के स्वभाव वाला और बड़ों की सेवा करने वाला है, उसकी आयु, विद्या, यश, और बल, ये चारों बढ़ते हैं।
उदाहरणः- मार्कण्डेय ऋषि के बचपन का उदाहरण।

-- मार्कण्डेय अल्पायु थे। वे नित्य प्रति बड़ों का चरण स्पर्श करते थे। एक दिन एक ऋषि उनके घर पधारे। अपनी आदत के अनुसार बालक मार्कण्डेय ने चरण स्पर्श किया, तो ऋषि ने उन्हें आयुष्मान भवः का आशीर्वाद दे दिया। फलस्वरूप उनके भाग्य का अल्पायु योग समाप्त हो गया और वे पूर्ण आयु को प्राप्त हुए।
-- श्री हनुमान द्वारा सुरसा एवं सीता माँ को प्रणाम करने पर उन्हें यश, बल एवं बुद्धि का आशीर्वाद मिला।
-प्रातः व्यक्ति एकदम शान्त होता है तथा प्राण ऊर्जा से संपन्न होता है अतः प्रातःकाल शान्त मन से दिया गया आशीर्वाद फलित होता है।
प्रातःकाल उठि के रघुनाथा नावहि मातु पिता गुरु माथा।
चौपाई का अर्थ बताएँ और चौपाई याद कराएँ।
माता पित्रोस्तुयः पादौ नित्यं प्रक्षालयेत सुतः
तस्य भागीरथी स्मान महन्यहनि जायते।

भावार्थ- जो पुत्र प्रतिदिन माता पिता के चरण छूता है, उसका नित्य प्रति गंगा स्नान हो जाता है।
नास्ति मातुः परं तीर्थं, पुत्राणांपितुस्तथा
नारायण समवेताहि, चैव परत्र च॥


भावार्थ- पुत्रों के लिए माता तथा पिता से बढ़कर दूसरा कोई भी तीर्थ नहीं है। माता पिता दोनों इस लोक में और परलोक में भी निःसंदेह नारायण के समान है।

चारि पदारथ कर तल ताके, प्रिय पितु- मातु प्रान सम जाके।
सुनु जननी सोई सुत बड़भागी, जो पितु मातु वचन अनुरागी॥

५. शुचिता

आचार्य क्या करें ??
-- आचार्य बतायें कि- शौच के पश्चात् हाथ ठीक से कीटाणुनाशक साबुन या राख से धोना चाहिए। इससे बीमारियाँ नहीं फैलती हैं।
-- शौच के पश्चात शौचालय में पर्याप्त पानी डालकर साफ कर दें।
-- शौचालय में अनावश्यक चेष्टाएँ न करें जैसे- बात करना, पेपर पढ़ना आदि।
-- दंत मंजन/ब्रश करने का सही तरीका बताएँ। दातुन- ब्रश हल्के हाथों से करें। सामने और पीछे दोनों ओर से दाँतों को साफ करें। मसूड़ों की मालिश अंगुली से करें, मंजन करते समय यहाँ- वहाँ न घूमें, दातों की सफाई न होने से उनमें अन्न कण फँसे रह जाते हैं, जिनमें सड़न होती है, दाँतों में कालापन पैदा होता है। दाँत सड़ते हैं, उनमें छेद (केविटी) हो जाते हैं तथा दर्द देते हैं, अतः कुछ भी खाने के बाद अच्छे से कुल्ला करना चाहिए।
-टूथ पेस्ट की तुलना में मंजन/दातुन ज्यादा गुणकारी है। नीम, बबूल एवं करंज के पेड़ों की नरम डंडियों की दातुन बनाकर बताएँ। उसे चबाकर एक सिरे पर ब्रश बना लें, उससे हल्के- हल्के एक- एक दाँत घिसें, ऊपर एवं आगे पीछे साफ करें। जीभी से जीभ साफ करें। तीन उंगलियों से जीभ को रगड़कर कुल्ला करें, अंगूठे से तालू साफ करें।
-आँखों पर ठण्डे पानी का छींटा लगाने की प्रक्रिया बताएँ। गले का कफ एवं नाक साफ करें।
-मजबूत दाँत और स्वस्थ मसूड़े स्वास्थ्य के आधार हैं, चित्र के माध्यम से समझाएँ।
-गन्दे दाँतों की गन्दगी एवं कीटाणु पेट में पहुँचकर बीमारी पैदा करते हैं। मंजन न करने से मुँह से दुर्गन्ध आती है तथा पायरिया जैसे रोग हो जाते हैं और समय से पूर्व ही दाँत उखड़वाने पड़ते हैं।
बालक क्या करें ??
-प्रातः उषापान के बाद शौच को जाएँ।
-शौचालय में शान्त बैठें, शौच के बाद शौचालय में पानी डालें।
-कीटाणुनाशक साबुन, राख या शुद्ध मिट्टी से हाथ धोएँ।
-दन्त मंजन, आयुर्वेदिक मंजन, बबूल या करंज की दातुन अथवा ब्रश से दाँत साफ करें।
-अपने वस्त्रों, जूतों की सफाई, शयन कक्ष की सफाई स्वयं करें। सप्ताह में एक दिन शौचालय एवं स्नानगृह की सफाई करें।
-मालिश एवं व्यायाम तथा दस मिनट प्रज्ञायोग करें।
-स्नान- ताजे या गुनगुने जल से शरीर रगड़कर स्नान करें। बाल धोने के लिए शिकाकाई रीठा एवं आँवले का पाउण्डर, मुलतानी मिट्टी आदि का उपयोग करें।
-स्वच्छ एवं धुले हुये वस्त्र पहनें। बालों में तेल लगाएँ एवं कंघी करें। बाल छोटे रखें।
विशेषः- उपरोक्त दिनचर्या को अपनाने हेतु अपने भाई- बहिनों को सहयोग करें। ऐसा न हो कि स्वयं के कारण परिवार के अन्य व्यक्तियों को असुविधा हो।

माता पिता क्या करें?

-शौच के उपरान्त बच्चे को ठीक से हाथ धोना सिखाएँ।
-आयुर्वेदिक मंजन, दातुन, ब्रश बच्चे की आयु के अनुरूप उपलब्ध कराएँ, ब्रश करना सिखाएँ।
-कुछ भी खाने के उपरान्त कुल्ला कर दाँत साफ करने की आदत डालें।
-प्रत्येक क्रिया हेतु सुविधा व व्यवस्था बनाएँ।
-बाल धोने हेतु आयुर्वेदिक पाउडर तैयार करके रखें।
-स्वयं भी स्वदेशी बनें एवं उसमें गौरव अनुभव करें, तथा बच्चों को प्रोत्साहित करें।
-योगासन का अभ्यास स्वयं भी करें और बच्चों से भी करवाएँ। बच्चा देखकर सीखता है।
-बालक के अन्य भाई- बहिन भी उचित दिनचर्या का अभ्यास करें जिससे बालक को प्रेरणा मिल सके।
-- माँ बालक के कपड़ों का ध्यान रखे। धुले एवं स्वच्छ कपड़े ठीक से पहनाएँ।
-घर में स्वच्छता का वातावरण रखें। स्वयं भी व्यवस्थित रहने की आदत डालें।

अ. स्नान

-ताजे पानी से स्नान करें, इससे शरीर में रक्त संचार होता है।
-शरीर को रगड़ कर स्नान करने से मैल, पसीना छूट जाता है, आवश्यकतानुसार ही साबुन का प्रयोग करें।
-बालों को शिकाकाई, आँवला एवं रीठा पावडर से धोएँ। साबुन, शैम्पू से बाल जल्दी सफेद होते एवं झड़ते हैं।
-पानी का अपव्यय न करें। जल ही जीवन है, इसका महत्व समझाएँ।
-नहाने के बाद स्वच्छ एवं नरम सूती तौलिया से रगड़ कर शरीर साफ करें।

चित्र-

-बालक मंजन कर रहा है।
-नल से पानी बाल्टी में भर रहा है, दूसरी ओर बालक रगड़ कर स्नान कर रहा है, तौलिया खूँटी पर टँगी है।
ब. मालिश व्यायाम
तेल मालिश के लाभ-
-त्वचा स्वस्थ एवं कान्तिवान बनती है।
-शरीर में रक्त संचार ठीक होता है।
-शरीर स्वस्थ और लचीला बनता है।
-योग व्यायाम- पुस्तिका अनुसार कक्षा में अभ्यास कराएँ एवं इसके प्रति रुचि जागृत करने हेतु उनके लाभ बताएँ।
-चित्र पोस्टर बनाकर कक्षा में लगाएँ। प्रज्ञायोग के चित्र पोस्टर बनायें।
-अभ्यास कराते समय आवश्यक निर्देश दें।
-आसन धीरे- धीरे करें ,, अनावश्यक जोर जबरदस्ती से आसन न करें। सही स्थिति में आसन करें। प्रत्येक आसन के बाद गहरी श्वास लेकर विश्राम करें।
-प्राणायाम साथ- साथ करें।
प्राणायाम का सामान्य नियम-
जब आगे की ओर झुकें तो साँस छोड़ते हुए और जब पीछे की ओर झुकें तो साँस भरी रहे।
-आचार्य स्वयं योग का नियमित अभ्यास करें, जिससे बालकों को आसनों संबंधी अनुभव का लाभ मिल सके।

६. उपासना

आचार्य क्या करें ??

-- उपासना के मंत्र पवित्रीकरण, आचमन, शिखावंदन, तीन प्राणायाम, न्यास एवं पृथ्वी पूजन के मंत्रों का सही- सही लयबद्ध अभ्यास कराएँ तथा प्रक्रिया एवं उसकी भावना समझायें। इनके साथ उन दैवीय सूत्रों को जीवन में अपनाने हेतु प्रेरित करें।
-- पद्मासन/सुखासन में बैठना सिखाएँ। ध्यान मुद्रा सिखाएँ ,, गायत्री मंत्र एवं अन्य मन्त्रों का अभ्यास कराएँ।
-- जप के साथ उगते हुए सूर्य (सविता) का ध्यान करना सिखायें, भाव करें सविता का स्वर्णिम प्रकाश हमारे शरीर में प्रवेश कर रहा है, हम प्रकाशवान् बन रहे हैं, हमारे शरीर में शक्ति, हृदय में भक्ति- संवेदना तथा मस्तिष्क में सद्ज्ञान बुद्धि का विकास हो रहा है। सूर्यार्घ्यदान का मंत्र सिखाएँ। भावना बताएँ कि साधना की ऊर्जा को भगवान् को अर्पण कर रहे हैं। जिससे हमारा और विश्व का कल्याण हो रहा है।
पोस्टर- ध्यान चित्र, ध्यान योग के लाभ का चित्र।
-- गायत्री मंत्र एवं उसकी साधना पर प्रकाश डालें।
-- श्रीराम, श्रीकृष्ण एवं ऋषियों की उपास्य गायत्री।
विशेषः- विभिन्न धर्म सम्प्रदाय के बच्चे हैं तो केवल सूर्य का ध्यान एवं उसकी शक्ति को आत्मसात् करने की भावना करने को कहें।
बालक क्या करें ??
स्वच्छ आसन पर बैठें। सामने गायत्री मंत्र सहित उगते सूर्य का या अपने इष्ट देव का चित्र रखें। पवित्रीकरण, आचमन, शिखा- वन्दन, प्राणायाम एवं न्यास करें। इष्ट देव को प्रणाम करें। तत्पश्चात् पालथी मारकर (सुखासन में )) बैठें, कमर सीधी रखें आँखें बन्द कर मंत्र जप प्रारंभ करें साथ ही उसका अर्थ चिंतन और उगते सूर्य का ध्यान करें। जप- ध्यान पूर्ण होने पर प्रणाम करें। सूर्य नारायण को जल चढ़ाएँ तथा गमले में लगी तुलसी के पांच पत्ते तोड़ कर खाएँ।

-- पूजा गृह में देवों को प्रणाम करें व पांच मिनट शान्त बैठकर २४ बार गायत्री मंत्र जप अथवा एक या तीन माला तक जाप नियमित एवं निर्धारित समय पर करें। इससे बुद्धि तीव्र होती है।

माता पिता क्या करें?

-- घर में पूजा का स्थान निश्चित हो
-- पूजा सामग्री, लोटे में जल, आसन आदि उपलब्ध हो।
-- स्वयं भी नित्य उपासना और गायत्री मंत्र / इष्ट मंत्र का जप एवं ध्यान करें
-- पूजा की तैयारी माता- पिता करके रखें।
-- परिवार का प्रत्येक सदस्य उपासना करे, ऐसा नियम बनाएँ पूजा में बच्चों को साथ बिठाने का प्रयास करें।
-- षट्कर्म बच्चे को अपने साथ कराएँ।
-- गायत्री मंत्र का भावार्थ सहित चित्र पूजा में रखें।
-- घर में तुलसी का पौधा गमले में लगा कर पवित्र स्थान पर रखें।
-- तुलसी के चमत्कारी गुण तथा दैनिक उपासना की पुस्तक घर पर रखें।

७. नाश्ता

आचार्य क्या करें ??
-- अंकुरित अन्न के लाभ एवं पौष्टिकता के विषय में बताएँ। यह सुपाच्य एवं प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट का भण्डार है। शरीर को निरोग बनाता है, जीवनी शक्ति का विकास करता है, रोग निरोधक शक्ति बढ़ाता है।

-- गौ दुग्ध के लाभ बताएँ। गाय का गुनगुना मीठा दूध पीना चाहिए। यह अमृत तुल्य है, पूर्ण भोजन है एवं सुपाच्य है, मेधावर्धक है। जीवनी शक्ति का विकास करता है, शरीर में स्फूर्ति पैदा करता है। भैंस का दूध गरिष्ठ होता है और देर से पचता है।
-- गौ माता के विषय में बतायें।
अंकुरित अन्न
नाश्ता हेतु अंकुरित अन्न विधि- मूँग, चना, गेहूँ, सोयाबीन, मैथी, तिल, मूँगफली आदि अपनी रुचि एवं आवश्यकता के अनुसार लेकर साफ करें व धोकर पानी में डाल दें। दूसरे दिन प्रातः उन्हें निकाल कर कपड़े की पोटली में बाँधकर लटका दें तथा दूसरे दिन के लिए दूसरा अन्न भिगो दें। बँधे हुए अन्न से तीसरे दिन अंकुर निकल आते हैं। उसे पानी से धोकर इच्छानुसार नमक, काली मिर्च डालकर खूब चबाकर खायें। इस तरह प्रतिदिन का क्रम बना रहे।
बालक क्या करें?
अंकुरित अन्न, मौसम के फल एवं गाय का दूध नाश्ते में लें।
नाश्ते का समय निश्चित हो।
माता पिता क्या करें?
अन्न को अंकुरित करने का कार्य माँ स्वयं करें।
बच्चे को सुपाच्य एवं सादा भोजन कराएँ।
संभव हो, तो बालक को पीने हेतु गाय का दूध ही दें।
नाश्ते में ब्रेड या रेडीमेड वस्तुएँ प्रयोग न करें। इससे बच्चे की पाचन शक्ति एवं स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है।
अंकुरित अन्न के घटक
विधि १. मूँग, २. चना, ३. मोठ, ४. गेहूँ, ५. मूँगफली/सोयाबीन ६. बरबटी का बीज, ७. अजवाइन, ८. मसूर, मैथी

८. अध्ययन

आचार्य क्या करें ??

-- अध्ययन में अभिरुचि जगाने हेतु विद्या के लाभ बतायें। महापुरुषों- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर, आदि का उदाहरण प्रस्तुत करें।

-- बालक में अध्ययन हेतु अभिरुचि, लगन एवं परिश्रम की भावना का विकास करें। पुस्तकों का महत्त्व बताएँ। ‘‘ये जीवन्त प्रतिमाएँ हैं जिनके सान्निध्य से तुरंत प्रकाश और उल्लास मिलता है।’’ पुस्तक पर अनावश्यक कुछ भी न लिखें। पुस्तकें एवं कापियाँ फटी न रहें, बस्ता साफ रखना चाहिए आदि बातों में बच्चों की रुचि जागृत करें।

-- एकाग्रता के विकास हेतु ध्यान का अभ्यास कराएँ। इष्ट तथा श्वास प्रश्वास पर ध्यान रखकर मन को एकाग्र करने का क्रम बतायें।
-- एकाग्र होकर पढ़ने के लाभ संबंधी चार्ट लगाएँ। इससे शीघ्र याद होता है। स्थायी तौर पर याद होता है।
-- एकाग्रता से किया गया कार्य जल्दी पूर्ण होता है।
-- एकाग्रता से किया गया कार्य आकर्षक एवं प्रभावी होता है।
-- एकाग्रता तनाव से मुक्ति दिलाती है आदि।

बालक क्या करें?

-- विद्यालय संबंधी पाठ्य सामग्री का अध्ययन या गृहकार्य नियमित करें।
-- अपनी लेखन, पठन सामग्री को जहाँ तहाँ न बिखेरें। उसे व्यवस्थित रखें, जिससे विद्यालय जाने के पश्चात् माँ का अनावश्यक काम न बढ़े।
पढ़ने का ढंग/ अध्ययन का संस्कार
-- स्वाध्याय/अध्ययन का अर्थ होता है समझकर पढ़ना।
-- पढ़ते- पढ़ते कोई तथ्य समझ में न आ रहा हो, तो तुरंत रुक जाएँ। पुनः पढ़ें तथा उसके अर्थ का चिंतन करें।
-- शब्दों एवं वाक्यों के संदर्भ खोजें। संक्षिप्त नोट्स बनाएँ। याद रखने के लिए या स्मृति के विकास के लिए विषय वस्तुओं के प्रमुख बिन्दुओं को रेखांकित करें, फिर उनका क्रम निर्धारित करें और नोट कर लें। परस्पर संबंध जोड़कर याद करें।
-- एकाग्रता से पढ़ा गया विषय स्मृति में स्थायी होता है।
माता पिता क्या करें?
-घर में बच्चे का पढ़ने, खेलने, सोने, मनोरंजन आदि का समय सुनिश्चित करें तथा कड़ाई से उसका पालन करें। बालक की पढ़ाई में सहयोग करें। घर में अच्छा प्रेरणादायी साहित्य रखें।
-- टी.वी. पर भी अच्छे, प्रेरणादाई एवं ज्ञान संवर्धक जैसे कार्यक्रमों के ही प्रति अभिरुचि विकसित करें। ध्यान रखें बालक व्यर्थ के कार्यक्रमों में समय बर्बाद न करें।

९. आदर एवं आज्ञा पालन

आचार्य क्या करें ??
प्रेरक प्रसंग सुनाएँ:- बड़ों के प्रति आदर एवं छोटों के प्रति स्नेह का संस्कार विकसित करने हेतु मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की कथा।
-पिता की आज्ञा हेतु वन जाना और राज्य त्यागना स्वीकार किया।
-लक्ष्मण का राम के प्रति त्याग।
-राम का अपने छोटे भाइयों के प्रति प्यार।
-श्रीराम का माता और पिता के प्रति सम्मान का भाव।
-पाण्डवों का अपने बड़ों के प्रति आदर भाव। उनकी आज्ञा का पालन
-पाण्डवों का परस्पर स्नेह आदर।
-आज्ञा पालन और अवज्ञा के चित्र द्वारा तुलनात्मक प्रस्तुतिकरण एवं बालकों से निर्णय।
-गुरु भक्ति, मातृभक्ति के उदाहरण।
आचार्य स्वयं प्रामाणिक एवं उत्कृष्ट जीवन के धनी बनें, जिससे बच्चे उसका अनुसरण कर सकें।
चौपाई- नित्य क्रिया कर गुरु पह आये, चरण सरोज सुभग सिर नाये
अनुज सखा संग भोजन करहीं, मातु पिता आज्ञा अनुसरहीं

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