युगऋषि को श्रद्धांजलि अर्पित करने का सूत्र है

कर्मकाण्ड नहीं, अनुबंध

<<   |   <   | |   >   |   >>
        दीक्षा को लोग कर्मकाण्ड मान लेते हैं। पू. गुरुदेव से लोगों को यह कहते सुना गया है कि हमें प्राणदीक्षा दीजिए। जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि एक कक्षा पास होने पर ही अगली कक्षा में प्रवेश मिलता है। प्रत्येक स्तर की दीक्षा के लिए गुरु के कुछ विशिष्ट नियम- अनुशासन होते हैं। यदि उनका पालन न किया जाय, तो दीक्षा का कोई अर्थ नहीं रह जाता।
  
        दीक्षा क्रम में कलावा बाँधते समय जो मंत्र बोला जाता है, उसका भाव अपने आप में पर्याप्त मार्गदर्शन करता है। उसके चार चरण हैं।   

१. व्रतेन दीक्षामाप्नोति -    अर्थात् व्रत से ही दीक्षा की प्राप्ति होती है। गुरु दीक्षा के साथ शिष्य के लिए कुछ व्रत निर्धारित करता है, जिनका उसे पालन करना होता है। दीक्षा के समय दिया गया यज्ञोपवीत उन्हीं व्रतों का प्रतीक होने से उसे ‘व्रतबंध’ भी कहा जाता है। कलावा बाँधवा लिया, जनेऊ पहन लिया, किन्तु व्रतों को विसरा दिया, तो क्या होगा? 

२. दीक्षायाऽऽप्नोति दक्षिणाम् -   यह मंत्र का दूसरा चरण है। इसका अर्थ है दीक्षा से दक्षिणा विकसित होती है। अग्निदीक्षा प्रकरण में यह स्पष्ट किया जा चुका है कि दीक्षित साधक में आत्म विश्वास बढ़ता है तो उसके अंदर गुरु को मुँह माँगी दक्षिणा चुकाने का उत्साह जागता है। दीक्षा सार्थक है तो दक्षिणा का भाव उभरेगा ही। उसे देकर शिष्य धन्य होता है। 

३. दक्षिणा श्रद्धामाप्नोति - यह मंत्र का तीसरा सूत्र है। जब साधक गुरु द्वारा बताए गये व्रत पूरे कर लेता है, उन्हें वाञ्छित दक्षिणा प्रदान करने में सफल हो जाता है, तो उसकी श्रद्धा क्रमशः अधिक बलवान होने लगती है। दिव्य प्रवाह हो- अनुदानों को शिष्य इसी सबल श्रद्धा के माध्यम से ग्रहण, धारण कर पाता है।   

४. श्रद्धयासत्यमाप्यते -  मंत्र का यह चौथा सूत्र स्पष्ट आश्वासन देता है कि श्रद्धा विकसित, पुष्ट होकर सत्य को प्राप्त कर लेती है। जीवन के परम सत्य, आत्मबोध या ब्रह्मबोध को सबल श्रद्धा द्वारा ही पाया जा सकता है।   
        इससे स्पष्ट हुआ कि गुरु द्वारा निर्धारित व्रत अनुबंधों का पालन किए बिना शिष्य की उन्नति संभव नहीं।
<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118