‘उन्होंने जो मुँह खोल कर माँगा, वह उन्हें दिल खोलकर दें।’
इसका अर्थ यह नहीं कि देने में बहुत उदारता बरती ही जाय।
बल्कि यह कि उनसे छल न किया जाये। संकल्प भले ही कम से कम का
लिया जाय, किन्तु उसे याद रखा जाय, पूरा किया जाय तथा आत्म
प्रगति की अगली सीढ़ी पर कदम बढ़ाने का साहस किया जाय।
श्रद्धांजलि के स्वरूप
व्यक्तिगत- पूज्य गुरुदेव ने युग निर्माण की लहर प्रवाहित करने
के लिए दो करोड़ सक्रिय सदस्य या प्रज्ञा परिजन तथा दो लाख
कर्मठ कार्यकर्त्ता या प्रज्ञापुत्रों की माँग की है। उनकी न्यूनतम मर्यादाएँ इस प्रकार है-
सक्रिय सदस्य- उपासना, साधना, आराधना में नियमित बने। व्रतशील जीवन
जिएँ। इसके लिए कम से कम एक घंटा समय तथा आधा कप चाय का
मूल्य रोज निकालें। चूक होने पर पश्चात्ताप पूर्वक उसकी पूर्ति
करें। आत्म समीक्षा करते हुए अपने व्यक्तित्व का स्तर सुधारते
रहे।
कर्मठ कार्यकर्ता- उपासना, साधना, आराधना का अपना स्तर बेहतर बनाते रहे। समयदान नित्य २ से ४
घंटे तथा अंशदान माह में एक दिन की आय नियमित रूप से युग
सृजन प्रयोजनों में लगाये। अपने क्षेत्र में संगठित इकाइयाँ, मण्डल,
शाखा आदि गठित करके उनके संचालन में योगदान करें।