युगऋषि ने अपनी दीक्षा के साथ दक्षिणा के जो पाँच व्रत निर्धारित किए है उनका स्तर बढ़ाते हुए हर साधक क्रमशः मंत्रदीक्षा, प्राणदीक्षा की कक्षाओं को पार करता हुआ ब्रह्मदीक्षा तक पहुँच सकता है। इसके लिए कोई अलग कर्मकाण्ड नहीं करने होते हैं, अपनी मनोभूमि को उन्नत बनाते हुए, व्रतों का निर्वाह करते हुए अपनी पात्रता सिद्ध करनी होती है। यदि मंत्रदीक्षा के समय दक्षिणा के रूप में स्वीकारे गये व्रत ही भुला दिए या छोड़ दिए, तो आगे की प्रगति कैसे होगी?
प्रत्येक साधक अपनी आत्म समीक्षा करें। भूलों के लिए प्रायश्चित्त करें। आज की जो स्थिति है उसके अनुसार अपने उपासना, स्वाध्याय, जीवन साधना तथा समयदान, अंशदान के संकल्प निर्धारित करें। उनका पूरी निष्ठा के साथ निर्वाह करें। बीच- बीच में समीक्षा करते रहें। गुरुसत्ता से प्रार्थना करें कि वे अगले स्तर तक पहुँचने की प्रेरणा एवं शक्ति- साहस प्रदान करते रहें। जो साधक दीक्षा के व्रतों को दक्षिणा के भाव से पूरा करते हुए, उनका स्तर उच्चतर करते हुए आगे बढ़ेंगे, तो लौकिक एवं आध्यात्मिक दोनों क्षेत्रों में अनोखी प्रगति का लाभ उठा सकेंगे।
गुरुवर के शताब्दी समारोह की सफलता के लिए जगह- जगह सामूहिक जप अनुष्ठान किए- कराये जायें। उनमें समझदारी के साथ दीक्षा अनुबंधों का नवीनीकरण करने, ईमानदारी, जिम्मेदारी और बहादुरी के साथ उनका अनुपालन करने के संकल्प किए- कराए जायें। इसके लिए एक- दूसरे को प्रेरणा- प्रोत्साहन, सहयोग देने का भावभरा क्रम अपनाया जाये। इससे साधकों के व्यक्तित्वों का परिष्कार होगा, गुरुसत्ता की कसौटी पर जब वे खरे सिद्ध होगें तो दिव्य अनुदानों की झड़ी लग जायेगी। तमाम विसंगतियाँ नदारद हो जायेंगी। कठिन लगने वाली चुनौतियाँ आसान हो जायेंगी। गुरु प्रसन्न हो जायेंगे और हम सब धन्य हो जायेंगे।