परिवार का दर्शन (अवधारणा) यह सारी सृष्टि एक ही सत्ता का विस्तार है। कोई उसे ईश्वरीय परिवार कहता है, तो कोई अन्य उसे माया का परिवार कहता है, पर है यह विश्व ब्रह्माण्ड एक ही परिवार, यह बात सभी को स्वीकार है। सृष्टि के प्रारम्भ में ईश्वर ने चाहा- ‘‘एकोऽहं बहुस्याम्’’ एक से अनेक बनूँ। आत्म विस्तार का यह संकल्प सृष्टि परिवार के रूप में सामने आया। यही है- ब्रह्म का विराट् रूप। इस प्रकार परिवार के सम्बन्ध में दो बातें आधारभूत महत्व की हैं- पहली यह कि यह सम्पूर्ण सृष्टि एक ही परिवार है- ‘वसुधैव कुटुम्बकम्।’ वा. ४८/१.५ भारतीय मनीषियों की एक विशेषता रही है, वह यह कि उनके प्रयोग केवल स्थूल पक्ष अथवा भौतिक मूल्यों तक ही सीमित नहीं रहते थे। वे सूक्ष्म क्षेत्रों में विश्व का संचालन करने वाले सार्वभौमिक तथ्यों की खोज करते थे और फिर उन्हें भौतिक विधानों में व्यवस्थित करते थे। परिवार निर्माण के मूल में भी किसी ऋषि के इसी तरह के सूक्ष्म अन्वेषण का रहस्य छुपा हुआ है। ऋषियों ने जीवन में विभिन्न पहलुओं का एकीकरण करते हुए परिवार संस्था का एक महत्वपूर्ण प्रयोग किया था, जो व्यावहारिक, सहज,