परिवार निर्माण

परिवार की आन्तरिक व्यवस्था

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     गृह की आन्तरिक व्यवस्था भी एक कला है। प्रायः देखा जाता है कि घर में दो प्रकार के सदस्य होते हैं () कार्य करने वाले, जो प्रातः से सायंकाल तक निरन्तर कार्य में लगे रहते हैं, () आराम तलब और कामचोर- ये व्यक्ति आनन्द अधिक लेते हैं और उस अनुपात में कार्य नहीं करते। काम करने वाले वर्ग में मुख्यतः घर का स्वामी, मालकिन, बड़ी भौजाई तथा अन्य उत्तरदायित्व का अनुभव करने वाले व्यक्ति आते हैं। द्वितीय वर्ग में नवयुवक तथा स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियाँ, नवीन वधुएँ, मेहमान या पढ़ने के लिए आये हुए दूसरे घर के विद्यार्थी गिने जाते हैं।

     अपने परिवार का अध्ययन कर मालूम कीजिए कि इन दोनों वर्गों में किस व्यक्ति का स्थान कहाँ है? आपकी नीति सबसे उसकी आयु के अनुकूल कार्य लेने की होनी चाहिए। परिवार एक ऐसी संस्था है, जिसमें सबका समान अधिकार है। काम भी सभी को करना उचित है अन्यथा परिवार की नींव ढह जायेगी।

घर के विभिन्न कार्यकर्त्ता

      घर के सब कार्यों की सूची तैयार कीजिए। मान लीजिए आपके घर में निम्र कार्य हैं- घर की झाडू, कमरों की सफाई, बैठक की झाड़- फूँक, सजावट, प्रातः दूध दुहना या बाजार से लाना, पशुओं की देखभाल, बाजार से सब्जी तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं का खरीदना, रुपये की आय- व्यय का हिसाब, घर का भोजन बनाना, बर्तन साफ करना, बच्चों को पढ़ाना, मासिक बजट तैयार करना, दवादारू और चिकित्सा का प्रबन्ध, सफर करने का बन्दोबस्त, डाक की सुव्यवस्था इत्यादि। इन सब कार्यों को करने के लिए आप परिवार से निम्रलिखित कार्यकर्त्ता चुन लीजिए-

() गृहमन्त्री, (२) यातायात मन्त्री, (३) विदेश मन्त्री,
() स्वास्थ्य मन्त्री, (५) अर्थमन्त्री

     गृहमन्त्री का कार्य प्रमुख व्यक्ति करे, जो घर की सब छोटी- मोटी जानकारी रखे, भावी कठिनाइयों के लिए परिवार को चौकस रखे, लड़ाई- झगड़ों से बचाकर परिवार की प्रतिष्ठा का ध्यान रखे, घर की सामान्य पॉलिसी का निर्णय करे। दूसरा प्रमुख कार्य अर्थमन्त्री का है। यह व्यक्ति हिसाब करने, बजट बनाने, अध्ययन का ठीक ब्यौरा रखने, मौसम के समय खाद्य वस्तुओं को खरीदने और बचत की व्यवस्था में चतुर होना चाहिए।

घर में पाई- पाई का हिसाब रखा जाय। मास से पूर्व ही वह बजट तैयार कर ले और एक- एक कर सब जिम्मेदार सदस्यों के पास घुमा दे। उनकी आवश्यकताओं के विषय में पूछ ले और उसका उल्लेख बजट में यथास्थान कर दे। कर्ज में आने से परिवार की रक्षा करे। यातायात मन्त्री सफर, मेहमानदारी, यात्रियों की देखभाल करे। विदेश मन्त्री चिट्ठी- पत्री, अखबार मँगाना, बाहर वाले मेहमानों से अच्छे सम्बन्ध स्थिर रखने का कार्य करे। यदि घर के सब व्यक्ति इन कार्यों में पृथक- पृथक काम विभाजित कर अग्रसर होंगे तो घर का काम क्षण भर में हो सकेगा। किसी के ऊपर अनुचित भार भी न पड़ेगा।

     प्रातःकाल उठकर यदि प्रत्येक सदस्य स्वयं अपने कमरे में झाडू लगा ले, अपना बिस्तर स्वयं उठा दे, स्नान के उपरांत साबुन यथास्थान रख दे और तौलिया स्वयं धो डाले, अपने जूते पर स्वयं पालिश कर लिया करे, अपने कपड़े नियत स्थानों पर रखे, तो बहुत सहूलियत हो सकती है। जब एक- एक व्यक्ति काम छोड़कर लापरवाही करते हैं, तो काम पहाड़- सा प्रतीत होता है। यदि प्रत्येक आदमी अपना- अपना काम निपटाता चले तो सब कुछ क्षण भर में निपट जाता है। नौकर के ऊपर निर्भर रहना उत्तम नहीं है। नौकर आ जाने से प्रत्येक व्यक्ति के मन में आलस्य, कामचोरपन, दूसरे पर शासन करने की भावना आती है। थोड़े दिन पश्चात् कार्यभार से त्रस्त होकर नौकर भाग जाता है। यही हाल रसोइया का होता है। कल्पना कीजिए कि यदि रसोइया एक- एक व्यक्ति के लिए बैठा रहे, तो कैसे भोजन का अन्त हो सकता है। प्रत्येक व्यक्ति को नियत समय पर जो बने, उसे प्रसन्नतापूर्वक खा लेने की आदत डालनी चाहिए। वा. ४८/३.५०

घर की सुव्यवस्था कैसे करें

     मैं आपको अपने घर की सैर कराऊँ। यह देखिये, हमारा स्टोर है। इसमें जो सामने अलमारी है, इसमें छोटे- छोटे सात पीपे चुने रखे हैं। प्रत्येक पीपे पर कुछ लिखा हुआ है। ये सात प्रकार की दालें हैं, जिन पर दाल के साथ दिन का नाम दर्ज है। कौन- सी दाल किस दिन तैयार होगी, इसका प्रबन्ध पहले से ही है। मास के पहले दिन इन पीपों को देख लिया जाता है और मुँह तक भर दिया जाता है। दूसरी ओर मसालों के पीपे हैं, जिनमें वर्ष भर के लिए नमक, धनियाँ, मिर्च, हल्दी, जीरा, गरम मसाला पिसा हुआ रखा है। जब रसोई के मसालदान में कोई वस्तु कम हो जाती है, तो इसमें से ले ली जाती है। एक ओर दो बड़े बोरे गेहूँ के रखे हैं, एक पीपे में चावल हैं, गाय- भैंस के लिए बोरी खल- चुनी इत्यादि रखी है। एक पीपे में ढक्कन से बन्द आटा रखा हुआ है। खूँटी पर तराजू मौजूद है। नियत भिकदार में आटा और दाल तोल कर गृहमन्त्री देता है। इसी में करीने से सजी हुई एक ओर लकड़ी एकत्र रखी है, शेष लकड़ियाँ छत पर एकत्रित हैं। कुछ उपले भी मौजूद हैं। एक कोने में मिट्टी के तेल का पीपा और दो बोतलें रखी हुई हैं। मास के प्रारम्भ में देख लिया जाता हे कि स्टाक में क्या- क्या है। स्टाक रखने वाला व्यक्ति बजट के लिए वस्तुओं के परिमाण के सम्बन्ध में सूचना देता है।

      ऊपर एक अलमारी में (जो बन्द है) पाँच तरह के अचार- मुरब्बे और घी एकत्रित है। इसे मास के प्रारम्भ में भर लिया गया है। कुछ तिल का तेल भी रखा है। इसी में पापड़, मँगौड़ी और सूखे मेवे- किशमिश, बादाम, छुहारे, खोपरा स्पेशल भोजन के लिए तैयार रखे हैं। अलमारी के निचले खाने में दो दर्जन कटोरियाँ ,, दो दर्जन चम्मच, कुछ थालियाँ गिलास इत्यादि एकत्रित हैं। कुछ बढ़िया गुड़ भी बन्द पीपे में सुरुचिपूर्ण ढँग से रखा है। इस स्टोर में एक मास के लिए तरकारी के अतिरिक्त सब कुछ एकत्रित कर लिया गया है।

रसोई भी देख लीजिए। एक अलमारी में साफ किए हुए बर्तन सजे रखे हैं। महरी ने उसे धो दिया है, चूल्हा लिपा- पुता साफ है, पटरा धुला हुआ है। एक ओर आले में शक्कर का पीपा, चलनी, कुछ चम्मच, चाय का इन्तजाम है, दूसरी ओर मसालदान विराज रहे हैं। एक ओर दूध बिलोने का यन्त्र रखा है, दही जमा रखा है, मक्खन ढका रखा है। प्रत्येक बालक को प्रातः मक्खन से रोटी और एक पाव दूध का नाश्ता मिलेगा, उसके लिए सब तैयारी है। कुछ सूखी तरकारियाँ भी यहीं रखी हुई हैं। बाजार में बिकने वाले कुछ रायते, सूखे आलू, टमाटर की चटनी, अचार, सिरका मौजूद है। यह आपको इतना साफ- सुथरा इसलिए प्रतीत होता है, क्योंकि प्रति मास में घर के हर व्यक्ति मिलकर स्वयं इसकी पुताई कर डालते हैं।

आगे आइये, यह हमारा गुसलखाना है, छोटा पर साफ। एक ओर साबुन तथा मंजन। देखिये, दूसरी ओर साफ तौलिया लटक रहा है। हाथ धोने के पश्चात् इसे काम में लिया जाता है। प्रतिदिन प्रातःकाल फिनाइल से इसकी दीवारें और राख से नल की टोंटी माँज दी जाती है। पाखाना इतना साफ है कि कहीं मक्खी का नाम तक नहीं। इसी में आले में फिनाइल का डिब्बा है, नल है, बाहर से धोने के लिए पिचकारी है। बाहर के नल में लगाकर इसे प्रतिदिन खूब स्वच्छ कर दिया जाता है। पाखाना धुलने की बारी प्रति सप्ताह बदलती है। घर के सहन में एक डायरी कील पर लटक रही है, उसी में एक पेंसिल बँधी है। जिस किसी वस्तु को बाजार से मँगाने की आवश्यकता होती है, वह कोई भी इस डायरी में दर्ज कर देता है। प्रत्येक बच्चा- बूढ़ा इसका प्रयोग करता है। अपनी जरूरत की वस्तु के साथ नीचे अपने हस्ताक्षर भी कर देता है। जब बाजार से चीजें लाने वाला व्यक्ति बाजार जाता है, तो इस स्लिप को फाड़कर ले जाता है और सबकी वस्तुएँ एक साथ आ जाती हैं।

        यह हमारा संदूकों का कमरा है। इसमें दस पन्द्रह छोटे- बड़े सन्दूक आप देख रहे हैं। यह सबसे बड़ा सन्दूक रजाई, बिछौना और कम्बलों के लिए है, जिसमें फिनायल की तेज महक आ रही है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक व्यक्ति का सन्दूक पृथक है। उस कोने के सन्दूक में मैले कपड़े रखे हैं, जो धोबी ले जायेगा। धोबी के घर से धुला हुआ प्रत्येक कपड़ा आठ दिन तक चलना होता है। रात्रि की पोशाक पृथक है। प्रातःकाल नहा- धो कर स्वच्छ पोशाक धारण करने की योजना है। परिवार की आन्तरिक व्यवस्था सही कर हम अन्य कार्यों में निश्चिंततापूर्वक लग सकते हैं।

        तीन कमरे विशेष महत्व रखते हैं। पहला पूजा गृह है, यह अपेक्षाकृत छोटा पर, स्वच्छ, अगरबत्तियों से सुगन्धित और धार्मिक चित्रों से सुसज्जित है। प्रातः- सायं घर के सब सदस्यों को भजन, प्रार्थना और पूजा के लिए अनिवार्य रूप से यहाँ उपस्थित होना पड़ता है। बचपन में डाले गये संस्कारों से प्रत्येक बालक आशावादी, संघर्षशील, आस्तिक और कर्त्तव्य परायण होता है। इसी में एक छोटा घरेलू पुस्तकालय भी है, जिसमें अनेक छोटे- बड़े धार्मिक, आध्यात्मिक और चरित्र निर्माण करने वाले ग्रंथों, मासिक- पत्रिकाओं का संकलन है। भोजन के पश्चात् सब सदस्य इस कमरे में एकत्रित होते हैं। रेडियो द्वारा मनोरंजन, समाचार तथा अन्य आवश्यक तत्वों का यहाँ ज्ञान कराया जाता है। बच्चे प्रायः इसमें अपना अधिकांश समय व्यतीत करते हैं। वा. ४८/३.५१

        हमारा शयनागार दो बातों में विशेष महत्व रखता है। यह खूब खुला हुआ हवादार, प्रकाशमय है। बिस्तर सफाई से एक ओर तय करके रखे हुए हैं। शाम होते- होते इन्हें बिछा दिया जायगा। बिस्तर लगाना और उठाना यह कार्य छोटे बच्चों का है। उनकी सहायता के लिए एक बड़े व्यक्ति की ड्यूटी भी लगी हुई है। बच्चों के लिए और भी छोटे- छोटे कार्य चुन दिये गए हैं जैसे- भोजन खिलाना, कुर्सियों की सफाई, पुस्तकों को उठाकर यथास्थान पर जमाना, अपने वस्त्र, जूते, बस्ता नियत स्थान पर रखना, छोटे शिशुओं को खिलाना, घर के पशु- पक्षियों, तोता, बिल्ली, कुत्ता, गाय को मामूली भोजन प्रदान करना इत्यादि। उनकी आयु के साथ धीरे- धीरे उन्हें अधिक जिम्मेदारी का स्थान प्रदान किया जाता है। सबसे अधिक परिश्रम बैठक में किया जाता है। प्रातः काल इसकी सफाई की जाती है। बिखरी वस्तुओं को यथास्थान रखा जाता है। कुर्सियों की झाड़- पोंछ, पुस्तकों, अलमारी, आलों, ब्रेंचों की सफाई, तस्वीरों की रक्षा, तथा कोनों, किवाड़ों या छत में लगे हुए जालों को तोड़ने का विशेष ध्यान रखा जाता है। इसमें किसी भी सदस्य को उसकी व्यक्तिगत वस्तु को छेड़ने नहीं दिया जाता, केवल बैठने, अपने मित्रों के साथ ठहरने, आमोद- प्रमोद तथा बातचीत करने का अधिकार है। बैठक से घर की प्रतिष्ठा रहती है। उसकी स्वच्छता के लिए प्रत्येक सदस्य प्रयत्नशील रहता है। वा. ४८/३.५२

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