गावः सर्वसुखप्रदा

समस्याएँ अनेक, किंतु समाधान एक

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        उपरोक्त समस्याओं का समाधान करने में मानव की सामर्थ्य जवाब दे गई है। मानव जितना सुलझाने का प्रयत्न करता है, समस्याएँ दिन पर दिन उतनी ही जटिल से जटिलतर होती जा रही हैं। इन सभी समस्याओं का समाधान एक मात्र सभी देवी- देवताओं की संगठित शक्ति ‘‘सर्वदेवमयी गोमाता’’  ही कर सकती है।

        क्या करें, कैसे करें? : ‘‘जयति जय गोमाता’’, ‘‘सर्व रोगहारी पंचगव्य चिकित्सा’’, ‘‘गावः सर्वसुखप्रदाः’’ जैसे गौसंवर्द्धन साहित्य के प्रचार- प्रसार में अपना तन, मन, धन लगा दें। आज का सबसे बड़ा युग धर्म यही है कि इस गोविज्ञान का प्रचार- प्रसार किया जाए।

        गौ- संवर्द्धन आज देश की धार्मिक, आध्यात्मिक, राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, प्राकृतिक, नैतिक, व्यावहारिक, लौकिक एवं पारलौकिक अनिवार्य आवश्यकता है। गौसंवर्द्धन साहित्य खरीदकर लोगों में दान करें। आज सबसे बड़ा पुण्य- परमार्थ यही है।

        गौसेवा धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष प्राप्त करने का सर्वसुलभ, सरल और सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक साधन है। गौ, गंगा, गायत्री, गीता। ये चारों भारतीय संस्कृति के स्तंभ हैं, जिन पर संस्कृति टिकी है। वेद, शास्त्र, पुराण, महाभारत, गीता इत्यादि आर्ष ग्रंथों के अध्ययन, चिंतन, मनन से यह सिद्ध हो गया है कि (१) गोमाता हमारी सर्वोपरि श्रद्धा का केन्द्र है। (२) भारतीय संस्कृति की आधारशिला है। (३) वस्तुतः गोमाता सर्व देवमयी है।

        यदि हम अपने सभी तैंतीस कोटि देवी- देवताओं की पूजा करना चाहते हैं, तो किस प्रकार संभव हो सकता है? उत्तर है- सर्वे देवाः स्थिता देहे, सर्वदेवमयी हि गौः। केवल एक गोमाता की पूजा और सेवा करने से एक साथ सभी देवी- देवताओं की पूजा संपन्न हो जाती है। सभी देवी- देवता प्रसन्न एवं तृप्त होकर अनुदान- वरदान की वर्षा करने लगते हैं। प्रेय और श्रेय अथवा समृद्धि और कल्याण दोनों की प्राप्ति के लिए सेवा से बढ़कर कोई दूसरा साधन नहीं है। मनुष्य जीवन को प्राप्त करने का सर्वश्रेष्ठ साधन आज के समय में गौसेवा ही है। भगवत् प्राप्ति के लिए अन्यान्य साधनों में से गौसेवा भी एक ऐसा ही साधन है, जिससे भगवान शीघ्र ही सुलभ हो जाते हैं। गोमाता जन्म देने वाली माँ से कहीं बढ़कर है। माँ तो साल दो साल दूध पिलाकर हमसे जीवनभर सेवा की आशा रखती है; पर गोमाता को जीवनभर दूध पिलाती है। पूज्य गोमाता साक्षात् नारायण है। इसकी आराधना से सकल देववृन्द एवं भगवान अतिशय प्रसन्न होते हैं। ईश्वर का प्रत्यक्ष स्वरूप गोमाता है। विश्व की सर्वाधिक कल्याणमयी एवं पवित्रतम शक्ति है- गौ।

        भक्ति, मुक्ति और शक्ति का स्रोत गौसेवा है। लक्ष्मीश्च गौमये नित्यं पवित्रा सर्व मंगला। गोबर में परम पवित्र सर्व मंगलमयी श्री लक्ष्मी जी का निवास है। जिसका अर्थ यह है कि गोबर में सारी धन- संपदा समाई हुई है। गौ यज्ञीय देव संस्कृति का मूर्त रूप है। लोक कल्याण के लिए किया गया प्रत्येक कर्म यज्ञ स्वरूप ही है। कम ग्रहण करना तथा समाज को अधिक देना, इस आचरण को सिखाने वाली हमारी भारतीय सनातन संस्कृति को देव संस्कृति कहा गया है। गाय घास, भूसा, छिलका, खली, चूरी, चोकर आदि ऐसी सामान्य वस्तुएँ ग्रहण करती है, जो मनुष्य को ग्रहण करने योग्य नहीं है और कम मूल्यवान होती हैं, किंतु बदले में अमृत जैसा दूध, सहोदर जैसे बैल, अत्यंत उपयोगी और औषधिरूप गोमय तथा गोमूत्र देती है।

        चावल, गेहूँ इनसान खाता है, परंतु गाय उसका भूसा खाती है। इनसान तेल सेवन करता है, गाय उसकी खली खाती है। मनुष्य दाल खाता है, गाय उसका छिलका और चूरी खाती है। इस प्रकार गाय समाज से कम से कम लेकर अधिकतम लाभ पहुँचाती है। अतः यह प्रत्यक्ष देवता है।
        एक बार मनोहर रूप धारिणी लक्ष्मी जी ने गौओं के समूह में प्रवेश किया और कहा कि अब मैं तुम्हारे शरीर में सदा निवास करना चाहती हूँ। तुम महान सौभाग्य शालिनी हो, सदा सबका कल्याण करने वाली हो, तुम बताओ कि मैं तुम्हारे शरीर के किस भाग में रहूँ? गौओं ने कहा- यशस्विनी! तुम हमारे गोबर और मूत्र में निवास करो। हमारी ये दोनों चीजें बड़ी पवित्र हैं। तभी से गोबर एवं गोमूत्र में लक्ष्मी जी का निवास हो गया। जब तक हम लोग गोबर एवं गोमूत्र का सर्वश्रेष्ठ उपयोग नहीं करेंगे, तब तक भारत की समृद्धि नहीं आएगी। मातरः सर्व भूतानां गावः सर्वसुखप्रदाः। गौएँ समस्त प्राणियों को माता के सदृश्य सब विधि सुखों को देने वाली हैं। ईश्वरः स गवां मध्ये। गौ के मध्य में ईश्वर की उपस्थिति होती है।

        संपूर्ण गोवंश परम उपकारी है। सबका कर्तव्य है कि तन, मन, धन लगाकर गौहत्या पूर्णरूप से बंद कराएँ। भारत में गोवंश के प्रति करोड़ों लोगों में आस्था है, उसकी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। गोरक्षा से बढ़कर कोई धर्म नहीं, गौहत्या से बढ़कर कोई पाप नहीं।

        कुरान शरीफ में गोरक्षा के उपदेशः अकरमुल बकर फाइनाहा सैयदूल बहाइसाँ अर्थात्- गाय की इज्जत करो क्योंकि वह चौपायों का सरदार है। गाय का दूध, घी और मक्खन (शिफा) अमृत है। गोस्त बीमारियों का कारण है।

        (कुरान शरीफ पारा १४ रुकवा ७- १५)


ईसाई धर्म संस्थापक ईसामसीह कहते है:-

        तू किसी को मत मार। तू मेरे समीप पवित्र मनुष्य बनकर रह। एक बैल या गाय को मारना एक मनुष्य के कत्ल के समान है। ईसाई हयाद ६६- ३

सिख धर्म में गोभक्ति-

        यही देव आज्ञा तुर्क, गाहे खपाऊँ।
        गउ घात का दोष जग सिउ मिटाऊँ॥

महर्षि दयानंद सरस्वती (आर्य समाज ):-

        गाय की हत्या करके एक समय में २० व्यक्तियों को भोजन कराया जा सकता है। जबकि वही गाय अपने पूरे जीवन काज में कम से कम २० हजार लोगों को अमृत तुल्य दूध से तृप्ति और स्वास्थ्य प्रदान कर सकती है।

बौद्ध धर्म और गौ-

        जैसे माता- पिता, भाई- बहन कुटुंब के- परिवार के लोग हैं, वैसे गायें भी हमारी परम मित्र हैं, परम हितकारिणी हैं, जिसके गव्य से दवा बनती है।

        भारत की सबसे बड़ी समस्याएँ गरीबी, बेरोजगारी और बीमारी हैं, जो दिन पर दिन बढ़ती जा रही हैं। कोई सरकार, राजनैतिक दल, धार्मिक संस्था, सामाजिक संस्था नेता या व्यक्ति इन समस्याओं को दूर करने में समर्थ नहीं है। आजादी के बाद ५५ वर्षों में यह सिद्ध हो चुका है।

        एक- दो गाय एक परिवार की परवरिश कर सकती हैं। एक गाय के गोबर, गोमूत्र एवं गोदुग्ध का समुचित उपयोग करने पर इतनी आय हो सकती है कि एक परिवार की परवरिश हो सके।
        पंचगव्य से १०८ रोगों का सफल, सरल, इलाज होता है। नेडेप विधि से खाद बनाने पर गोबर की उपयोगिता १२० गुना बढ़ जाती है। कामधेनु खाद द्वारा ही रासायनिक खाद का प्रयोग बंदकर धरती माता को बंजर होने से बचाया जा सकता है।

        प्रसन्न होने पर गायें सारे पाप- ताप को धो डालती हैं और दान देने पर गायें स्वर्ग लोक को ले जाती हैं। ये ही विधिपूर्वक पालन करने पर वैभव- धन या समृद्धि का रूप धारण कर लेती हैं। गायों के समान संसार में कोई भी संपत्ति या समृद्धि नहीं है।

        गौ, गंगा, गीता और गायत्री ये चार सनातन देव संस्कृति के स्तम्भ हैं, इन चारों की स्थिती बड़ी दयनीय हो गई है। गंगा प्रदूषित हो रही है, गीता के उपदेश को जीवन का अंग नहीं बनाया जा रहा है। गायत्री के दर्शन (फिलॉसफी) को व्यवहार में नहीं उतारा जा रहा है। सभी को सभी प्रकार के सुख देने वाली गोमाता, लाखों की संख्या में रोज काटी जा रही हैं। दुःख का यही कारण है।

        जब तक समस्त भारत देश में जन- जन के मानस में गोपालन- गोभक्ति पूर्ण रूप से नहीं जाग्रत होगी, तब तक इस राष्ट्र का कल्याण सर्वतोभावेन नहीं हो सकता। जब तक गौवध बंद न होगा, देश कभी समृद्ध नहीं हो सकता, चाहे लाखों योजनाएँ बनती रहें। गोमाता को प्रसन्न रखने पर लक्ष्मी देवी, सरस्वती देवी, महाकाली देवी एवं सभी देवी- देवताओं की कृपा प्राप्त होती है।

        भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा किए गए परीक्षणों से ज्ञात हुआ है कि रासायनिक खाद के प्रयोग करने से भूमि की उर्वरा शक्ति २०- २५ वर्षों में समाप्त प्राय: जो जाती है। भारत सरकार के कृषि अनुसंधान परिषद के सेवा निवृत्त महानिदेशक ने चेतावनी दी है कि यदि रासायनिक खाद पर आधारित कृषि पद्धति ही चलती रही, तो कुछ वर्षों में ही पंजाब का क्षेत्र मरुस्थल जो जाएगा।

        गोबर के बदले कोयला या लकड़ी जलाना पड़े तो क्रमशः साढ़े तीन करोड़ टन कोयला अथवा छः करोड़ अस्सी लाख टन लकड़ी की आवश्यकता होगी, जो कई अरब रुपये मूल्य की होगी। पर्यावरण की चिंता करने वाले लोगों को यह भी विचार करना चाहिए कि साढ़े तीन करोड़ टन कोयला फूँकने से पर्यावरण पर कैसा प्रभाव पड़ेगा। छः करोड़ अस्सी लाख टन लकड़ी के लिए पेड़ों को काटे जाने से हमारे पर्यावरण की रक्षा किस प्रकार हो सकती है। यदि हम गोबर एवं गोमूत्र की उपयोगिता जान जाएँ, उसका श्रेष्ठतम उपयोग करने लगें, तो देश से गरीबी, बेरोजगारी एवं बीमारी दूर हो जाएगी और किसी भी स्थिति में गाय कोई बेचेगा ही नहीं। गौवध अपने आप बंद हो जाएगा। गाय आर्थिक दृष्टि से भी आजीवन उपयोगी है। गाय दूध न दे तो भी उपयोगी है।

        श्री नारायण देव राव पांडरी पांडे का २५ वर्ष का श्रम बहुत महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने नेडेप विधि खोजकर वैज्ञानिकों एवं किसानों को चकित कर दिया है कि किस प्रकार केवल एक किलो गोबर से तीस किलो सर्वोत्तम श्रेणी की खाद बनती है। यदि इस विधि का प्रयोग पूरे देश में किया जाए तो हमें रासायनिक खाद की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। विदेशी मुद्रा की अपार बचत होगी। धरती बंजर होने से बचेगी। गौवध बंद होगा। नेडेप पद्धति से बनी खाद सिर्फ गोबर से बनी खाद से चार गुना ज्यादा प्रभावशाली होती है। यानि गोबर की उपयोगिता १२० गुना बढ़ जाती है। अमृत पानी, मटका खाद एवं अमृत संजीवनी खादें गोबर गोमूत्र से बनती हैं, जो अत्यंत उपयोगी हैं।

        भारतीय गायों पर विदेशों में भी शोध चल रहा है और इजराइल ने गीर नस्ल की गाय से १२० लीटर दूध प्रतिदिन उत्पादन करके दुनिया को दिखला दिया है कि भारतीय गाय दूध के लिए सर्वश्रेष्ठ गाय है।

गोवंश की रक्षा में देश की रक्षा समायी हुई है।-

            महामना मालवीय जी।


भारत की सुख- समृद्धि गौ के साथ जुड़ी हुई है-

        महात्मा गाँधी।


        कृषि और ग्रामीण अर्थ व्यवस्था का दारोमदार गोवंश पर निर्भर है। जो लोग यंत्रीकृत फार्मों के और तथाकथित वैज्ञानिक पद्धतियों के सपने देखते हैं, वे एक अवास्तविक संसार में रहते हैं- लोकनायक जय प्रकाश नारायण। भारत में गोवंश के प्रति करोड़ों लोगों की आस्था है, उसकी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए- लाल बहादुर शास्त्री।
        एक दूध न देने वाली गाय या बैल के गोबर का खाद बनाया जाए, तो जितना चारा खाती है, उससे पाँच गुना मूल्य का खाद बनाने लायक गोबर देती है। गोमूत्र की दवा बनाई जाए, तो हजारों रुपए प्रति माह का लाभ होता है। यानि गोवंश कभी भी अलाभकारी नहीं होता। हम लोगों की अज्ञानता का दण्ड गोवंश को प्राण दण्ड के रूप में मिल रहा है।

        गरीबी, बेरोजगारी और बीमारी दूर करने हेतु पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिये जयति जय गोमाता मूल्य १५) रुपए, सर्वरोगहारी पंचगव्य चिकित्सा मूल्य 3/- रुपये अवश्य पढ़ें। गावः सर्वसुखप्रदाः पुस्तक को भारत के हर परिवार में पहुँचाना, आज का सबसे बड़ा धर्म है। इस पुस्तक को यथाशक्ति खरीदकर दान करना गोदान करने के समान है। इसी से गौवध बंद होगा और देश की पूर्व में वर्णित समस्त समस्याओं का समाधान होगा। इसे स्वयं पढ़े एवं अन्यों को पढ़ाएँ।

        गाय स्वर्ग और मोक्ष की सीढ़ी है। गायें स्वर्ग में भी पूजनीय हैं। यह परम पावन और सबकी कामना पूर्ण करने वाली मंगलदायिनी होती हैं। गोमाता की सेवा से पुरुषार्थ चतुष्टय (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) की प्राप्ति होती है। गौसेवा से मनुष्य के अगणित कुलों का उद्धार और उनकी यम यातना से मुक्ति होती है।

        गौभक्त के लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं है। गौभक्त जिस- जिस वस्तु की इच्छा करता है, वह सब उसे प्राप्त होती हैं। स्त्रियों में भी जो गौओं की भक्त हैं, वे मनोवाँछित कामनाएँ प्राप्त कर लेती हैं। पुत्रार्थी मनुष्य पुत्र पाता है और कन्यार्थी कन्या। धन चाहने वाले धन और धर्म चाहने वाले को धर्म प्राप्त होता है। विद्यार्थी विद्या पाता है और सुखार्थी सुख।

        (महा. अनु. ८३/५०- ५२)


        जो हिन्दू धर्म शास्त्र पर विश्वास रखते हैं, उन्हें चाहिए कि चतुर्वर्ग (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) सिद्धयर्थ शास्त्र विधान के अनुसार गौसेवा करते हुए रखते, उन्हें चाहिए कि ‘‘अर्थ’’ और ‘‘काम’’ की सिद्धि के लिए अर्थ शास्त्र के नियमों के अनुसार गोपालन करते हुए गोवंश की वृद्धि करने का प्रयत्न करें।

        गोदुग्ध का पान कर भगवान श्री कृष्ण ने दिव्य गीतामृत का संदेश दिया- दुग्ध गीतामृतं महत्। आज देश दुःखी है, प्रजा दुःखी है तथा संत महात्मा सहित सारा चराचर जगत् दुःखी है। इसका एकमात्र कारण है गोमाता का दुःखी होना। रघुवंश भी गाय की सेवा से ही चला था, जिसमें भगवान राम का जन्म हुआ था। गोपालन, गोसेवा, गोदान हमारी संस्कृति की महान परंपरा रही है। गोसेवा सुख और पुत्र प्राप्ति का साधन है। गोदर्शन, गोस्पर्श, गोपूजन तथा गोस्मरण से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। गोमूत्र, गोबर गोदुग्ध, गोदधि, गोघृत आदि सभी पदार्थ अति पावन, आरोग्य प्रद, आयुवर्धक और शक्तिवर्धक हैं। गौ सर्व देवमयी और सर्व तीर्थमयी हैं। गौ दर्शन से समस्त तीर्थों का पुण्य लाभ प्राप्त होता है। जहाँ गौएँ निवास करती हैं, वहाँ सर्वत्र सुख और शान्ति का वास होता है।

        गौ के रोम रोम से सात्विक विकिरण विसरित होता है। गाय स्वभाव से सात्विक, सौम्य एवं संतोष करने वाली होती है। वह सात्विकता, बल, ओज और स्फूर्ति से परिपूर्ण होती है। गाय स्वभाव धीर एवं गंभीर है। उसके प्रभाव क्षेत्र में आने से मनुष्य की चित्तवृत्ति शांति होती है। सात्विक मन और बुद्धि से ही परमात्मा की प्राप्ति की जा सकती है। लौकिक कामनाओं की पूर्ति तो साधारण बात है, सच्ची गौसेवा से तो ब्रह्म ज्ञान तथा भगवत्प्राप्ति भी सहज जो जाती है। स्वार्थ या परमार्थ कोई भी ऐसी वस्तु नहीं, जो गोमाता की कृपा से सुलभ न हो सके।
        धर्म के नाम पर अरबों रुपए प्रतिदिन खर्च हो रहे हैं। उसका कुछ भाग गोसंवर्धन साहित्य के प्रचार- प्रसार में दान दिया जाए, समाजसेवी भाई- बहन गाँव- गाँव जाकर ग्रामीण भाई- बहनों को गाय पालने का महत्त्व समझाएँ, तो सभी देवता तृप्त हो जाएँगे। यदि गौवध हम लोग बंद न करा सके, तो आने वाली पीढ़ी को हवा, पानी और भोजन दुर्लभ जो जाएगा। आने वाली पीढ़ी के लोग कहेंगे कि हमारे पूर्वज थे तो बड़े समझदार, लेकिन गोपालन का महत्त्व नहीं समझ सके और उसकी रक्षा नहीं कर सके। यदि राष्ट्र प्रेमियों ने सार्थक प्रयास नहीं किए, तो भविष्य में गाय के चित्र ही देखने को मिलेंगे। भविष्य में लोग अपने आर्ष ग्रंथों में गोमाता की उपयोगिता पढ़ेंगे और गाय को अपने बीच नहीं पाएँगे, तो वर्तमान पीढ़ी को बार- बार कोसेंगे कि कैसे स्वार्थी लोग थे, अपनी माता की रक्षा नहीं कर सके। गोपालन, गोविंद और गोकुल के गीत गाते रहे, उनके मंदिर बनाकर मूर्तियों को पूजते रहे, लेकिन उस गोपालन की प्यारी गाय की रक्षा नहीं कर सके। गोपाल की जै जै का कीर्तन करते रहे, जै गोमाता की बोलते रहे, पूजा गोवर्द्धन (गौ बढ़ाओ आंदोलन) भी करते रहे और भैंस पालते रहे, गाय कटती देखते रहे। इस कलंक से बचने का एक ही उपाय है कि गोमाता की रक्षा हेतु सभी धर्म प्रेमी, गौप्रेमी एवं राष्ट्र प्रेमी सज्जन अधिक से अधिक इस पुस्तक को खरीदकर पढ़ाएँ अपने गाँव एवं आस- पास के क्षेत्र में गोवंश बचाने हेतु बढ़- चढ़कर प्रचार- प्रसार करें। आज का यही युग धर्म है।
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