गायत्री की परम कल्याणकारी सर्वांगपूर्ण सुगम उपासना विधि

गायत्री द्वारा सन्ध्या- वन्दन कुछ ऐसे कार्य हैं जिनका नित्य करना मनुष्य का आवश्यक कर्तव्य है, ऐसे कर्मों को नित्य- कर्म कहते हैं। नित्य- कर्मों के उद्देश्य हैं, १- आवश्यक तत्वों का संचय २- अनावश्यक तत्वों का त्याग। शरीर को प्रायः नित्य ही कुछ न कुछ नई आवश्यकता होती है। प्रत्येक गतिशील वस्तु अपनी गति को कायम रखने के लिए कहीं- न से नयी शक्ति प्राप्त करती है, यदि वह न मिले तो उसका अन्त हो जाता है। रेल के लिए कोयला- पानी, मोटर के लिए पेट्रोल, तार के लिए बैटरी, इञ्जन के लिए तेल, सिनेमा के लिए बिजली की जरूरत पड़ती है। पौधों का जीवन खाद- पानी पर निर्भर रहता है। पशु- पक्षी, कीट- पतङ्ग, मनुष्य आदि सभी प्राणियों को भूख प्यास लगती है। अपनी- अपनी प्रकृति के अनुसार अन्न, जल, वायु लेकर वे जीवन धारण करते हैं यदि आहार न मिले तो शरीर यात्रा असम्भव है। कोई भी गतिशीलता को कायम रखने के लिए आहार अवश्य चाहिए ।। इसी प्रकार प्रत्येक गतिशील पदार्थ में प्रतिक्षण कुछ न कुछ मल बनता रहता है, जिसे जल्दी- जल्दी साफ करने की आवश्यकता पड़ती है। रेल में कोयले की राख, मशीनों में तेल की चीकट जमती है। शरीर में प्रतिक्षण

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