गायत्री की परम कल्याणकारी सर्वांगपूर्ण सुगम उपासना विधि

महिलाओं के लिए कुछ विशेष साधनाएं

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पुरूषों के भाँति स्त्रियों को भी वेदमाता गायत्री की साधना का अधिकार है। गतिहीन व्यवस्था को गतिशील में परिणित करने के लिए दो भिन्न जाति के पारस्परिक आकर्षण करने वाले तत्त्वों की आवश्यकता होती है। ऋण (नेगेटिव) और धन (पाजेटिव) शक्तियों के पारस्परिक आकर्षण- विकर्षण द्वारा ही विद्युत- गति का संचार होता है। परमाणु के इलेक्ट्रॉन और प्रोटोन भाग पारस्परिक आदान- प्रदान के कारण गतिशील होते हैं। शाश्वत् चैतन्य को क्रियाशील बनाने के लिए सजीव सृष्टि को नर और मादा के दो रूपों में बाँटा गया है, क्योंकि ऐसा विभाजन हुए बिना विश्व निश्चेष्ट अवस्था में ही पड़ा रहता ।। ‘‘रयि’’ और ‘‘प्राण’’ शक्ति का सम्मिलन ही तो चैतन्य है। नर- तत्त्व और नारी- तत्त्व का पारस्परिक सम्मिलन ही तो चैतन्य आनन्द, स्फुरण, चेतना, गति, क्रिया, वृद्धि आदि का लोप होकर एक जड़ स्थित मात्र रह जायेगी। नर- तत्त्व और नारी- तत्त्व एक दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरा अपूर्ण है। दोनों का महत्त्व, उपयोग, अधिकार और स्थान समान है। वेदमाता गायत्री की साधना का अधिकार भी स्त्रियों को पुरुषों के समान ही है। जो यह कहते हैं कि गायत्री वेद- मन्त्र होने से उसका अधिकार स्त्रियों को नहीं हैं, वे भारी भूल करते हैं। ‘प्राचीन काल में स्त्रियाँ मन्त्रदृष्टा रही हैं। वेदमन्त्रों का उनके द्वारा अवतरण हुआ है, गायत्री स्वयं स्त्री लिंग हैं, फिर उनके अधिकार न होने का कोई कारण नहीं। हाँ, जो अशिक्षित, हीनमति, अपवित्र स्त्री शूद्र हैं, वे स्वयंमेव इधर प्रवृत्ति नहीं रखतीं न महत्त्व समझती हैं इसलिए वे अपने निज की मानसिक अवस्था से ही अधिकार वंचित होती हैं।

स्त्रियाँ भी पुरूषों की भाँति गायत्री- साधनाएँ कर सकती हैं। जो साधनाएँ इस पुस्तक में दी गई हैं, वे सभी उनके अधिकार क्षेत्र में हैं। परन्तु देखा गया है कि सधवा स्त्रियाँ जिन्हें घर के कार्य में विशेष रूप से व्यस्त रहना पड़ता है अथवा जिनके छोटे- छोटे बच्चे हैं वे उनके मल- मूत्र के अधिक सम्पर्क में रहने के कारण उतनी स्वच्छता नहीं रख सकतीं, उनके लिए देर में पूरी हो सकने वाली साधनाएँ कठिन हैं। वे संक्षिप्त साधनाओं से काम चलावें। जो पूरा गायत्री- मन्त्र याद नहीं कर सकतीं वे संक्षिप्त गायत्री पंचाक्षरी मंत्र (ॐ भूर्भूवः स्वः) से काम चला सकती हैं। रजस्वला होने के दिनों में उन्हें विधिपूर्वक साधना बन्द रखनी चाहिए। कोई अनुष्ठान चल रहा हो तो उन दिनों उसे रोककर रजः स्नान के पश्चात् उसे फिर से चालू किया जा सकता है।

निः सन्तान महिलाएँ गायत्री साधना को पुरूषों की भाँति ही सुविधापूर्वक कर सकती हैं। अविवाहित या विधवा देवियों के लिए तो वैसी ही सुविधाएँ हैं जैसी कि पुरूषों को ।। जिनके बच्चे बड़े हो गये हैं, गोदी में कोई छोटा बालक नहीं है या जो वयोवृद्ध हैं, उन्हें भी कुछ असुविधा नहीं हो सकती ।। साधारण दैनिक साधना में कोई विशेष नियमोपनियम पालन करने की आवश्यकता नहीं है। दम्पत्ति जीवन के साधारण धर्मपालन करने में उसे कोई बाधा नहीं। यदि कोई विशेष साधन या अनुष्ठान करना हो तो उतनी अवधि के लिए ब्रह्मचर्य पालन करना आवश्यक होता है।

विविध प्रयोजनों के लिए कुछ साधनाएँ नीचे दी जाती हैं -

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