व्याख्या- कवि नारी शक्ति को आवाहन कर रहा है कि हे नारी!
तुम्हीं तो आदि शक्ति हो और वीरों की जननी तथा प्रेम का
निर्मल निर्झर हो, अब तुम्हें दुष्प्रवृत्तियों के रावण का संहार
करने तैयार हो जाना चाहिए।
स्थाई- आदिशक्ति तुम वीर प्रसूता, प्रेम मूर्ति साकार।
दुष्प्रवृत्तियों के रावण का, करना है संहार॥
बहिनों हो जाओ तैयार॥
हे नारियों तुम्हें युग का निमंत्रण है, समय का आवाहन है। आओ
नये युग का नया प्रभात तुम्हें बुलाता है। आज अज्ञान का अंधकार
शांति मार्ग का रास्ता अवरुद्ध किये हुए है। अब ज्ञान किरणों की
तरह दमक कर, अज्ञान रूपी अंधकार को समाप्त करो। आज देश अज्ञान
जन्य छुआछुत के रोग से ग्रसित है, उससे मुक्त कराओ।
अ.1- उठो समय आमंत्रण देता, युग करता आह्वान।
नवल सृजन का समय आ गया, लाओ नया विहान॥
शांति मार्ग को रोके बैठा, अंधकार अज्ञान।
बनकर ज्ञान सूर्य की किरणें, छेड़ो नव अभियान॥
छुआछूत का भूत भगाकर, करो देश उद्धार॥
कुरीतियों के कारण विकास के पुष्प खिल नहीं पा रहे हैं और
ज्ञान के अभाव में प्रगति के स्वप्न भी धूमिल पड़े हैं। ऊँच- नीच
की चट्टाने मार्ग में अड़ी हैं और मानवीय सद्वृत्तियों की फसल को अहंकार का पशु चरता जा रहा है। अतः अपने ज्ञान कुठार से इसे काट डालो।
अ.2- भय कुरीतियों के जंगल में, पनप न पाते फूल।
ज्ञान बिना जीवन के सपने, आज चाटते धूल॥
ऊँच- नीच की रची हुई है, छाती पर चट्टान।
मानवता की फसलें चरता, अहंकार अभिमान॥
भेदभाव की जड़ काटो तुम, लेकर शक्ति कुठार॥
जबकि समाज इतना विकसित हो गया है तब भी अधिकांश बहिनें परदे
की कैद में बंद हैं, मानों उन्होंने नारी होकर कोई अपराध किया
हो, अंधविश्वास ने पाप- पतन का मार्ग खोल दिया है। अतःअब
ज्ञान मशाल लेकर पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ना
है और फिर से जगत् गुरु भारत का मस्तक संसार में ऊँचा करना
है। अब संसार को बता दो कि तुम अबला नहीं सबला हो, महाशक्ति हो।
अ.3- परदा बन कलंक का टीका, देता है संताप।
आज अंध विश्वास बना है, पाप ताप अभिशाप॥
चलो कदम से कदम मिलाकर, लेकर ज्ञान मशाल।
आज विश्व में ऊँचा कर दो, भारत माँ का भाल॥
अबला नहीं बनो तुम सबला, शक्ति पुंज आगार॥
प्राणवान नारियाँ आगे आये। महिला मण्डलों का गठन करे। उनके
माध्यम से नारी के आत्म विकास तथा सृजन कौशल को जगाये। भगवान की
योजना में शामिल होकर यश और सौभाग्य कमाएँ। (पुनः स्थाई दुहराये)