युग गायन पद्धति

आज बेचैन है स्वर्ग की शक्तियाँ

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व्याख्या- हे मनुजों! आज की भीषण विभीषिकाओं के कारण देवशक्तियाँ विकल हो उठी हैं। वे धरती पर आकर समाधान में सहयोग देने बेचैन हैं। इसलिए ऐसे समय में उठो और जो अनुदान मिलने वाले हैं उन्हें प्राप्त करो।

स्थाई- आज बेचैन हैं स्वर्ग की शक्तियाँ,
हे मनुज तुम उठो दिव्य अनुदान लो॥

तुम्हारे उठते ही बुद्धि की शक्ति तुम्हारे साथ हो गई है और धरती आकाश सब जगह छा गए हो। तुमने ही तो विज्ञान विकास का इतना ऊँचा उठाया और अभूतपूर्व उपकरण प्राप्त कर लिये। अतः फिर इन क्षमताओं का श्रेष्ठ पथ पर चलने के लिए उपयोग करो। इसी में सृष्टि का हित है।

अ.1- तुम उठे, बुद्धि की शक्ति ले इस तरह,
क्या धरा, क्या गगन सब कहीं छा गए॥
सिद्ध तुमने किए मंत्र विज्ञान के,
निज नये उपकरण हाथ में आ गए॥
अब नियोजन इन्हें श्रेष्ठ पथ पर करो,
सृष्टि का हित भली- भाँति पहचान लो॥

तुमने भौतिक विकास तो किया है किन्तु आत्म विकास अभी अधूरा है। आत्मबल के बिना बुद्धि का बल कोई काम नहीं आयेगा। अतः विश्व के मुकुटमणि बनने के लिए विज्ञान के साथ सद्ज्ञान चाहिए।

अ.2- बाहरी क्षेत्र के तुम विजेता बने,
किन्तु अंतर्जगत है अधूरा अभी।
आत्मबल के बिना बुद्धिबल मात्र से,
लक्ष्य होगा तुम्हारा न पूरा कभी॥
विश्व के तुम बनोगे मुकुटमणि तभी,
जबकि विज्ञान के साथ सद्ज्ञान लो॥

अपने ही लिए साधना द्वारा तो कई मुक्त हो गए हैं किन्तु सामान्य लोगों की मुक्ति का पथ प्रशस्त नहीं हो सका अतः पूरी मनुजता के नव जीवन के लिए नए सिरे से प्रयास करो।

अ.3- व्यक्तिगत मुक्ति कोई समस्या नहीं,
व्यक्तिगत साधना ने शिखर हो छुआ।
संत अवतार आये दिशा दे गए,
किन्तु सामान्य जीवन न विकसित हुआ।
यह समूची मनुजता नया जन्म ले,
तुम नए कल्प का वह नवोत्थान लो॥

देवसत्ता इस प्रतीक्षा में है कि मनुजों का उत्थान कब हो। तनिक अपनी पात्रता तो प्रमाणिक करो, सुधा से वह भर दिया जायेगा। विश्व माता का प्यार निरंतर छलक रहा है। तुम तनिक पुत्र के समान उसके सामने पूर्ण रूप से समर्पण तो करो।

अ.4- कब उठे ऊर्ध्वगामी बने जाति यह,
देवसत्ता प्रतीक्षा यही कर रही।
तुम बढ़ाते नहीं पात्र अपना वहाँ,
है जहाँ से सुधा अनवरत झर रही।
प्यार माँ का अपरमित छलकता अरे,
तुम स्वयं को यहाँ पुत्रवत मानलो॥
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