टिप्पणी- यह युग परिवर्तन का महत्त्वपूर्ण समय है। समय ‘काल’
बहुत शक्तिशाली होता है। जब काल की बिगड़ी चाल को बदलने सही
दिशा में लाने के लिए कई ईश्वरीय सत्ता सक्रिय होती है तब वह
महाकाल कही जाती है। महाकाल का संकल्प है- बिगड़ा हुआ समय को फिर से श्रेष्ठयुग सतयुग का रूप दिया जाना है।
स्थाई- अब फिर से सतयुग आयेगा, यह बोल रहा है महाकाल।
जब महकाल
का प्रयोग चलता है, बिगड़ी हुई परिस्थितियाँ उसके मार्ग में बाधक
नहीं बन सकती। रावण का पराभव, कंस का विनाश, अमेरिका से दास
प्रथा मिटना और भारत से अग्रेजों का राज्य सिमटना ऐसी ही घटनाएँ है।
अ.1- निश्चय ही दुनियाँ बदलेगी,निश्चित ही परिवर्तन होगा।
नव भव्य भावना जागेगी, नवयुग का आरोपण होगा। है कौन शक्ति जो रोक सके, अब काल चक्र की प्रबल चाल॥
जब कलियुग में लोगों का सोचने का ढंग बदल जाता है। उन्हें
अन्याय- समर्थ ही सबसे उचित लगने लगते हैं। इस स्थिति को प्रकृति
ने बहुत दिनों सह लिया अब उसे यह सहन नहीं, इसलिए ईश्वरीय
संकल्प उभरा है इसके आगे असुरता की कुटिल चाल चल नहीं सकेगी।
अ.2- है वर्ष हजारों बीत चुके, अन्यायों को सहते- सहते।
है बीत चुकी सदियाँ अनेक, इस कलयुग में रहते- रहते।
चल चुकी बहुत पर अब न चलेगी, कलि की कुटिल चाल॥
काल के प्रभाव से लोगों की मान्यताएँ बदल गई है। पहले जिन
कार्यों को अन्याय- अत्याचार, पाप कहा जाता था, उसे लोग चतुराई-
होशियारी कहने लगे हैं। इससे थोड़े से लोगों के फायदे के लिए
बहुतों को नुकसान सहना पड़ता है। अब ईश्वरीय प्रवाह उस पीड़ित
शोषित वर्ग को जाग्रत कर रहा है। क्रांति के स्वर गुंजने लगे हैं।
अ.3- अन्याचारी अत्याचारी की अब, खैर नहीं निश्चित जानो।
सत्ता लोलुप मिट जायेंगे, चाहे मानो या न मानो।
अब खड़ा हो चुका जनमानस, ले महाक्रांति की नव मशाल॥
‘अनाचार बढ़ता है कब ? सदाचार चुप रहता जब’।
सत्य में हजार हाथियों का बल होता है। जब विवेकशील लोग अनीति
के विरोध में जब तन कर खड़े हो जाते हैं तो प्रकृति उनका सहयोग
करती है। इस विश्वास के साथ सज्जनों को वीरता के साथ अपना पुरूषार्थ अनीतियों के उन्मूलन के लिए खोल देना चाहिए।
अ.4- क्यों है निराश क्यों है हताश, तू है भारत माँ का सपूत।
आने वाले कल का तो तुझको, ही बनना है अग्रदूत।
इसलिए भीरूता छोड़ प्रकट, कर दे आपना पौरूष कराल॥
महाकाल का निर्णय है। संकीर्ण सोच वाले नष्ट होंगे, उदार, सेवा,
सहकार वालो का प्रभाव उभरेगा। संकीर्ण भेद की दीवारें टूटेंगी और
मनुष्यता फिर से विश्व में समुद्र की तरह लहराने लगेगी।
अ. 5- अब दूर नहीं है वह दिन जब, सबमें मानवता आयेगी।
सब ओर विश्व में सत्य न्याय की, धर्म ध्वजा फहरायेगी।
टूटेंगे सब ये क्षुद्र बाँध, लहरायेगा सागर विशाल॥