टिप्पणी- आद्यशक्ति महाप्रज्ञा गायत्री इस समय युग शक्ति बनकर प्रकट हुई है। वे दशम निष्कंलक
प्रज्ञावतार की भूमिका सम्पन्न कर रही है। वे महाकाल की प्रचण्ड
शक्ति हैं। युग परिवर्तन की यह वेला अपने प्रयोजन को पूर्ण
करके रहेगी। इस समय सतयुग जैसे प्रज्ञा युग में बदलना पूर्ण
सुनिश्चित है।
स्थाई- अवतरित हुई माँ गायत्री, युग शक्ति बनीं निश्चय जानों।
आ गया समय युग बदलेगा, इस काल शक्ति को पहचानों॥
संसार में जब- जब धर्म घटा और अधर्म बढ़ा है, तब भगवान का कोई
अवतार राम, कृष्ण, बुद्ध, गाँधी आदि के रूप में धरती पर प्रकट
होता है। युगान्तरीय चेतना से अनुप्राणित वे अवतारी महामानव ऐसे
परिवर्तन का सूत्र संचालन करते हैं, जिससे धरती का संताप मिटे।
भगवान ने कहा- यदा ही धर्मस्य- का उत्कर्ष और अधर्म का विनाश
इन दिनों होकर रहेगा।
अ.1- जब होता है धर्म नष्ट, बदली अधर्म की छाती है।
जब अनाचार बढ़ जाता है और मानवता अकुलाती है॥
तब कोई राम कृष्ण गौतम, गाँधी इस भू पर आते हैं।
पृथ्वी को देते अभय और उसका संताप मिटाते हैं॥
वह शपथ पुनः पूरी होगी, चिर सत्य यही है सच मानो॥
जो भगवान का निमंत्रण, संकेत सुन सकते हैं, वे आवाहन को अनसुना
नहीं करते। ग्वाल- बालों ने अपने दुर्बल लाठियों का सहारा
गोवर्धन पर्वत उठाने में निःसंकोच होकर दिया था। समुद्र का सेतु
बाँधने में रीछ- वानरों ने अपने उत्साह, साहस का परिचय दिया था।
महाप्रज्ञा का अवतार प्रयोजन पूर्ण हो सके इसके लिए जागृत
आत्माओं को संकीर्ण स्वार्थपरता से उपर उठकर प्रभु प्रयोजन में जुट जाना चाहिए।
अ.2- इस समय हमें भी चुप न बैठना और सामने आना है।
अपनी- अपनी लाठी का बल दे, गोवर्धन उठवाना है॥
बनकर वानर दे साथ राम का, पुनः सेतु बँधवाने में।
प्रज्ञावतार का यश फैले घर- घर में और जमाने में॥
तज स्वार्थ भाव परमार्थ मार्ग पर चलने की मन में ठानों॥
संकल्प शक्ति संसार की सबसे बड़ी शक्ति है। उसके सहारे एक से
एक बड़े आश्चर्यजनक चमत्कार होते रहे हैं। इन दिनों भावनाशीलों
को समझना चाहिए कि युग शक्ति महाप्रज्ञा का अवलम्बन लेकर ये
बहुत कुछ कर सकते हैं। इस श्रेय को अर्जित करने में चुकना
नहीं चाहिए। युग धर्म समझना और निभाना चाहिए। युग शिल्पी कहलाने
की गरिमा समझनी और उस आधार पर उपलब्ध होने वाले विभूति को
ध्यान में रखनी चाहिए। प्रज्ञावतार के सहभागी बनने की श्रेय साधना
इन्हीं दिनों हो सकती है।
अ.3- मन की संकल्प शक्ति मानव को क्या से क्या कर देती है।
निष्क्रिय शरीर में गति मन में नव चेतनता भर देती है॥
व्रत लो युग के आवाहन पर तत्काल दौड़ते जायेंगे।
युग धर्म निभाकर नवयुग के अभिनव शिल्पी कहलायेंगे॥
तुम महा मनस्वी हो सब कुछ कर सकते हो मनु संतानों॥