युग गायन पद्धति

एक दिन ही जी मगर

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व्याख्या- हम भले ही एक दिन जियें मगर शान से जियें कुछ ऐसा जीकर दिखलायें जिससे लोग युगों- युगों तक याद करें। स्वामी विवेकानन्द, आद्यगुरु शंकराचार्य कुछ इसी तरह जीकर दिखाये।

स्थाई- एक दिन ही जी, मगर इन्सान बनकर जी!

मुसीबत क्यों न सामने आये, मगर हम अपने संकल्प को नहीं छोड़ें और किसी भी स्थिति में अपने सुखद सपनों को टूटने न दें। काँटे वाले रास्तों को पीछे छोड़कर उन्हें बारबार मुड़कर क्यों देखें। राह के संकटों को कोई महत्व मत देना। सफल अभियान की तरह आगे ही बढ़ते जाना।

अ.1- आपदा आये भले, मत छोड़ना संकल्प अपने।
हो सघन मत टूटने देना कहीं सुकुमार सपने॥
देखना मुड़कर भला क्या? पंख बीधे कण्टकों को।
मत कभी देना महत्ता, मार्ग व्यापी संकटों को॥
एक दिन ही जी, सफल अभियान बनकर जी!
एक दिन ही जी, मगर इन्सान बनकर जी!!

यद्यपि हमारी जीवन नाव बहुत छोटी है किन्तु उसी के द्वारा पार पहुँचना है। सामने तूफान हों तब भी उनसे जूझना है। स्वयं कष्ट सहकर भी संसार का तो कल्याण ही करना है। अपने पदचिन्ह छोड़कर नये युग तीर्थों का निर्माण कर और संसार की शान बनकर जी।

अ.2- एक छोटी नाव, उसके ही सहारे पार जाना।
हों भले तूफान राही, सोचना मत जूझ जाना॥
कष्ट सहकर भी स्वयं इस विश्व का उपकार कर जा।
छोड़ जा पदचिन्ह अपने, तीर्थ नव निर्माण कर जा॥
एक दिन ही जी, जगत की शान बनकर जी!
एक दिन ही जी, मगर इन्सान बनकर जी!!

आसमान में घटायें उठी हों तो तू बिजली की तरह चमक उठ और यदि आँधियाँ आकर टकरायें तो तू अडिग चट्टान बनकर खड़ा हो जा। अगर तूने विश्वास की ज्वाला जलाली तो फिर कठिनाइयाँ अपने आप भस्म हो जायेंगी। अतः नवयुग के निर्माण के लिए शपथपूर्वक संकल्पित हो जा और लोगों के लिए वरदान बन जा।

अ.3- एक छोटी नाव, उसके ही सहारे पार जाना।
हों भले तूफान राही, सोचना मत जूझ जाना॥
कष्ट सहकर भी स्वयं इस विश्व का उपकार कर जा।
छोड़ जा पदचिन्ह अपने, तीर्थ नव निर्माण कर जा॥
एक दिन ही जी, जगत की शान बनकर जी!
एक दिन ही जी, मगर इन्सान बनकर जी!!
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