टिप्पणी- भारत माता के सपूत देव मानवों की अकथ कथा गाथा जगत
विख्यात रही है। वह पुरातन काल की ज्ञान गंगा अब फिर से इसी
अपनी धरती पर हम युग भागीरथों को उतार लानी है।
स्थाई- हमें फिर से धरा पर, ज्ञान की गंगा बहानी है।
जगत विख्यात भारत के, सपूतों की कहानी है॥
विवेकानन्द ने अध्यात्म तत्व
दर्शन को नव जीवन प्रदान किया था। रामतीर्थ ने कर्म दर्शन से
जन- जन का मन अनुप्राणित किया था। यह महान व्यक्तित्व और उनके अभिवंदनीय, अनुकरणीय कर्त्तव्य ऐसे हैं जिन्हें इतिहास कभी भुला नहीं सकता। उन्हें न कभी आग जला सकती है और न पानी गला सकता है।
अ.1- विवेकानन्द से जग ने, नवल अध्यात्म पाया था।
कि सोया कर्म दर्शन, रामतीर्थ ने जगाया था।
जला सकती न आग उन्हें, डुबा सकता न पानी है॥
अर्जुन ने एकान्त में महा सुन्दरी उर्वशी का प्रणय निवेदन ठुकरा कर उसके चरणों की धुलि
मस्तक पर चढ़ाई और माँ कहा था। इसी प्रकार यवन युवती को सम्मुख
प्रस्तुत किए जाने पर भी शिवाजी का मन विचलित न हुआ, मातृ
भावों से ही भरा रहा। इस बार उसी पुरातन चरित्र निष्ठा
को नये सिरे से फिर जन- जन के मन- मन में जगाया जाना है।
अ.2- निशा में उर्वशी को माँ कहे इस भूमि का अर्जुन।
निरख रमणी शिवा का मातृ भावों से भरा था मन।
यही निष्ठा पुनः सबके चरित्रों में जगानी है॥
ऐसे अगणित देश भक्त, उदारचेता, वीर, पराक्रमी इस भारत भूमि की
कोख में जन्मते रहे हैं, जिनके, त्याग, बलिदान से स्वतंत्रता की
बलि वेदी धन्य हुई। भगत सिंह, नेताजी सुभाष चंद्रबोस आदि कितने ही ऐसे वीर पुरूष
हुए जिनके गगन भेदी स्वर से दिशायें गूँजती थी। भारत पुत्रों
के लिए आदर्श के लिए प्राण देना एक खेल रहा है। उस पुरातन
वीरता को अब फिर से जीवित करना है।
अ.3- हुई है धन्य जिनके त्याग से स्वातन्त्र्य बलिवेदी।
भगतसिंह और नेताजी कि जिनके स्वर गगन भेदी।
खुशी से प्राण देना ही शहीदों की निशानी है॥
जवानी का आयु से विशेष संबंध नहीं है। जिसमें उत्साह साहस और
शौर्य पराक्रम है वही जीवन्त है। जवानी वह है जो अपने आदर्शवादी
निश्चय पर चट्टान की तरह डट जाये। अंगद के पैर की तरह हिलाये
न हिले। हर कीमत पर लक्ष्य प्राप्त करते रहे। जवानी का पराक्रम
ऐसा होता है जिससे काल की गति भी ठहर या बदल जाती है।
जवानी इन्द्र है, शिव है, भैरव है, भवानी है। ऐसी जवानी इस देश के युवकों में ही नहीं, बाल, वृद्धों में भी भरपुर दिखाई पड़ने लगे, ऐसा सरंजाम जुटाने और वातावरण बनाने की इन्हीं दिनों आवश्यकता है।
गीत- जवानी वह कि अपने ध्येय को हर मूल्य पर पाये।
जवानी वह कि जिससे काल की गति भी ठहर जाये।
जवानी इन्द्र है शिव है कि- भैरव है भवानी है॥
समय की पुकार है अनीति- अनाचार को चुनौती, देकर नीति और सदाचार
की प्रतिष्ठा करने वाले सपूत फिर खड़े हों। हम समय की पुकार
सुनें और माँ के सपूत सिद्ध होकर माँ के आशीर्वाद तथा सांसारिक
यश के पात्र बनें। (पुनः स्थाई दुहराये)