व्याख्या- संसार में दिव्य प्राण दिव्य चेतना के रूप में
संव्याप्त आदि शक्ति को गायत्री शक्ति कहा गया है। दिव्य चेतन
सत्ता पिता रूप भी है, माता रूप भी है। साफ सुथरे बच्चों को सभी
प्यार करते हैं, किन्तु गंदगी में से न बच्चो
को साफ सुथरा बनाने में माँ ही आगे आती है। इसीलिए उस परम
सत्ता को माँ के भाव से साधकगण याद करते हैं और उसका लाभ
उठाते हैं। संसार में उसी की महिमा, उसी के कौशल का दर्शन करते
हैं।
स्थाई- हे गायत्री माता तेरी, महिमा अपम्पार है।
यह अद्भूत अति सुन्दर तेरा, रचा हुआ संसार है॥
व्याख्या- यही दिव्य चैतन्य शक्ति अपने गर्भ से विश्व को उत्पन्न करती है। वही अपने हृदयरस
से दूध से प्यार से पालन- पोषण करती है। वही आवश्यकता के
अनुसार रूपान्तरण परिवर्तन करती रहती है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर
की रूपों में वही सक्रिय है।
अ.1- तू सृष्टा है विश्व की, तू है पोषक सृष्टि की।
परिवर्तन के चक्र पर, तेरा ही अधिकार है॥
व्याख्या- संसार का संचालन भावनाओं और विचारों के अनुरूप कार्यों
के द्वारा होता है। यह विकृत हो तो विश्व में विचार फैलाने
लगते हैं। यह श्रेष्ठ शुद्ध होगें तो संस्कार जागृत होने लगते हैं। भावों, विचारों तथा कर्मों को निर्विकार आदर्श यही मातृ शक्ति जगाती है।
अ.2- सद्भावों की स्रोत है, तू विवेक की ज्योति है।
सद्कर्मों के मूल में, तेरा ही संचार है॥
व्याख्या- अनादि गुरू मंत्र के रूप में गायत्री मंत्र को ही
प्रतिष्ठा प्राप्त है। जीवन में दिव्यता, समर्थता का संचार इसी के
अनुशासन मानने से होता है। सत्पुरूषों, ऋषियों, अवतारियों सभी ने इस दिव्य अनुशासन को स्वीकार किया है, साधा है। उसी आधार पर वे महान बने हैं।
अ.3- तू अनादि गुरुमंत्र है, अनुशासन जीवन्त है।
राम, कृष्ण सबको मिला, तेरा ही आधार है॥
व्याख्या- आज सबसे बड़ी समस्या है कि मनुष्य के अंदर देवत्व के
स्थान पर असुरत्व उभर रहा है। इसी लिए बढ़े हुए शक्ति साधनों का
दुरूपयोग
हो रहा है। गायत्री महाशक्ति को वेदमाता, देवमाता भी कहा गया
है। वह मनुष्य में सद्ज्ञान को देवता को जागृत कर सकती है। संसार
के भयंकर रोगों, स्वार्थ, दुष्टता, भ्रष्टता, लोभ, मोह, अहंकार सब का
उपचार कर सकती है आइये हम भी उससे यही माँगे।
अ.4- तुम देवों की माता हो, शक्ति प्रगति सुखदाता हो।
महाविकट भव रोग पर, तू अमोघ उपचार है॥
व्याख्या- माँ हमारी दुर्बुद्धि को दूर करे, सद्ज्ञान जागृत करे। हमारी शक्ति को क्षीण करने वाले हो हटकार संजीवनी विद्यायुक्त
विज्ञान से हमें सम्पन्न बनाये। हमारी दिव्य संस्कृति को फिर से
उन्नत करें जिससे मनुष्य में देवत्व जगे और धरती पर स्वर्ग का
अवतरण हो।
अ.5- हमको माँ सद्ज्ञान दो, संजीवन विज्ञान दो।
संस्कृति का उत्थान दो, जो जीवन आधार है॥
हमने गीत तो गाया, पर साथ ही यह संकल्प भी करें कि गायत्री
उपासना नियमित करेंगे। संसार को उसी का रूप मानकर उसके अनुशासनों
में चलने का अभ्यास करेंगे (स्थाई फिर दुहरवायें)