टिप्पणी- आज जीवन के हर क्षेत्र में भ्रम फैले हुए है। गुरु
शिष्य सम्बन्धों के बारे में भी कुछ ऐसी ही मान्यता है। शिष्य
गुरु का मूल्यांकन इसी से करते हैं कि उन्होंने हमारी कितनी मनो
कामनाएँ पूरी की। समर्थ गुरु कृपालू होते हैं। वे बच्चों को मिठाइयाँ- टॉफी
आदि की तरह कामना पूर्ति में भी मदद करते है। परन्तु यह उनका
काम नहीं है। उनका काम होता है अपने प्राण एवं तप से शिष्य के
अंदर सोई दिव्य ज्योति जगा दें। मनोकामना पूर्ति के लाभ तो
क्षणिक होते है किन्तु ज्योति जागरण के लाभ कई जन्मों तक साथ
देते हैं। अब हम भी भ्रमों से उबर कर सच्चे मन से गुरुसत्ता से
स्थाईर्- अनमोल अनुदान माँगे।
स्थाई- ज्योति से ज्योति जगाओ सद्गुरु।
अन्तर तिमिर मिटाओ सद्गुरु॥
हे प्रभो! अपने ज्ञान की दिव्य किरणें फैला, हमारे अंदर के अंधकार रूपी अज्ञान को, दोषों को दूर करें।
अन्तरा 1- हे परमेश्वर! हे सर्वेश्वर!
निज किरणें दर्शाओ सद्गुरु॥
अन्तरा 2- हे योगेश्वर! हे ज्ञानेश्वर!
अवगुण दूर भगाओ सद्गुरु॥
हे प्रभु!
हम बालक हैं, हमें अपने हित- अहित का बोध नहीं है। हमें दिव्य
दिशा दिखायें, हमारे अंदर प्रेम का संचार करें, हमारी सोई हुई
शक्ति को जगायें।
अन्तरा 3- हम बालक तेरी शरण में आये।
दिव्य दरश दिखलाओ सद्गुरु॥
हम अपने को संसार का अंग जानने लगते हैं। हमें यह बोध
कराये कि हम आपकी, परमात्मा की दिव्य चेतना के अंश है। हम आपके
निर्देशों पर- आपके पदचिन्हों पर चल सकें ऐसी भावना शक्ति हमे प्रदान करें।
अन्तरा 4- हाथ जोड़कर करें आरती।
प्रेम सुधा बरसाओ सद्गुरु॥
पुज्य
गुरुदेव आप प्रकाश पुँज है, ज्ञान पुँज है, हम बालक हाथ जोड़कर
आप से प्रार्थना कर रहे हैं कि आप हमारे हृदय में संव्याप्त
अज्ञान अंधकार को दूर करें बल्कि हमको भी ज्योति दीप बनाकर
दूसरे बुझे हुए दीपकों को भी ज्योतित बनाने की क्षमता प्रदान
करे।
हमारे हृदय अवगुणों से भरे है, आप गुणों के भण्डार है आप साक्षात योगीश्वर और परमेश्वर है। हम भटके हुए बालकों को दिव्य मार्ग पर प्रशस्त करें। हे दया निधान, करूणानिधान, पुज्य गुरुदेव हमारे अंदर की सुसुप्त शक्ति को जागृत करके ब्रह्मनाद की ध्वनि झंकृत करें। हम बच्चे ऐसी प्रार्थना लेकर आपके चरणों की शरण मे आये है।
अन्तरा 5- अन्तर में युग- युग से सोयी।
सोई शक्ति जगाओ सद्गुरु॥
अन्तरा 6- साँची ज्योति जगे अन्तर में।
सोऽहं नाद जगाओ सद्गुरु॥
अन्तरा 7- जीवन में श्रीराम अविनाशी।
चरण की शरण लगाओ सद्गुरु॥