व्याख्या- हे माँ आप जगत की जननी हैं, आप शांति, शक्ति और भक्ति
देने वाली हैं, यह सर्व श्रेष्ठ मानव जीवन, परम पद प्राप्त करने
का साधन बन जाये।
स्थाई- जय अम्बे जय जगदम्बे, जय अम्बे जय जगदम्बे।
भक्ति दायिनी, शक्ति दायिनी, शांतिदायिनी हे अम्बे॥
व्याख्या- संसार के सभी योनियों में श्रेष्ठ योनी मनुष्य जीवन
को ही कहा गया है। जो इसको साध लेता है, उसे परमात्मा का सानिध्य
सहज ही मिल जाता है। जो घट- घट में प्रभु के दर्शन करे, वह
पापी कैसे हो सकता है। हे माँ हमें ऐसी ही दृष्टि दीजिए।
अ.1- सर्वश्रेष्ठ यह मानव जीवन, बने परम पद का यह साधन।
प्रभु को देखें घट- घट व्यापी, वह सेवक कैसे हो पापी॥
यही दृष्टि दो हे अम्बे॥
व्याख्या- न कोई हमें ठग सके और न हम किसी को धोखा दें।
दुर्बुद्धि त्याग दें ताकि दुर्गति से बच जायें। ऐसी ही साधना
करने की शक्ति दो पापों को काट कर सद्कार्य बढ़ायें और इस प्रकार जीवन मुक्ति का आनन्द लें।
अ.2- ठगें नहीं खुद भी न ठगावें, दुर्मति तजें न दुर्गति पावें।
पाप काट दें, पुण्य बढ़ावें, जीवन मुक्ति सहज ही पावें॥
यही साधना दो हे अम्बे॥
व्याख्या- अनीति करने वालों को ही रोना पड़ता है। क्योंकि ‘‘जैसा बोओ वैसा काटो’’
का नियम है। हम जीवन में ममता, समता और पवित्रता लायें इसे
धन्य बनायें। बस यही भावना दीजिए। हे माँ आपकी जय हो।
अ.3- जो अनीति करते वो रोते, वही काटते जैसा बोते।
ममता समता शुचिता लाये, इस जीवन को धन्य बनायें॥
यही भावना दो हे अम्बे॥
व्याख्या- देव संस्कृति यज्ञ- पिता एवं गायत्री माता से
प्रादुर्भूत हुई है। अतः हम घर- घर सद्विचारों का प्रसार करें तथा
जन- जन को सद्कार्य करने के लिए प्रेरित करें और हम प्रखर पुरूषार्थी बन सकें, ऐसी सामर्थ्य दीजिए।
अ.4- देव संस्कृति के निर्माता, यज्ञ पिता गायत्री माता।
घर- घर सद्विचार फैलायें, जन- जन को सत्कर्म सिखायें॥
प्रखर कर्म दो हे अम्बे॥
नरेन्द्र (जो बाद में स्वामी विवेकानन्द बने) का परिवार उनके
पिता के देहांत के बाद आर्थिक कठिनाइयों में फँस गया था।
नरेन्द्र ने ठाकुर रामकृष्ण परमहंस जी से कठिनाइयाँ हल करने के
लिए प्रार्थना की। ठाकुर ने कहा जा जो माँगना है माँ काली से
माँग ले। नरेन्द्र माँ के सामने गये उन्हें उनके विराट रूप का
बोध हुआ। लगा उनसे छोटी- छोटी नश्वर चीजे
क्या माँगे? उन्होंने माँगा माँ मुझे भक्ति दो- शक्ति दो- शान्ति
दो। माँ ने उनकी प्रार्थना सुनी और वे महान बन गये।
आइये हम भी माँ से छोटी- छोटी नश्वर चीजें न माँगकर श्रेष्ठ वर माँगे। (पुनः स्थाई दुहरवायें)