युग गायन पद्धति

जुट जायें हम सब मिलकर

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व्याख्या- नवयुग का निर्माण खुशहाली से ही संभव है। हम बदलेंगे- युग, हम सुधरेंगे- युग सुधरेगा। तभी इस धरा पर फिर से खुशहाली संभव हो सकता है, इसके लिए हम सभी जुट जायें।

स्थाई- जुट जायें हम सब मिलकर के, नवयुग के निर्माण में।
आओ हम खुशहाली बो दें, फिर से इसी जहान में॥

व्याख्या- यह धरती हमारी पूज्य है। हर किसान श्रम- मेहनत करके अन्न उपजाता है और दाता कहलाता है। यही वरदान हमें खेतों और खलिहान से मिलते हैं। हमें किसान का सम्मान करना है।

अ.1- ये धरती है पूज्य हमारी, ये हम सब की माता।
हर किसान इसके वरदानों, से दाता कहलाता।
ये वरदान हमें मिलते हैं, खेतों में खलिहान में॥

व्याख्या- श्रम देवी की आराधना से धरती माता का रूप सँवारे। तन से पसीना बहायें, मन से खुशहाली फैलायें। शीत, ग्रीष्म, बरसात में हम मेहनत करें। तभी खुशहाली संभव है।

अ.2- सब बेटे मिल आज सँवारे, धरती माँ के रूप को।
सहते जाते हँसते- गाते, जाडा़, पानी, धूप को।
बहे पसीना तन से श्रम का, माता के स्नान में॥

व्याख्या- लहलहाती फसलें ही धरती की शान है। धरती पर उपजाये अनेक प्रकार के फल एवं फूलों से धरती माँ का पूजन करें। तभी माँ धरती मुस्कुरायेंगी। हमारी झोली अनुदान वरदान से भर देंगी।

अ.3- माँ को लहराती फसलों की, हरियाली हम दें जायें।
मस्ती में माँ की महिमा का, सब मिलकर के गुण गायें।
फूल झरायें हम पूजा के,माँ की हर मुस्कान में॥

व्याख्या- धरती माता से जो अन्न हमें मिलता है वह माँ का प्रसाद है। प्रसाद को बाँटकर खाना चाहिए। हमारे पास- पड़ोस में कोई भूखा न रहे। यह प्रसाद हमें किसान के मेहनत से ही मिलता है। उस अन्नदाता का सम्मान करना हमें आना चाहिए।

अ.4- जो प्रसाद हमको माता दे, खुद खायें सब को बाँटे।
माता के वरदानों से हम, जन- जन के संकट काटें
दर्शन करें अन्नदाता के, सब ही श्रेष्ठ किसान में॥

व्याख्या- यदि हमारे पास- पड़ोस में कोई भूखा रहता है तो यह हमारा भी अपमान है और अन्नदाता का भी, धरती माता का भी। अतः हम सभी धरती पुत्रों को संकल्प लेना चाहए कि माँ के आँचल में दाग न लगने दें।

अ.5- कहीं न ऐसा हो कि हमारे, रहते माँ बदनाम हो।
रहते हुए अन्नदाता के, कहीं न भूखी शाम हो।
व्रत लें दाग न लगने देंगे, माँ के पावन शान में॥

जीवन एक शानदार खेत है। इससे सद्विचारो सत्कर्मो के बीज बोकर मानवीय गौरव की फसल उगाई जाती है। जिन्होने ऐसी खेती की वे महान बन गये। युगऋषि ने जीवन बोने और काटने का सिद्धान्त अपनाना और उसी के लिए जन- जन को प्रेरित किया। आइये हम भी जीवन रूपी खेतो में खुशहाली बोने वाले बने...... (स्थाई पुनः दुहराये)
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