व्याख्या- प्रायः हम सही रास्ते पर चलने के लिए साथी ढूँढ़ते
हैं और अकेले कुछ भी करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते किन्तु
कवि प्रेरित करता है कि यह विचार छोड़ दो कि अकेली किरण क्या
कर सकती है।
स्थाई- न सोचो, अकेली किरण क्या करेगी?
तिमिर में अकेली किरण ही बहुत है॥
जब एक कदम बढ़ाना भी कठिन हो और आशा के गीत गुनगुनाना
मुश्किल हो, तो ऐसे क्षणों में यदि एक आशावाद बरस जाता है तो
सारी ताप एवं थकान दूर कर देता है।
अ.1- कठिन हो कि जब एक पग भी बढ़ाना।
कठिन हो कोई गीत जब गुनगुनाना॥
थकावट भरे इन व्यथा के क्षणों में।
बरसता हुआ एक घन ही बहुत है॥
पानी बिना पात्र के हर जगह बरसता है तो न जाने कितना पानी
सड़कों, नालियों में व्यर्थ बह जाता है किन्तु समय पर अगर स्वाति
की एक बूँद भी सीप के अंदर प्रवेश कर सके तो वह मोती बना
देती है।
अ.2- समय की पात्रता बिन विचारे।
निरर्थक गिरे मेघ, जल बिन्दु सारे॥
समय पर अगर सीप में गिर सके तो,
अकेला मृदुल स्वाति- कण ही बहुत है॥
अनेकों तीर्थों में नहाकर भी अगर आत्मशांति
न मिल सके तो अनेकों तीर्थों में जाना व्यर्थ है, किन्तु यदि
भावना के साथ आचमन मात्र कर लिया जाये तो वह आत्म परिशोधन के
लिए पर्याप्त है।
अ.3- अनेकों जगह तीरथों में नहाया।
मगर आत्म- संतोष कुछ मिल न पाया॥
हृदय भावना से भरा हो अगर तो,
विमल बारि का आचमन ही बहुत है॥
अगर विषदार
फलों वाले वृक्षों के वन खड़े हों तो भी उनका क्या उपयोग,
किन्तु मन में भक्ति भावना का एक सुमन भी खिल जाये तो वह
लोगों को सांत्वना देने के लिए पर्याप्त है।
अ.4- करेंगे भला क्या विषैले वनों का।
न इनसे भला हो सकेगा जनों का॥
मनों में सरस- भावना को जगाने,
अके ला सुगंधित सुमन ही बहुत है॥
अकेला सूरज रोज आवाहन कर रहा है कि अकेले ही चल पड़ो, फिर देखो राहें स्वयं ही बनती जायेंगी। अरे!
भटके हुए को तो एक प्रखर ज्योति किरण ही पर्याप्त है। अतः
सत्य मार्ग पर अकेले ही चल पड़ो। धीरे- धीरे भले और साहसी लोग
जुटने लगेंगे और सृजन सैनिकों की सेना सक्रिय हो जायेगी।
अ.5- कहाँ तक दिवाकर बुलाता रहेगा।
तुम्हें रोज राहें दिखाता रहेगा॥
भ्रमित को वहाँ लक्ष्य तक भेजने का,
अकेला प्रखर ज्योति- कण ही बहुत है॥