टिप्पणी- भारत माता- गायत्री माता जन्मदात्री माता की तरह ही पूज्य
है। उनकी गरिमा का ध्यान रखते हुए हर सपूत अपनी भाव
श्रद्धाञ्जलि समर्पित करता है। भाव संवेदनाओं से भरी पूरी अश्रु
माला समर्पण एवं संवेदना का प्रतीक मानी जाती है। भक्त की सबसे
बड़ी सम्पदा यही है। भारत माता के सपूत- प्रज्ञा पुत्र का
अंतःकरण वेदमाता, देवमाता, विश्वमाता के प्रति ऐसी ही श्रद्धा भावना
से भरा रहता है। नमन वंदन की अभिव्यक्ति के साथ- साथ अपनी
आकांक्षा भी प्रकट करते हैं।
स्थाई- माँ तेरे चरणों में हम शीश झुकाते हैं।
श्रद्धा पूरित होकर, दो अश्रु चढ़ाते हैं॥
माता का अंतराल से आवाहन करते हुए प्रज्ञा पुत्र अपेक्षा करता है कि माता अपने अवतरण के साथ- साथ हृत्तंत्री के तार झनझना देगी और सद्भाव उभर आयेंगे। वे ऐसी हुंकार भरेंगी
जिससे जड़ जमा कर बैठे हुए दुर्भावों के पैर उखड़ जायेंगे। माँ
की गोदी में बैठने का अनुभव करता हुआ प्रज्ञा पुत्र महान माता
का महान सपूत रहने की शपथ उठाता है। माता की और अपनी गरिमा
बनाये रहने का सन्मार्ग न छोड़ने का वचन देता है।
अ.1- झंकार करो ऐसी, सद्भाव उभर आये।
हुंकार भरो ऐसी, दुर्भाव उखड़ जायें।
सन्मार्ग न छोड़ेगे, हम शपथ उठाते हैं॥
भक्त भिखारी नहीं होता। दूसरों के अनुग्रह से अपनी तृष्णायें पूरी करने के लिए गिड़गिड़ाता
नहीं। इससे उसे आत्मग्लानि भी अनुभव होती है। ऐसी स्थिति आने पर
वह माता से कहता है गरिमा से गिरने और हेय स्तर की हीनता
अपनाने पर उसे दुत्कार दिया जाय। किन्तु लोक कल्याण की भावना
दृष्टिगोचर हो तो सुविचारों को और अधिक बढ़ा दें।
हें माँ! हम तेरे हैं, तेरे कहलाते हैं तो उस स्तर की लाज भी रखेंगे। तेरे बताये हुए मार्ग पर चलेंगे।
अ.2- यदि स्वार्थ हेतु माँगे, दुत्कार भले देना।
जनहित हम याचक हैं, सुविचार हमें देना।
सब राह चलें तेरी, तेरे जो कहाते हैं॥
प्रज्ञा पुत्र माता के अनुग्रह को ऐसे उत्साह, उल्लास के रूप
में प्राप्त करना चाहता है जिसके प्रकाश से संसार भर में
मुस्कान दौड़े। ऐसी जीवन ज्योति अखण्ड बनकर जले जिसका तेल- स्नेह
कभी समाप्त ही न हो। श्रेष्ठ कार्य तो निरंतर बन पड़े पर उनका
तनिक भी अहंकार न आये।
अ.3- वह हास हमें दो माँ, सारा जग मुस्काये।
जीवन भर ज्योति जले, स्नेह न चुक पाये।
अभिमान न हो उसका, जो कुछ कर पाते हैं॥
हे माता!
आपके आँचल की छत्र छाया में पल रहे हैं तो विश्वास रखें, हम
आपकी गौरव गरिमा को भी बनाये रहेंगे। तुम्हारे पुत्र हैं तो आचरण
भी वैसा ही रखेंगे। तुम्हारा संदेश प्रकाश व्यापक बनाने में
अग्रदूतों की भूमिका सम्पन्न है उससे पीछे न हटेंगे। आपका कर्ज
चुकाने और अपना फर्ज निभाने में कुछ उठा न रखेंगे। आपके चरणों
पर शीश झुकाते हुए इस प्रकार हम अपना हृदय खोलकर भी आपके
सम्मुख रखते हैं।
अ.4- विश्वास करो माता हम पूत तुम्हारे हैं।
बलिदान क्षेत्र के माँ, हम दूत तुम्हारे हैं।
कुछ त्याग नहीं अपना, बस कर्ज चुकाते हैं॥