पास रहता हूँ तेरे
पास रहता हूँ तेरे सदा मैं अरे।
तू नहीं देख पाये तो मैं क्या करूँ॥
मूढ़ मृग तुल्य चारों दिशाओं मे तू।
ढूँढ़ने मुझको जाये तो मैं क्या करूँ॥
कोसता दोष देता मुझे है सदा।
मुझको यह न दिया मुझको वह न दिया॥
श्रेष्ठ सबसे मनुज तन तुझे दे दिया।
सब्र तुझको न आये तो मैं क्या करूँ॥
तेरे अंतःकरण में विराजा हुआ।
कर न यह पाप संकेत करता हूँ मैं॥
लिप्त विषयों में खो सीख मेंरी भुला।
ध्यान में तू न लाये तो मैं क्या करूँ॥
जाँच अच्छे- बुरे की तुझे हो सके।
इसलिए बुद्धि मैने तुझे दी अरे।।
किन्तु तू मन्द भागी अमृत छोड़कर।
घोर विषयों में जाये तो मैं क्या करूँ।।
सरल सुखकर मनोरम सुदृश्यों भरा।
विश्व सुन्दर प्रकाशार्थ मैंने दिया।।
अपनी करतूत से स्वर्ग वातावरण।
नर्क तू ही बनाये तो मैं क्या करूँ।।
पूज्यवर गुरुदेव की चतुरंगिनी
पूज्यवर गुरुदेव की चतुरंगिनी सेना चली।
जो भी जुड़ते इस समर में, धन्य होते जा रहे।।
पूज्यवर गुरुदेव का अनुदान इन सबको मिला।
कष्ट या कठिनाइयों में, फूल भी मन में खिला।।
युग विचारों को लिये, ये वीर बढ़ते जा रहे।
विश्व से दुर्गुण पराभव, को मिटाते जा रहे।।
ईष्ट को लेकर हृदय में, कृष्ण की सेना चली।।
युग बदलने के महा उद्घोष से गूँजा गगन।
सैनिकों के त्याग तप से, आज खिलता है चमन।।
साधना की भट्ठी में, इनको तपाया जा रहा।
पूज्यवर टकसाल में इनको बनाया जा रहा।।
पूज्यवर की छाप ले, श्रीराम की सेना चली।।
जब जरूरत आ पड़ी तब, पुल बना दिखला दिया।
गहन जंगल रौंदकर, गुलजार कर दिखला दिया।।
हाथ में छाले पड़े या पैरों में काँटे चुभे।
चीर गंगा धार को, सतयुग बना दिखला दिया।।
ज्ञानपट साहित्य ले, चतुरंगिणी आगे बढी।।
नाम है मुख में गुरु के, तन में नव उत्साह है।
बह रही है श्रम की बूँदें, मिट रहे भव पाश है।।
व्यक्ति- व्यक्ति को बदल, जग में बवण्डर ला रहे।
एक से बढ़कर नया इतिहास रचते जा रहे।।
स्वर्ग धरती को बनाने, आज सेना बढ़ चली।।