व्याख्या- जिस प्रकार व्यक्ति के जीवन में शक्ति की साधना के
बिना कोई सफलता संभव नहीं होती, उसी प्रकार समाज की शक्ति के
बिना समाज का उत्थान संभव नहीं। अतःहे राष्ट्र शक्ति नारी! तुम्हें राष्ट्र का शत शत प्रणाम है।
स्थाई- शक्ति बिना न बनता बिगड़ा कोई काम।
नारी तुम हो शक्ति राष्ट्र की, शत्- शत् तुम्हें प्रणाम॥
विश्व का कल्याण करने के लिए शिव के साथ शक्ति साधना आवश्यक
हो गई है शिव अर्धनारीश्वर के नाम से ही विख्यात हो गये, तथा
देवता भी जब- जब असुरों द्वारा सताये गये, तब- तब दुर्गा के रूप
में तुम्हारी शक्ति ने ही देवताओं को विजय श्री दिलायी।
अ.1- महादेव शिव ने जगहित है आदि शक्ति को साधा।
बने ‘अर्धनारीश्वर’ जिसमें रूप तुम्हारा आधा॥
देवों को जब- जब असुरों ने छेड़ा और सताया।
तब देवों को भी विपदा में, ध्यान तुम्हारा आया॥
तब दुर्गा बनकर तुमने ही, जीते वे संग्राम॥ नारी....॥
तुमने ही जीजाबाई के रूप में छत्रपति शिवाजी का निर्माण कर दिखाया, जिसके नाम से शत्रु कांप उठते थे और तुम्हीं ने महारानी झाँसी के रूप में अंग्रेजों के दांत खट्टे कर यह प्रमाणित कर दिया कि नारी अबला नहीं सबला
है। नारी का उत्साह जब उमड़ता है तो नव प्रभात की आभा चमक
उठती है और जब नारी उदास हो जाती है तो निराश की शाम घिर आती है।
अ.2- वीर शिवा भी तो माँ से प्रेरित हो आए आगे।
रिपु भी टिक न सके थे, जिनकी, प्राण शक्ति के आगे॥
झाँसी की रानी बन तुमने, जब तलवार चलायी।
अंग्रेजों जैसे शासक की, छाती थी थर्रायी॥
है प्रभात उत्साह तुम्हारा, उदासीनता शाम॥ नारी....॥
आज व्यक्ति, परिवार, राष्ट्र दुर्गति के दौर से गुजर रहा है और
अब तुम्हीं पर सब की आशा टिकी है और पीड़ित मानवता भी अब
शक्ति स्वरूपा नारी से ही गुहार कर रही है। किन्तु इन दिनों तुम
अपनी गरिमा भूलकर भौतिक आकर्षणों में उलझकर समाज उत्थान के
प्रति उदासीन हो गई हो। यह स्थिति मानवता को असह्म हो गई है। तुम राष्ट्र की आधी क्षमता हो, तुम्हारी दयनीय दशा का ही परिणाम राष्ट्र को भोगना पड़ रहा है।
अ.3- घर परिवार, राष्ट्र की दुर्गति, तुम्हें निहार रही है।
युग- युग से पीड़ित- मानवता, तुम्हें पुकार रही है॥
किन्तु उपेक्षा, उदासीनता, देख तुम्हारी नारी।
मानवता छटपटा उठी है, मन में पीड़ा भारी॥
आधी- आबादी की मूर्छा का, यह है परिणाम॥ नारी....॥ यदि शक्ति स्वरूपा नारी ही नहीं जागी तो पौरूष का शिवत्व कैसे अशिव से जुझ
सकेगा।
विनाश हावी होता जा रहा है। क्योंकि सृजन की शक्ति
उदासीन हो गई है। हर क्षेत्र में शिथिलता आ गई है और पौरूष की प्रगति रूक गई है। अगर अब भी शक्ति स्वरूपा नारी नहीं जागी तो राष्ट्र का भविष्य अंधकार मय है। इसलिए राष्ट्र निर्माणी उठो!
अ.4- शक्ति न जागी तो शिव कैसे, दुष्ट अशिव को तोड़े।
ध्वंस हुआ हावी मानव को, कौन सृजन से जोड़े॥
रूका हुआ हर क्षेत्र प्रगति का, अंगड़ाई सी गति है।
बिना तुम्हारे रुकी- रुकी सी, नर की सभी प्रगति है॥
शक्ति न जागी अगर राष्ट्र की होगा क्या अंजाम॥ नारी....॥