टिप्पणी- भक्ति चाटुकारिता नहीं है। उसका स्वरूप चारणों जैसा यशगान
करके ईनाम पाना नहीं है। भगवान को न किसी की रिश्वत चाहिए न
भेंट उपहार। न कोई उन्हें चापलूसी, खुशामदखोरी
अपनाकर वशीभूत कर सकता है। भक्ति तभी सच्ची और सार्थक होती है
जब उसमें स्वार्थपरता की मनोकामनाएँ पूर्ण कराने का भाव न हो।
भगवान के आदर्शों पर चलने और उनके प्रयाजनों में काम आने पर ही भक्ति वास्तविक कहलाती है।
स्थाई- श्री राम भक्ति ऐसी श्रद्धा उभारती है।
निष्काम भाव शबरी, ऋषि पथ बुहारती है॥
भगवान भक्ति नहीं वरन् शक्ति हैं। प्रतिमा पूजन से भक्ति का
अभ्यास आरंभ होता है पर उसमें जैसे ही प्रौढ़ता आती है- सद्गुणों
के सत्प्रवृत्तियों के समुच्चय को भगवान समझा जाने लगता है और
सद्भावना सेवा साधना के रूप में जीवन्त चर्चा में सम्मिलित किया
जाने लगता है। भक्ति का उदय होते ही वाल्मीकि, सूर, तुलसी, अंगुलिमान की तरह जीवन में उच्चस्तरीय परिवर्तन होता है। वह प्रलोभनों और आतंको का दबाव सहते हुए भी विभीषण की तरह अपने स्तर को अपने बल बूते स्वयं सुदृढ़ बनाये रहता है। ऐसे ही आदर्शवादी भक्त भगवान का प्यार एवं अनुग्रह पा सकने में सफल होते हैं।
अ.1- गाये जटायु ने थे, कब भक्ति के तराने।
श्रीराम को गिलहरी पहुँची न जल चढ़ाने।
पर भक्ति भावना से जीवन सँवारती है॥
भक्त भगवान को अपना वशवर्ती बनाकर कर्म फल व्यवस्था समाप्त कर
देने और कामना पूर्ति का पक्षपात बरतने के लिए आग्रह नहीं
करता। वह अपने को सच्चे मन से उन्हीं के हाथों में सौंपकर
निश्चिंत रहता है। वह सती धर्मपत्नी जैसा समर्पण भाव अपनाता है।
अर्जुन ने कृष्ण के हाथों में सौंपा तो भगवान भी उनके सारथी
बनने को तैयार हो गये।
अ.2- हनुमान भक्त ऐसे, माला घुमा न पाये।
श्रीराम को पुजापा, केवट चढ़ा न पाये।
इनका चरित्र पावन, प्रतिभा निखारती है॥
सच्चा भक्त भक्ति को आदर्श, भगवान का गौरव और भक्त का चरित्र
पूरी तरह समझता है और उसमें से किसी को भी कलंकित नहीं होने
देता। भगवान भी भक्त को दोष, दुर्गण
छोड़ने और संकीर्ण स्वार्थपरता से ऊँचे उठने के लिए बाधित करते
है। चिंतन और चरित्र को निर्मल बनाने पर ही भगवान की कृपा
पात्र बनने का अवसर मिलता है।
अ.3- बारह बरस जगे तब, लक्ष्मण में शक्ति आई।
शासक भरत बने पर, आशक्ति छू न पाई।
तब श्रेष्ठ भक्त जगती, इनको पुकारती है॥
भक्त जन, नारद, भगीरथ, हनुमान, शबरी, मीरा की तरह सदा परमार्थरत
रहते हैं। भक्ति के खरी- खोटी होने की परीक्षा इसी कसौटी पर होती
है कि वह विश्व उद्यान को श्रेष्ठ समुन्नत बनाने के उदात्त
भाव श्रद्धा का परिचय किस सीमा तक दे सकता है। आज भगवान ने
अपने सभी भक्तों को युग तमिस्रा मिटाने के लिए प्रकाश दीपकों की
तरह जलने के लिए निमंत्रण भेजा है। जिनमें भावना होगी वे इस
अवसर पर जिस तिस बहाने मुँह छिपाते न रहेंगे।
अ.4- यदि भक्त हम कहायें, तो श्रेष्ठ काम करना।
श्रीराम काज करने, अन्याय से न डरना।
युग धर्म को निभाने, प्रज्ञा पुकारती है॥