गीत संजीवनी-4

उठो सुनो प्राची से उगते

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उठो सुनो प्राची से उगते

उठो सुनो प्राची से उगते सूरज की आवाज।
अपना देश बनेगा सारी दुनियाँ का सरताज॥

देश की जिसने सबसे पहले, जीवन ज्योति जलाई।
और ज्ञान की किरणें सारी, दुनियाँ में फैलाई॥
मोह निशा में फँसे विश्व को, बन्धन मुक्त कराया।
भाई- चारे का प्रकाश, सारे जग में फैलाया॥
अगणित बार बचाई जिसने, मानवता की लाज॥
अपना देश बनेगा सारी, दुनियाँ का सरताज॥

इतना प्रेम कि पशु पक्षी तक, प्राणों से भी प्यारे।
इतनी दया कि जीव मात्र सब, परिजन सखा हमारे॥
श्रद्धा अपरम्पार कि पत्थर, में भी प्रीति जगाई।
और पराक्रम ऐसा जिसकी, रिपु भी करें बड़ाई॥
उसी प्रेरणा से रच दें हम, फिर से नया समाज।
अपना देश बनेगा सारी, दुनियाँ का सरताज॥

मानवता के लिये हड्डियाँ, तक जिनने दे डाली।
माताओं की हुईं अनेकों, बार गोदियाँ खाली॥
पर न पाप के आगे उनने, अपना शीश झुकाया।
संस्कृति का सम्मान बढ़ाने, हँस- हँस शीश कटाया॥
रहे शिवाजी अर्जुन जैसा, निज चरित्र पर नाज।
अपना देश बनेगा सारी दुनियाँ का सरताज॥

दिया न्याय का साथ भले ही, हारे अथवा जीते।
गीद्ध, गिलहरी तक न रहे थे, परमारथ से पीछे॥
इसी भूमि में वेद पुराणों, ने थी शोभा पाई।
जन्म अनेकों बार यहीं, लेते आये रघुराई॥
स्वागत करने को नवयुग का, नया सजायें साज॥
अपना देश बनेगा सारी, दुनियाँ का सरताज॥

सोये स्वाभिमान को आओ, सब मिल पुनः जगायें।
नव जागृति के आदर्शों को, दुनियाँ में फैलायें॥
ज्ञान यज्ञ की यह मशाल, हर लेगी युग तम सारा।
हम बदलेंगे- युग बदलेगा, आज लगायें नारा॥
सुनो अरे! युग का आवाहन, कर लो प्रभु का काज॥
अपना देश बनेगा सारी, दुनियाँ का सरताज॥

मुक्तक-

ओ! ऋषि पुत्रों उठो तुम्हारा, गौरव तुम्हें बुलाता है।
तन्द्रा छोड़ो नये सृजन हित, सूरज तुम्हें जगाता है॥
देवभूमि के वासी अपनी, दिव्य शक्तियाँ पहचानो।
अग्रदूत बन महाक्रान्ति के, हित कुछ करने की ठानो॥

संगीत के प्रभाव से जीव- जन्तुओं की भाँति पौधे भी मुक्त नहीं है।
राग- रागनियों का प्रभाव गन्ना, धान शकरकंद, नारियल पर पड़ता है। -डॉ. टी.एन.सिंह
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