गुरुगीता पाठ विधि

श्री सद् गुरु स्तुति

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॥ श्री सद्गुरुस्तुतिः॥

जगदीश सुधीश भवेश विभो,
परमेश परात्पर पूत पितः।
प्रणतं पतितं हतबुद्धिबलं,
जनतारण तारय तापितकम्॥ १॥
गुणहीनसुदीनमलीनमङ्क्षत,
त्वयि पातरि दातरि चापरतिम्।
तमसा   रजसावृतवृत्तिमिमं,
जनतारण तारय तापितकम्॥ २॥
मम जीवनमीनमिमं पतितं,
मरुघोरभुवीह    निरीहमहो।
करुणाब्धिचलोॢमजलानयनं,
जनतारण तारय तापितकम्॥ ३॥
भवतारण कारण कर्मततौ,
भवसिन्धुजले शिव! मग्नमतः।
करुणाञ्च समर्प्य तङ्क्षर त्वरितं,
जनतारण तारय तापितकम्॥ ४॥
अतिनाश्य जनुर्मम पुण्यरुचे,
दुरितौघभरैः परिपूर्णभुवः।
सुजघन्यमगण्यमपुण्यरुङ्क्षच,
जनतारण तारय तापितकम्॥ ५॥
भवकारक नारकहारक हे,
भवतारक पातकदारक हे।
हर शङ्कर किङ्करकर्मचयं,
जनतारण तारय तापितकम्॥ ६॥
तृषितश्चिरमस्मि सुधां हित
मेऽच्युत चिन्मय देहि वदान्यवर।
अतिमोहवशेन विनष्टकृतं,
जनतारण तारय तापितकम्॥ ७॥
प्रणमामि नमामि नमामि भवं,
भवजन्मकृतिप्रणिषूदनकम्।
गुणहीनमनन्तमितं शरणं,
जनतारण तारय तापितकम्॥ ८॥
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