ये सारा के सारा जो कुछ भी हमारा दार्शनिक ढाँचा खड़ा हुआ है, इसी आधार पर खड़ा हुआ है और ये स्तर यदि मनुष्यों का बना रहा, तो जो कुछ भी आदमी काम करेगा, उसी में शान उत्पन्न हो जाएगी, उसी में सुख और सुविधा उत्पन्न हो जाएगी। ईमानदार आदमी अगर तिजारत करेगा, तो उससे सारी जनता को बहुत लाभ होगा और उससे चीजें खरीदने वालों को बहुत सन्तोष होगा। एक- दूसरे के प्रति प्रेम और विश्वास के भाव बढ़ेंगे। व्यापार हो तो क्या? अध्यापन हो तो क्या? मजदूरी हो तो क्या? कोई भी काम क्यों न हो, अगर मनुष्य ऊँचे दृष्टिकोण से करे, अच्छे दृष्टिकोण से करे, तो वे छोटा सा काम समाज के लिए बहुत उपयोगी हो सकता है और व्यक्ति की शान और गौरव को ऊँचा उठा सकता है। हर आदमी यह कोशिश करेगा कि मेरा काम अच्छे किस्म का हो और मेरी इज्जत उस अच्छे काम के साथ में जुड़ी हुई हो। पैसा कम देता हो कि ज्यादा, लोग इस बात की सराहना करें कि किसी आदमी ने इसे बड़ी दिलचस्पी और बड़ी मेहनत के साथ किया है। फिर उसकी इज्जत और आबरू लोगों की आँखों में भी बढ़े और अपनी आँख में भी। अपने आपको भी यह मालूम पड़े कि हम ईमानदार, शरीफ, नेक और कर्तव्यपरायण और वचन के पाबंद हैं। आदमी की ऊँचाई इसी बात पर टिकी है।