मित्रो! प्रत्येक घर में एक छोटी लाइब्रेरी होनी ही चाहिए। यह लाइब्रेरी ऐसी होनी चाहिए कि जिससे घर के बच्चों को, भाई और बहनों को, पढ़े-लिखो को या तो पढ़ाया जा सके या सुनाया जा सके। उनका बौद्धिक परिष्कार करने के लिए कुछ साधन-सामग्री तो होनी ही चाहिए। साधन-सामग्री के बिना उनको क्या सिखाया जाए क्या पढ़ाया जाए क्या सुनाया जाए? इस तरीके से उस साधन-सामग्री को घर की एक संपदा के रूप में, एक तिजोरी के रूप में, एक जेवर के रूप में, एक अँगूठी के रूप में घर में रखा जाना चाहिए और वह धन प्रत्येक घर में खरच किया जाना चाहिए जिसकी न्यूनतम मात्रा एक रुपया कही गई है। युग निर्माण योजना ने इस बात का प्रयत्न किया है कि इस तरह का साहित्य तैयार किया जाए ऐसी पत्र-पत्रिकाएँ निकाली जाएँ जो इस युग की बौद्धिक भूख को बुझाने में समर्थ हो और ऐसे साहित्य को प्रत्येक आदमी अपने घर में रखे। उसके लिए एक रुपया रोज खरच करे।
मित्रो! समय को खरच करने के लिए भी बात इसीलिए की गई है कि अगर हम केवल साहित्य रख दें और पुस्तकालय खोल दें, घर में रख दें या किसी लाइब्रेरी में रख दें तो उससे कुछ बनने वाला नहीं है। आज मनुष्य की ज्ञान की भूख मर चुकी है। उसकी मरी हुई भूख को जगाने के लिए केवल साहित्य को रख देना काफी नहीं है, वरन उसकी इच्छा को जगाना भी जरूरी है। हमने देखा है कि उपन्यास पढ़ने वाले, गंदी किताबें पढ़ने वाले ढेरों हैं। वे लाइब्रेरियों में जाते हैं और पैसा देते हैं, किताबें खरीदते हैं, नॉवेल खरीदते हैं, गंदी किताबें खरीदते हैं और उन पर पैसा खरच करते हैं, लेकिन अगर अच्छी किताबें लेने के लिए कहा जाए तो मुँह मोड़ लेते हैं और कहते हैं कि ये हमें अच्छी नहीं लगतीं, हमको फुरसत नहीं है, समय नहीं है। इसकी वजह एक ही है कि जीवन जैसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न के ऊपर उनकी कोई इच्छा नहीं है। उनकी इच्छा सो गई है, वे जीवन के स्वरूप को भूल गए हैं। जीवन की आवश्यकताओं के बारे में उन्हें कोई ज्ञान नहीं है।