चल-पुस्तकालय, झोला-पुस्तकालय, दस नया पैसा अपनी घरेलू लाइब्रेरी के लिए निकालना और एक घंटा समय लोक-मंगल के लिए, ज्ञानयज्ञ के लिए, प्रचार-प्रसार करने के लिए- यह आज की हमारी कार्यशैली है। यह है तो जरा सी, छोटी सी योजना; लेकिन हम देखते हैं कि इस प्रयास के द्वारा अगर समाज में नया जीवन लाया जा सका और लोगों के सोचने का तरीका बदला जा सका, लोगों के अंदर प्राण पैदा किया जा सका, लोगों के अंदर उल्लास-उत्साह पैदा किया जा सका, लोगों को सत्चिंतन की दिशा दी जा सकी, तो निश्चित रूप से मनुष्य जो आज दिखाई पड़ता है कल नहीं रहेगा और जो समाज आज दिखाई पड़ता है, वह कल नहीं रहेगा। आज जो विकृतियाँ सारे समाज को भ्रष्ट किए हुए हैं, वे कल नहीं रहेंगी। जमाना अवश्य बदल जाएगा। जमाना बदलने के लिए सबसे बड़ी आवश्यकता ज्ञान की है। इन चिनगारियों की मशाल अगर जलाए रखी जा सके, तो हम न केवल भारतवर्ष की, वरन् समस्त विश्व की, समस्त प्राणिमात्र की, सारे जड़-चेतन जगत् की महती सेवा कर सकते हैं। ज्ञानयज्ञ हमारा विश्व-कल्याण का यज्ञ है। उसको भौतिक दृष्टि से हजार गुना, लाख गुना बड़ा माना जाना चाहिए और हर विचारशील को ज्ञानयज्ञ के लिए अपने हिस्से का कर्त्तव्यपालन करने के लिए कटिबद्ध हो जाना चाहिए।
आज की बात समाप्त।
‘‘ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष शान्तिः........................शान्तिरेधि॥’’