ज्ञान दीक्षा एवं समावर्तन संकल्प

एक तथ्य-एक दृष्टि विश्वविद्यालय-महाविद्यालय वे महत्त्वपूर्ण संस्थान हैं, जिनमें अध्ययनरत व्यक्ति निकट भविष्य में ही समाज-राष्ट्र एवं विश्व के महत्त्वपूर्ण पदों को सँभाल रहे होंगे। श्रेष्ठ समाज की स्थापना, उज्ज्वल भविष्य की संरचना के लिए व्यक्तियों में जिन गुणों एवं विशेषताओं का होना जरूरी है, उनका अध्ययन, अभ्यास यों तो बचपन से ही किया-कराया जाना आवश्यक है, किन्तु उक्त संस्थानों में तो इस सन्दर्भ में विशेष ध्यान दिया ही जाना चाहिए। नाम की सार्थकता विद्यालय और विद्यार्थी दोनों ही नामों के साथ ‘विद्या’ शब्द जुड़ा है। इस आधार पर विद्यार्थियों का प्राथमिक उद्देश्य विद्या का अर्जन तथा विद्यालयों का मुख्य उद्देश्य उसके अनुरूप वातावरण एवं व्यवस्था प्रदान करना होना चाहिए। नाम-सम्बोधन अपनी जगह ठीक हैं, किन्तु उन्हें उनके नामों-उद्देश्यों की गरिमा-प्रतिष्ठा के अनुरूप गढ़ने के बारे में गम्भीरता से सोचने और उस दिशा में तत्परता से प्रयास करने पर कितनों का ध्यान है? अभाव और भटकाव आज युवाओं, नई पीढ़ी के जीवन में भटकावों और विसंगतियों को लेकर आम लोगों से लेकर विज्ञजनों तक में काफी चिन्ता देखी जा रही है। यह चिन्ता उचित और स्वाभाविक है। युवाशक्ति जिसे परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व की समस्याओं के समाधान में लगना चाहिए, वह शक्ति नई-नई समस्याओं को पैदा करने में लगती दिखे, तो चिन्ता तो होनी ही चाहिए। इस दिशा में अध्ययन चिन्तन करने वालों के सामने कुछ प्रश्न बराबर उठ रहे हैं, जिनके समुचित उत्तर एवं समाधान सूझ नहीं रहे हैं,जैसे...

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