प्रत्येक आयोजन के साथ कोई सार्थक प्रयोजन जुड़ा होता है। आयोजन को एक आकर्षक कलेवर और प्रयोजन को उसका प्राण समझा जाना चाहिए। दोनों एक दूसरे के पूरक होते हैं। समारोह से व्यक्तियों में एक विशेष उत्साह जाग्रत् होता है। छात्र- छात्राओं के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त करना, उसके जीवन का महत्त्वपूर्ण प्रसङ्ग होता है। उसके साथ यदि जीवन के सार्थक सत्संकल्पों को जोड़ा जा सके, तो वह उनके मन- मस्तिष्कों में लम्बे समय तक सक्रिय रह सकते हैं। यदि समारोह को केवल औपचारिकता भर रहने दिया जाय, किसी प्रयोजन से न जोड़ा जा सके, तो उसे निष्प्राण ही कहा जायेगा और उसकी सार्थकता सिद्ध नहीं हो सकेगी।
इसलिए महाविद्यालयों में सत्रारम्भ के समय ज्ञान दीक्षा के माध्यम से विद्या का स्वरूप समझने तथा उसको विकसित करने का उत्साह छात्र- छात्राओं में उत्पन्न किया जाना चाहिए। इसी प्रकार स्नातकों में वह स्तर पाने के बाद व्यावहारिक जीवन में प्राप्त विद्या के श्रेष्ठ सदुपयोग के लिए संकल्पित- प्रतिबद्ध कराने का प्रयास किया जाना चाहिए। इन दो समारोहों को दो महत्त्वपूर्ण पर्वों का रूप देने से विद्यालयों के वातावरण को वाञ्छित संस्कारों से युक्त बनाने में बहुत योगदान मिल सकता है।