जहाँ ज्ञान दीक्षा समारोह के लिए सन्दर्भित अधिकारियों से सहमति मिल जाये, वहाँ उसके अनुरूप उत्साह का वातावरण बनाने की पहल भी करनी चाहिए। शिक्षकों एवं छात्रों के बीच छोटी- छोटी परिचर्चाओं, सदवाक्यों के बैनर, पोस्टर आदि से वातावरण बनाने में पर्याप्त सहयोग मिलता है।
मंत्र व्यवस्था -ज्ञानदीक्षा’ के संचालन मञ्च के निकट ही छोटा, किन्तु आकर्षक देवमञ्च स्थापित करें। उस पर ज्ञान यज्ञ की मशाल का ऐसा चित्र लगायें, जिसके आभामण्डल में सभी धर्मों के पवित्र प्रतीक चिह्न बने हों। चित्र के अलावा मञ्च पर केवल कलश और दीपक रखें। कर्मकाण्ड और विभिन्न उपचारों के क्रम में अभिषिञ्चन के लिए कलश, पूजन के लिए एक थाली, जिसमें पंचपात्र में जल, अक्षत, चन्दन, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य रखें एवं पुष्पाञ्जलि एकत्रित करने के लिए पात्र आदि स्व- विवेक के अनुसार रखें।
विशिष्ट अभ्यागतों, अतिथियों, कुलपति, प्राचार्य, प्राध्यापक तथा शिक्षक वर्ग के लिए शोभानुरूप बैठने की व्यवस्था बनायें। श्रद्धा आधारित कार्यक्रम में विशिष्ट व्यक्तियों के सहित छात्र- छात्राओं को जूते- चप्पल उतारकर ही आयोजन स्थल पर बैठने की समुचित व्यवस्था करें। इसी प्रकार विवेकानुसार अन्य व्यवस्थाएँ भी की जायें।
प्रारम्भिक क्रम --
ज्ञान दीक्षा समारोह का क्रम प्रज्ञा आयोजनों की गरिमा के अनुरूप सन्तुलित रहे। गायत्री महामन्त्र का भावार्थ कहकर, सबके लिए सद्बुद्धि- सबके लिए उज्ज्वल भविष्य की कामना के साथ गायत्री महामन्त्र का सामूहिक सस्वर उच्चारण कराया जाय। तत्पश्चात् उपयुक्त प्रज्ञा गीतों से वातावरण को भावनात्मक बनाया जाय। दीक्षा का कर्मकाण्ड प्रारम्भ करने से पहले अतिथियों का स्वागत, देव प्रतीकों पर माल्यार्पण, दीप प्रज्ज्वलन आदि का क्रम पूरा कर लेना चाहिए।