दीक्षा का अर्थ होता है-
‘‘किसी साधना में संकल्पपूर्वक लक्ष्य बनाकर प्रवेश कराना’’ छात्र जब स्नातक बनने के सङ्कल्प के साथ महाविद्यालय में प्रवेश लेता है, तभी वह स्नातक साधना के लिए दीक्षित होता है। जिस तरह अन्त में दीक्षान्त समारोह किये जाते हैं, उसी तरह प्रारम्भ में ज्ञान दीक्षा समारोह करना विवेक सम्मत है। देव संस्कृति विश्वविद्यालय में यह क्रम पहले सत्र से ही प्रारम्भ किया जा चुका है। उसे देख- समझ कर कई तकनीकी संस्थानों ने उसके संक्षिप्त स्वरूप को अपने यहाँ प्रसन्नतापूर्वक लागू किया है। उसके परिणाम भी काफी अच्छे निकले हैं।
उक्त सफल प्रयोगों के आधार पर युग निर्माण अभियान के अन्तर्गत ‘विद्यालयों में विचार क्रान्ति’ तथा शिक्षा के साथ विद्या के समन्वय के क्रम में क्षेत्र के विभिन्न महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों में ज्ञान दीक्षा समारोह कराने के लिए प्रयास किये जा सकते हैं।
देव संस्कृति विश्वविद्यालय का तो समग्र वातावरण ही अनोखा है। वहाँ विवेक संगत कोई भी परिपाटी बिना किसी झिझक के चलाई जा सकती है; लेकिन अन्य विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों में तो वातावरण भिन्न होता है, कोई भी परिपाटी चलाने के पूर्व भेद बुद्धि एवं शंकाओं को निर्मूल करने वाली रीति- नीति पर ध्यान दिया जाना जरूरी होता है। अतः क्षेत्रीय स्तर पर ज्ञान दीक्षा सम्पन्न कराने के लिए ‘ज्ञान दीक्षा’ का प्रारूप ऐसी ही तमाम सावधानियों के साथ तैयार किया गया है। प्राणवान् नैष्ठिक परिजन इसे देख- समझकर, तैयारी एवं सावधानीपूर्वक अपने प्रभाव क्षेत्र के विभिन्न संस्थानों में लागू करा सकते हैं। एक बार सम्पर्क बन जाने पर छात्रों तक व्यक्ति निर्माण, परिवार निर्माण एवं समाज निर्माण के अन्य सूत्र पहुँचाते रहना सम्भव हो जाता है।
अधिकतर महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों के नये सत्र जुलाई में आरम्भ होते हैं। इनमें पहले से ही प्रयास कर कुलपतियों से चर्चा- परामर्श करके ज्ञान दीक्षा समारोह के साथ सत्रारम्भ करने की व्यवस्था बनाई जा सकती है। यहाँ उसका संक्षिप्त प्रारूप प्रस्तुत किया जा रहा है। अनुभवी परिजन इसके आधार पर इसे सम्पन्न करा सकते हैं।