मित्रों! आप युवाओं के पास जोश है, अपरिमित ऊर्जा है, शक्ति है, इस युवा शक्ति को समाज के, युग सृजन में नियोजित करने की आवश्यकता है अन्यथा यह दिग्भ्रमित हो विध्वंस में लग सकती है। इससे जबर्दस्त नुकसान हो सकता है जिस प्रकार बाढ़ का पानी नदी के किनारों को तोड़ता हुआ तबाही मचाता है वैसे ही शक्ति को निरंकुश छोड़ दिया जाए तो इससे व्यक्तिगत एवं सामाजिक दोनों ही क्षेत्रों में बड़े दुष्परिणाम भुगतने पड़ते हैं। युवा शक्ति के सुनियोजन से दुहरा लाभ होगा।
एक तो रचनात्मक दिशा मिल जाने से आपकी प्रतिभा और योग्यता में निखार आएगा वहीं दूसरी ओर राष्ट्र निर्माण हेतु सृजन सिपाही की व्यवस्था बन सकेगी। आपको युग निर्माण के सृजन सेनानी बनने का गौरव हासिल होगा। राष्ट्र के निर्माण में दी जाने वाली आपकी इस आहुति से जहाँ आप भारत माता के सच्चे सपूत कहलायेंगे वहीं अपने स्वार्थ और समाज के विघटन के लिए युवा शक्ति को शोषित एवं भ्रमित करने वाले तंत्र हतोत्साहित होंगे।
आत्मनिर्माण से राष्ट्रनिर्माण और फिर युग निर्माण में भागीदारी का यह शानदार आमंत्रण आपके नाम भेजा है। आपसे अपील है कि युग धर्म निभायें। रावण वध, लंका विलय, कंस के आतंक का नाश, बुद्ध का धर्मचक्र प्रवर्तन, गांधी का सत्याग्रह, स्वतंत्रता आंदोलन, आचार्य शंकर की धर्मस्थापना, स्वामी विवेकानन्द का दिग्विजयी अभियान आदि सभी युवाकाल की ही उपलब्धियाँ रही हैं। आज युवावस्था को राष्ट्र पुकार रहा है।
आप चिन्ता न करें। आपको रचनात्मक आन्दोलनों में भागीदारी के लिए न तो अपनी पढ़ाई छोड़नी है न घर परिवार, नौकरी, व्यापार में घाटा उठाना है। अतीत में हमारे देश के युवा शहीदों एवं संन्यासियों ने तो बड़े- बड़े त्याग किए थे। आपसे इतनी अधिक अपेक्षा नहीं है। बस एक काम करना है, थोड़ा समय लगाकर रस लेते हुए व्यक्तित्व निर्माण के सूत्रों को अपने अभ्यास में शामिल कर लेना है।
हमने पहले ही आपसे अपील की है -- युग निर्माण अर्थात् -- ‘हम बदलेंगे युग बदलेगा’ अर्थात् अपना सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है। अतः प्रथम सेवा, प्रथम आंदोलन अपने व्यक्तित्व को बनाने की। इसके अन्तर्गत व्यक्तिगत स्तर पर सातों आन्दोलनों से सम्बन्धित न्यूनतम सूत्रों को संकल्पित होकर अपनाने हेतु अभ्यास करना है। दूसरी अपनी क्षमता एवं सुविधा के अनुसार सात आन्दोलनों से सम्बन्धित किसी एक दो कार्य को सामूहिक स्तर पर करने में सहयोग देना या उसका नेतृत्व करना है। आपको पिछली कक्षा में सात आंदोलन की जानकारी दी गई है। उससे सम्बन्धित सैद्धान्तिक एवं व्यवहारिक शिक्षण भी शिविर में दिया जा रहा है।
आइए एक बार इस बात की जानकारी हो जाए कि इन आन्दोलनों तहत आप क्या- क्या कर सकते हैं :-
(1) साधना आंदोलन
क)आत्मबोध व तत्त्वबोध की नियमित साधना। ख) नियमित उपासना। ग) जीवन साधना- सत्प्रवृत्तियों आदतों को अपनाने एवं दुष्प्रवृत्तियों -- गलत आदतों को छोड़ने का संकल्पपूर्वक अभ्यास करना। घ) गायत्री मंत्र का जप एवं नियमित लेखन करना।
(2) शिक्षा आंदोलन
1. स्वाध्याय, सत्संग, चिन्तन मनन करना और आचरण में कितना उतरा समीक्षा करना।
2. युग साहित्य के स्वाध्याय में स्वयं रुचि लेना औरों में भी रुचि जगाना।
3. बाल संस्कार शाला चलाना, प्रौढ़ शिक्षा शाला चलाना।
4. विद्यालयों एवं अपने पड़ोस परिवार में विचार क्रांति हेतु यु.नि.यो. के सत्साहित्य का विस्तार करना।
(3) स्वास्थ्य आंदोलन
1. स्वास्थ्य के सूत्रों को अभ्यास में लाना।
2. योग, व्यायाम, प्राणायाम तथा आहार विहार के नियम को दिनचर्या का अंग बनाना।
3. परिवार व समाज में उक्त सूत्रों को लागू करने का प्रयास करना।
(4) स्वावलम्बन आंदोलन
1. श्रमशील बनना, श्रम का, श्रम प्रधान वर्ग का सम्मान करना।
2. स्वयं सहायता बचत समूह बनाना।
3. ग्रामीण हस्तनिर्मित न्यूनतम 5 उत्पाद संकल्पपूर्वक इस्तेमाल करना।
4. दिनचर्या में यथासम्भव विदेशी कम्पनियों द्वारा निर्मित उत्पादों के इस्तेमाल से बचना यथासम्भव उसके विकल्पों को (स्वदेशी)अपनाना। औरों को प्रेरित करना।
5. स्वावलम्बन आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने हेतु उत्पादन या विक्रय की प्रक्रिया (तंत्र) से जुड़ना।
(5) पर्यावरण आन्दोलन
1. प्रकृति के पर्यावरण सन्तुलन के प्रति आस्था बढ़ाना।
2. कचरे का निस्सारण करना।
3. हरीतिमा संवर्द्धन हेतु स्वयं संकल्पित होकर पौधे लगाना, उसकी सुरक्षा करना, औरों को प्रेरित करना।
4. नर्सरी में पौधे तैयार करना, करवाना। घर पर जड़ी- बूटी के पौधे लगाना, औरों को उपहार में देना। अपने गांव में प्रशिक्षण करवाना।
(6) व्यसन मुक्ति, कुरीति उन्मूलन आन्दोलन
1. कुरीतियों व व्यसनों से समय श्रम, धन व स्वास्थ्य को बचाकर सृजन में, श्रेष्ठ कार्यों में लगाना।
2. स्वयं नशामुक्त हों औरों को नशा मुक्त होने की प्रेरणा देना।
3. विद्यालयों, विभिन्न सामाजिक संगठनों को इस हेतु प्रेरित व सक्रिय करना।
4. व्यसन व कुरीति छोड़ने वालों को सम्मानित करना, उनके लाभों को प्रकाशित करना।
5. स्वयं का आदर्श विवाह करने का संकल्प लेना। युवक दहेजरहित विवाह में गौरव समझें।
(7) नारी जागरण आन्दोलन
1. फैशनपरस्ती, जेवर/श्रृंगार का शौक त्यागना।
2. वेशभूषा, हेयर स्टाइल, रहन- सहन में सादगी अपनाना।
3. बालसंस्कार शाला, प्रौढ़ शिक्षा शाला एवं उपरोक्त आंदोलनों को स्वयं चलाना, उसके लिए प्रशिक्षित होना।
4. नारी स्वयं संस्कारवान बनें जागृत नारी बच्चों में प्रारम्भ से ही संस्कार डालें।
5. पुरुष बेटी, बहन, माँ, पत्नी आदि को प्रेरित कर नारी जागरण में सहयोग करें। घर के काम हल्के करें, विकास के अवसर दें, उनकी सहायक बनें।
युवा इनमें से अपनी रुचि व सुविधानुसार गतिविधियों को स्वेच्छा से चयन कर सकते हैं। परन्तु कुछ न्यूनतम बिन्दु जो व्यक्तिगत स्तर पर अपनाने ही चाहिए वे निम्नलिखित हैं अन्यथा जैसे बोया हुआ बीज बिना खाद के नष्ट हो जाता है वैसे ही इस शिविर में ऋषि सत्ता द्वारा जो बीजारोपण आपकी मनोभूमि में किया गया है वह नष्ट हो जाएगा अतः इतना तो करें ही। इसके लिए आपमें से प्रत्येक को संकल्पित होने की तैयारी कर लेनी चाहिए।
व्यक्तिगत स्तर पर अपनाए जाने वाले कार्य --
1. नियमित उपासना (जप, ध्यान), आत्मबोध व तत्त्वबोध की साधना।
2. नियमित प्रातः योगाभ्यास प्राणायाम।
3. नियमित स्वाध्याय द्वारा विचारों को उत्कृष्ट व मनोभूमि को ऊँचा उठाये रहना।
4. माता- पिता का सम्मान, नियमित अभिवादन, वाणी व्यवहार में शालीनता।
5. व्यसन मुक्त व फैशन मुक्त जीवन।
6. स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग का स्वयं अभ्यास करना।
स्वदेशी स्तर पर अपनाने योग्य कार्य :-
1. व्यसनमुक्ति आन्दोलन(विद्यालयों में नशामुक्ति हेतु संदेश देना)।
2. साप्ताहिक स्वच्छता सफाई, वृक्षारोपण(पौधा लगाना, नर्सरी बनाना)।
3. साप्ताहिक सत्संग गोष्ठी, स्वाध्याय मण्डल, झोला पुस्तकालय।
4. बाल संस्कार शाला चलाना।
5. स्वदेशी उत्पाद का निर्माण करना या मार्केटिंग तंत्र में सहयोग करना।
उपरोक्त सभी आंदोलन महत्त्वपूर्ण हैं इन्हीं के द्वारा युग निर्माण होना है। जैसे भारत को आजाद करने के लिए एक समय में सभी घरों से स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने हेतु एक सदस्य अनिवार्यतः अपेक्षित था। वैसे ही आज युग निर्माण हेतु विभिन्न आंदोलनों के लिए आंदोलन समूह बन रहे हैं। साधना आंदोलन सभी छहों आंदोलनों की धुरी है क्योंकि साधक ही सेवक हो सकता है। सेवा कार्य के लिए जो ऊर्जा एवं अनुशासन पालन की क्षमता आवश्यक है वह साधना से ही मिलती है।
शेष सभी आंदोलन को समझने एवं उस दिशा में सक्रिय होने के लिए उस विषय में जानकारी होना चाहिए। उस विषय में शिक्षित होना होगा। अतः शिक्षा आंदोलन प्रथम है।
शिक्षा आंदोलन से वास्तव में विचार क्रांति हो जाती है एवं प्रत्येक आंदोलन की पृष्ठभूमि बनाई जा सकती है। आपको सभी आंदोलन की सैद्धांतिक व व्यवहारिक प्रशिक्षण देने हेतु जिस शिविर को माध्यम बनाया गया है वह शिक्षा आंदोलन के