व्याख्यान का उद्देश्य-
(1) युवा वर्ग को उसकी शक्ति से परिचय कराना।
(2) वे ऋषि की संतान है इसका स्मरण कराना।
(3) युवा वर्ग का राष्ट्र के नवनिर्माण में भागीदार बनाना।
व्याख्यान का क्रम-
युवा शक्ति का आहवान क्यों? क्योंकि युवा ही क्रांति की सूत्रपात करने में सक्षम है। पूर्व में जितने भी क्रांतियाँ हुई है चाहे वह राजनैतिक हो सामाजिक, आर्थिक हो आध्यात्मिक इनमें युवाओं की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही है। वर्तमान में देश जिस उथल- पुथल के दौर से गुजर रहा है, आशंकित है आगे क्या होगा?
पर्यावरण का प्रदूषण, भ्रष्टाचार का दावानल, सूखती जल स्त्रोत, बढ़ती बेरोजगारी, बढ़ती नशाखोरी, बढ़ती अराजकता की भयावह दृश्य को केवल और केवल युवाशक्ति ही मिटा सकती है। पूर्व में हुई क्रांति की ही भांति आज युग एक क्रांति की आवश्यकता है। सारे देश की निगाहें आज युवा शक्ति पर टिकी हुई है। अतः युग निर्माण के मंच से ऐसे युवाओं का आहवान किया जा रहा है जिनके दिल में देश के लिये समाज के लिये कुछ करने की ललक हो।
युवा कौन-
थके तन और हारे मन से कोई युवा नहीं हो सकता, चाहे उसकी उम्र कुछ भी क्यों न हो? युवा का उल्टा होता है वायु- अर्थात जो वायु के वेग से चल सके। जिसके मन में उत्साह हो, उमंग हो, जो जीवन का कोई लक्ष्य निर्धारण किया हो और लक्ष्य प्राप्ति के लिये दृढ़ संकल्प हो वह युवा है। बच्चे भविष्य हैं, बुजुर्ग भूत हैं और युवा वर्तमान है जो अपने वर्तमान को बेहतर बनाने के लिये सोचता और करता है वह युवा है। युवा आत्मविश्वास का धनी होता है, वह ऊर्जा से ओत- प्रोत रहता है।
यदि युवा ऊर्जा के बिखराव को रोक सके तो जिस तरह सूर्य की किरणों को सुनियोजित कर बिजली पैदा की जाती है वैसे ही युवा वर्ग अपनी ऊर्जा को सुनियोजित कर किसी लक्ष्य की ओर अग्रसर होंगे तो कामयाबी निश्चित है। युवा कठिन चुनौतियों से कभी पीछे नहीं हटता बल्कि संघर्ष करते हुए रास्ता बनाकर मंजिल तक पहुँचता है। नेपोलियन कहता था कि असंभव मूर्खों की शब्दकोश में रहता है।
युवा सम्राट स्वामी विवेकानन्द जी कहते थे- युवा वह जो जोश से भरा हुआ है, जो सदैव क्रियाशील रहता है, जिसमें शेर जैसा आत्मत्व है, जिसकी दृष्टि सदा लक्ष्य पर होती है, जिसकी शिराओं में गर्म रक्त बहता है, जो विश्व में कुछ अनूठा करना चाहता है, जो भाग्य पर नहीं कर्म पर विश्वास रखता है, जो परिस्थितियों का दास नहीं उसका निर्माता, नियंत्रणकर्ता और स्वामी है।
युवा आन्दोलन के चार सूत्र हैः-
स्वस्थ युवा-
स्वास्थ्य से बेहतर बनाने शानदार शरीर सौष्ठव के निर्माण के लिये नियमित व्यायाम तथा आहार तथा विहार संयमित जीवन जीना चाहिए। शरीर के स्वास्थ्य के बिना जीवन में कोई उपलब्धि नहीं हो सकती। शरीर से कमजोर बीमार व्यक्ति का न कोई भविष्य होता है, न व्यक्तित्व। अतः अपनी दिनचर्या को व्यवस्थित रखना चाहिए, सुबह उठना, योग- व्यायाम करना, खान- पान को नियमित एवं समय पर करना चाहिए। देर रात तक जागना एवं सुबह देर तक सोते रहना स्वास्थ्य के लिये घातक है। जब युवा स्वस्थ रहेगा तभी वह बलिष्ठ होगा, ताकतवर बनेगा एवं राष्ट्र सशक्त होगा।
शालीन युवा-
‘‘शालीनता बिना मोल मिलती है पर उससे सब कुछ खरीदा जा सकता है।’’ इसका तात्पर्य है कि युवा अपनी शालीन अर्थात् शिष्टता एवं विनम्रतापूर्ण व्यवहार से किसी को भी अपना बना सकता है। बड़े से बड़े कार्य को वह अग्रजनों के सहयोग से सफलतापूर्वक कर सकता है। एक वाक्य में कहें तो शालीनता सफलता की प्रथम सीढ़ी है। आपका सुडौल, सुन्दर, मजबूत शरीर किसी को सताने के लिए नहीं बल्कि जरूरतमंद की सुरक्षा के लिये है। इस तरह युवा वर्ग शालीनता अपनाते हुए समाज के नवनिर्माण में भागीदारी करे तो हमारा राष्ट्र श्रेष्ठ राष्ट्र बन सकेगा।
स्वावलम्बी युवाः- पुस्तक से लेना है।
सेवाभावी युवा-
व्यक्तित्व निर्माण का सर्वोत्तम गुण सेवाभावी होना है। बिना सेवा के मानव जीवन को व्यर्थ बताया गया है। सेवा अर्थात विश्वहित में अपनी समस्त उपलब्धियों (समय, श्रम, ज्ञान, प्रतिभा धन आदि श्रेष्ठ गुणों)को लगाना, जिससे दुःख, पीड़ा- पतन, अभाव रोग शोक से ग्रसित समुदाय को राहत मिल सके। सेवा युवाओं का स्वाभाविक गुण है, किसी भी सार्वजनिक आयोजनों में श्रममूलक कार्य युवा ही करता है। इससे जहाँ आपको आत्मिक शांति मिलती है वहीं सामने वाला हृदय से शुभकामना देता है। बड़ों का यह आशीर्वाद आपके व्यक्तित्व को निखारता है।
अतः हर क्षण सेवा का अवसर तलाशें, आप से जो सहयोग बन पड़े पीछे न हटें। सेवा कार्य के लिये किसी की प्रतीक्षा की आवश्यकता नहीं आप चाहें तो हर क्षण, हर जगह सेवा का अवसर खुला है। देखना यह है कि आपकी अपनी रुचि किस तरह की सेवा कार्य के लिये है। नजर दौड़ाकर देखेंगे तो अपने आसपास ही ढेरों कार्य दिख पड़ेंगे। इस प्रकार यदि आज का युवा वर्ग सेवाभाव को अपना स्वभाव का अंग बना ले तो हमारे राष्ट्र को सुखी राष्ट्र बनने से कोई नहीं रोक सकता।