(अंतिम दिन प्रातः योगाभ्यास की कक्षा की समाप्ति के बाद यज्ञ से पहले पारिवारिक वातावरण में प्रशिक्षक गण शिविरार्थी तथा आयोजकों के एक दे प्रतिनिधि (जो युवाओं का नेतृत्त्व करेंगे या शिविर के पश्चात् अनुयाज की जिम्मेदारी सम्हालेंगे) की उपस्थिति में अन्तिम गोष्ठी सम्पन्न हो।
चुंकि यज्ञ और विदाई समारोह में ,, बाहर के अतिथि आ जाते है। तथा काफी भीड़ हो जाती है अतः छः दिनों तक जिनके बीच पारिवारिक सम्बन्ध रहा उन्हें प्रातः ही एकान्त वातावरण मिल पाता है। इसी भावनात्मक वातावरण में गोष्ठी हो। गोष्ठी एक घंटे की हो जिसमें प्रशिक्षक द्वारा अन्तिम विदाई संदेश दिया जाये। आयोजक अपने उद्गार व्यक्त करते हुए उन्हें समय- समय पर मार्गदर्शन देते रहने, सम्पर्क बनाए रखने व समस्याओं का हल करने का आश्वासन दें।)
उद्देश्य :-
१. शिविरार्थियों व उनके संकल्पों को भावनात्मक पोषण देना।
२. शिविर के अनुयाज की पृष्ठ भूमि तैयार करना।
३. आयोजक एवं शिविरार्थियों के बीच आत्मीय संबंध बनाना जिससे भविष्य में शिविरार्थी स्थानीय कार्यकर्ताओं की पकड़ में रहे।
४. आयोजकों को अपनी भावी जिम्मेदारी का एहसास हो।
विदाई संदेश
मित्रों, आज यह हमारी अंतिम बैठक है, आज विदाई के पश्चात् हम अपने- अपने घर वापस लौट जायेंगे। साथ रह जायेंगे अपना लक्ष्य संकल्प, यहाँ की यादें, ऋषि सत्ता का अविस्मरणीय स्नेह।
शांतिकुंज में गुरुदेव माताजी समय- समय पर ऐसे ही प्रशिक्षण सत्र में हम सबको बुलाते थे और विदाई के समय हमें पाथेय देते थे। पाथेय का अर्थ है- जब कहीं दूर यात्रा पर जाते है तो मार्ग में काम आने वाली आवश्यक साधन सामग्री एवं सावधानियाँ जिनकी समुचित व्यवस्था बना जी जाये तो आगे मार्ग तय करने में कोई कठिनाई नहीं आती। उनके स्नेह और संवेदना से भरा हुआ वही पाथेय आपके लिए भी है। इससे आगे का जीवन आसान बन जाएगा। वंदनीया माताजी का आश्वासन है बेटा हमारे डैने बहुत बड़े है। जैसे मुर्गी अपने अंडों को अपने डैनों के नीचे रखकर पकाती रहती है ऐसे ही हम तुम्हें संरक्षण देते रहेंगे। चाहे इस शरीर से रहे या न रहें।
वास्तव में इस शिविर में जो कुछ भी पाया, महसूस किया उसमें किसी व्यक्ति का नहीं, केवल गुरुसत्ता की प्रेरणा, उनकी कृपा का प्रभाव और परिणाम था। उनकी इच्छा एवं संरक्षण के बिना कुछ भी संभव नहीं हो पाता। अब आगे आपकी बारी है उसे निभाने का आगे क्या करना है?:-
१. पहली बात- जो आपने सीखा है उसे अपने जीवन में उतारना अभ्यास करना है। संकल्पित जीवन सामान्य मनुष्य को महामानव बना देता है। संकल्प में गजब की ताकत होती है। यह प्रकृति को, भगवान को अपने सामने झुकने को बाध्य कर देती है। (उदाहरणः नन्ही टिटहरी का समुद्र को सुखाकर अण्डे वापस लेने का संकल्प- फलस्वरूप ऋषि द्वारा सहयोग करना व सम्पूर्ण समुद्र को सुखा देना) परम पूज्य गुरुदेव कहते है कि- संकल्पों से मनुष्य महान् बनता है।
२. दूसरी बातः- जीवन में हमेशा पात्रता विकास करने का लक्ष्य लेकर
चलना। जो अपनी पात्रता बढ़ा लेता है उसके ऊपर शक्तिपात हो जाता है। सुपात्र
व्यक्ति को परिवार व समाज का सहयोग ही नहीं, सूक्ष्म अदृश्य चेतन सत्ता की
कृपा भी मिलती है। अदृश्य देवात्माएँ मुक्त आत्माएँ सुपात्रों को
संकल्पनिष्ठ मानवों को अपना अनुदान वरदान बरसाने, शक्ति देने के लिए
ढूँढ़ती रहती है।
जैसे- अतृप्त, दुष्ट आत्माएँ, दुष्ट
प्रकृति के दुर्जन लोंगो को अपना माध्यम बनाकर गलत कार्य करवाती है वैसे ही
महामानव, देवात्माएँ, श्रेष्ठ सद्भाव युक्त एवं सत्संकल्प मनुष्यों को
अपना माध्यम बनाकर समाज में श्रेष्ठ कार्य करवा लेती है। वे सुपात्रों की
परीक्षा भी लेते है और परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर उसे निहाल कर देते है।
परम पूज्य गुरुदेव की जीवन में, सारे महापुरुषों के जीवन में ऐसे ही
घटनाएँ घटी (उदाहरण- समर्थ गुरु रामदास द्वारा शिवाजी की परीक्षा लेना एवं
भवानी तलवार देना) आरुणी और विवेकानंद अपनी संपूर्ण बुद्धि से गुरु के
प्रिय शिष्य बन गए और निहाल हो गए। उनकी जुबान पर एक ही बात होती थी
करिष्ये वचनं तव आप जो कहेंगे हम वही करेंगे। आप कहिए, हम करने को तैयार है
बस। इसका परिणाम यह हुआ वे आज अमर हो गए।
३. आप लोगों ने बुराइयों को त्यागने का और श्रेष्ठ सद्गुणों की धारण करने का संकल्प लिया है। बहुत से लोगों ने बाल शाला संस्कार चलाने, व्यसन मुक्ति संदेश देने, योगशाला चलाने, अपने गाँव/मोहल्ले में साप्ताहिक मण्डल चलाने का भी संकल्प लिया है, इसके लिए आप बधाई के पात्र है। परंतु सावधान अभी तो आप ऊर्जा से भरे हुए है, लेकिन यहाँ से जाने के बाद यदि आप अपने संकल्पों को याद नही रखा अभ्यास में ढील दे दी, बाहर के वातावरण में अपने पुराने ढर्रे का चिंतन एवं दिनचर्या को अपने ऊपर हावी होने दिया, तो जो दुर्लभ चीजें यहाँ पायी है, उस पर पानी फिर जायेगा। ऊधम सिंह अपने संकल्पों को लेकर जिन्दा रहे। गांधी का संकल्प ही उनका जीवन था। आप भी अपने संकल्पों को याद रखियेगा।
संकल्पों को जीवन आसान भी है और कठिन भी। यदि आपने अपने संकल्पों को पूरा करने के लिए केवल अपने आत्मदेव से, विवेक से सलाह ली, महामानवों, महापुरुषों से प्रेरणा ली, उन्हें रोल मॉडल बनाया तब तो आप चुटकी में सफल हो जायेंगे। लेकिन यदि लोग क्या कहेंगे, आज नहीं फिर कभी बाद में करेंगे और दूसरे लोग तो कुछ नहीं कर रहे है, इस तरह की बातों और दूसरे अकर्मण्य आलसी लोगों को देखेंगे तो प्रमाद घेर लेगा। आप पर किया गया श्रम और ऋषिसत्ता का अनुदान व्यर्थ चला जायेगा। न भूलियेगा आपके जीवन का लक्ष्य है, महामानव बनना, देश समाज संस्कृति के काम आना इसके लिए पहिले इंसान बनना है।
यहाँ पर जो मंगलमय शुरुआत हो गई है वह आपके जीवन का टर्निंग प्वाइन्ट है। आप ऐसे ही जागे रहें। आप जलता हुआ दीपक बनकर जा रहे है, अपने प्रकाश से औरों को प्रकाशित करें।
४. यहाँ से जाने के बाद आपको कुछ समस्याएँ आएँगी। क्या समस्याएँ आएँगी? लोग उपहास उड़ायेंगे, आलोचना करेंगे, विरोध भी कर सकते है, आरंभ में सहयोग नही मिलेगा। लेकिन एक बार समझदारी पूर्वक सोच- विचार कर व्रत ले लिया ,, सो ले लिया। अब उसे ईमानदारी से पूरा करना उस पर चलते रहना हमारी जवाबदारी है। इस जिम्मेदारी को पूरा करना ही है। दूसरों के द्वारा अवरोध उत्पन्न किए जाने पर भी बहादुरी पूर्वक, धीरज से उसे पूरा करना है। फिर वही उपहास उड़ाने वाले आपकी स्तुति करेंगे और पीछे भी चलेंगे। इसलिए न डरना है, न ही पीछे हटना। विश्वास रखें समर्थ का संरक्षण हमारे साथ है। वंदनीया माताजी ने कहा है- बेटा आगे- आगे तुम्हें चलना पड़ेगा और तुम्हारी पीठ पर हाथ मैं रखूँगी। मैं इसी तरह तुम्हें छाती से लगाएँ रखूँगी, तुम्हें कोई भी अभाव नहीं व्यापेगा। यह आश्वासन जगत जननी मातृसत्ता का है किसी सामान्य मनुष्य का नहीं।
५. एक सावधानी; किसी व्यक्ति को नही देखना। कहीं पर यदि गायत्री परिवार के पीले कपड़े वालों में कोई त्रुटि दिख जाये तो उससे अपना मन खराब न करना, न ही हतोत्साहित होना। आखिर सभी के निर्माण की प्रक्रिया चल रही है। कोई २०प्रतिशत बना पाया है कोई ५०प्रतिशत पर पहुँचा है। गुरुदेव ने कहा है- बेटा हमें देखना, सिद्धांतों को देखना, मार्गदर्शन मिलता रहेगा। आप में से जो आज दीक्षा लेने वाले है उन्हें एडवान्स में बधाई। आप गुरु के रूप में साक्षात् ईश्वर से जुड़ने जा रहे है। आपको इसकी अनुभूति जुड़ जाने के बाद होगी। उनसे जुड़ा हुआ प्रत्येक व्यक्ति आज निहाल हो गया है हमारी गुरुसत्ता सामान्य नहीं है, विशिष्ट है। आप महाकाल के अंग अवयव बनने जा रहे है, इस जीवन में इससे बड़ा कोई सौभाग्य नहीं है।
आपके उड़ान भरने के लिए सामने आकाश की ऊँचाइयाँ है, बस केवल अपना लक्ष्य, संकल्प याद रहे। लगन व पुरुषार्थ के साथ आगे बढ़ते रहने का क्रम जारी रहे। भगवान करे आप हिमालय शिखर जैसा ऊँचा व्यक्तित्ववान बनें। सबके लिए बहुत- बहुत मंगलकामनाएँ।