व्यक्तित्व निर्माण युवा शिविर - 1

व्यक्तित्व निर्माण युवा शिविर आयोजन का उद्देश्य एवं लाभ

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          सर्वविदित है कि मिशन का सर्वोपरि लक्ष्य-‘मनुज देवता बने, बने यह धरती स्वर्ग समान’ है। इस हेतु हमारे तीन कार्यक्रम है— 1. व्यक्ति निर्माण 2. परिवार निर्माण 3. समाज निर्माण। जिस प्रकार एक शानदार व विशाल भवन का निर्माण मजबूत नींव पर ही सम्भव है, उसी प्रकार स्वर्गोपम सुसंस्कृत परिवार एवं सभ्य समाज की रचना केवल सुगढ़ सुसंस्कृत व्यक्तियों के नींव के आधार पर ही बन सकती है। जिसका व्यक्तित्व निर्माण हो जाता है वह जिस किसी भी क्षेत्र में, जिस पद पर भी जाता है अपने शानदार व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व से, सुन्दर आचार व्यवहार से अपने परिकर (समाज) को सुवासित करता रहता है। अत: ‘व्यक्ति निर्माण’ मिशन का आधारभूत व मौलिक कार्य है। इसी आधार पर सुखी व सभ्य परिवार तथा समाज बनाना सम्भव होगा। इसीलिए पूज्य गुरुदेव ने नारा दिया है— ‘युग निर्माण कैसे होगा-व्यक्ति के निर्माण से’।

    इसी उद्देश्य से, आज की युवा पीढ़ी को भटकाव से उबारने, उन्हें दिशा देकर स्वस्थ, संस्कारयुक्त, स्वावलम्बी, नशामुक्त बनने की प्रेरणा देने, राष्ट निर्माण में उनकी भूमिका से उन्हें परिचित कराने, युवा शक्ति को संगठित करने एवं युग निर्माण के कार्य में उन्हें नियोजित करने के लिए युवा शिविर का आयोजन किया जाता है। शिविर आयोजन के प्रमुख कारण व लाभ बिन्दुवार निम्नलिखित है—

1. युवापीढ़ी को सही दिशा देकर उन्हें युग निर्माण योजना मिशन के चिन्तन व लक्ष्य से जोडऩे के लिए।

2. युवा पीढ़ी को पाश्चात्य अपसंस्कृति को प्रभाव से बचाने, भारतीय संस्कृति के प्रति जागरूक करने एवं उसकी गौरव-गरिमा को युवाओं में पुन: प्रतिष्ठित करने हेतु।

3. युग निर्माण योजना हेतु युवा समूह व आन्दोलन समूह का निर्माण करने व युवाओं को उनकी प्रतिभा के अनुसार सातों आन्दोलनों से सम्बन्धित विविध गतिविधियों में नियोजित करने के लिए।

4. मिशन में पुराने परिजनों की ही संख्या अधिक है। उनकी संख्या भी धीरे-धीरे घटती जा रही है। अत: मिशन में नवीन युवा कार्यकर्ताओं को जोडऩे हेतु।

5. वर्तमान की नई पीढ़ी/युवा पीढ़ी को यज्ञ, हवन पूजा-पाठ जैसी धार्मिक गतिविधियों में रूचि बहुत कम हैं या नहीं है। उन्हें धार्मिक तरीके से नहीं बल्कि तार्किक व वैज्ञानिक तरीके से विचार क्रान्ति अभियान से जोड़ा जा सकता है। इस हेतु ‘व्यक्तित्व निर्माण युवा शिविर’ श्रेष्ठ उपाय है।

6. वर्तमान में (सन् 2000 के पश्चात्) मिशन का स्वरूप प्रचारात्मक नहीं मुख्यत: रचनात्मक है। युग निर्माण सात आन्दोलनों के क्रियान्वयन द्वारा ही पूर्ण होगा। सातों आन्दोलनों की विराट् गतिविधियों को सघन स्तर पर संचालित करने के लिए कार्यकर्ता  चाहिए। पुराने जिम्मेदार परिजन पहले से ही मिशन की अन्य जिम्मेदारियों में उलझे हुए है। अत: वे पुन: नये कार्यो को जिम्मेदारी लेकर निष्ठा पूर्वक पूर्ण नहीं कर पाते।

7. गायत्री परिवार से जुड़े पुराने वरिष्ठ परिजनों में एक वर्ग ऐसा भी है, जिनके परिवार के बालक या युवा सदस्य मिशन से नहीं जुड़ पाए हैं। उन्हें जोडऩे पर निश्चित ही परिवार का गौरव एवं प्रमाणिकता बढ़ जाती है। साथ ही मिशन को भी लाभ होगा अत ऐसे परिजनों के घर से युवाओं को शिविर के माध्यम से जोडऩे का प्रयास किया जाता है।

8. शिविर में युवाओं की रूचि के अनुरूप ही रोचक शैली में उनके शारीरिक, बौद्धिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक समग्र जीवन से प्रत्यक्षत: जुड़े होते हैं। अत: उनकी अनेक समस्याओं का समाधान भी निकलता है।

9. शिविर संपन्न होने के पश्चात् भावी कार्य योजना के अनुरूप युवा संगठित होकर न्यूनतम रूप से साधना, स्वाध्याय एवं कुछ सेवा आराधना के कार्यों में लग जाते हैं।

10. नए शिविरार्थियों (मिशन से अपरिचित) में से लगभग आधे शिविरार्थी बिना किसी दबाव के स्वत: स्फूर्ति होकर दीक्षा संस्कार करा लेते हैं वे भलीभांति समझ-बूझकर मिशन से स्थायी रूप से जुड़ते है।

11. अंतिम दिन पंचकुण्डीय यज्ञ होने के कारण, शिविर समापन होते-होते शिविरार्थियों का पर्याप्त आध्यात्मिक उपचार हो जाता है। इससे उनका केवल बौद्धिक ही नहीं, भावनात्मक परिष्कार भी सम्भव हो पाता है।

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