व्यक्तित्व निर्माण युवा शिविर - 2

युगऋषि का जीवन दर्शन

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    युग निर्माण योजना के सूत्रधार एवं गायत्री परिवार के संस्थापक युग ऋषि पं० श्रीराम शर्मा आचार्य जी का जन्म आगरा जिले के आँवलखेड़ा में दिनांक 20 सितम्बर 1911 को हुआ। पिता- विद्वान सदगृहस्थ पं० रूपकिशोर शर्मा माता- तपस्विनी दानकुँवरी। महामना मालवीय जी ने दीक्षा यज्ञोपवीत संस्कार कराया सन् 1926 हिमालय स्थित सूक्ष्म शरीर धारी ऋषिसत्ता स्वामी सर्वेश्वरानन्द से मार्गदर्शन प्राप्त। अखण्डदीप की साक्षी में कठोर जप-तप साधना। उन्होंने 24-24 लाख के 24 महापुश्चरण सम्पन्न किया। अनेक बार दुर्गम हिमालय जाकर ऋषि सत्ता से साक्षात्कार किया। युग ऋषि द्वारा किये गये कार्य सागर से भी विशाल है। यहाँ पर सिर्फ अत्यंत संक्षिप्त जानकारी ही दी जा रही है जो निम्रानुसार है-

जाति पाति का भेदभाव मिटाना-    उस समय पूरे देश भर में जाति-पाति का जबरदस्त बोल-बाला था। महात्मा गाँधी हरिजन उद्धार के नाम पर भरसक प्रयास किये पर सफल नहीं हो पाये थे। पूज्य आचार्य जी ने जाति के नहीं कर्म को प्रधानता दी एवं हरिजनों एवं अन्य छूत समझें जाने वर्गों को भी कर्म से ब्राह्मण बना दिया। उन्हें यज्ञोपवित धारण करवाया और पुरोहित बनाकर यज्ञ संचालन करवाया। पूज्य आचार्य जी का यह अत्यंत क्रांंतिकारी कदम था। पूज्य आचार्य जी स्वयं अपने ग्राम आँवलखेड़ा की छूत महिला छपको के घर जाकर बीमारी में उन्हें अपने हाथ से घाव साफ करते थे और सेवा करते थे। घर वालों के विरोध के बावजूद महिला के ठीक होते तक उनके घर जाते रहे।

नारियों को गायत्री का अधिकार-    हालाकि प्राचीन इतिहास में भारत में नारियाँ वेदपाठ करती थी, लेकिन मध्यकालीन युग में नारियों के प्रति अत्याचार ने वेदपाठ के लिये अयोग्य घोषित कर दिया। वर्तमान के बड़े-बड़े धर्मचार्यों ने भी इसका समर्थन किया। इस बीच पूज्य आचार्यजी ने नारियों को न सिर्फ गायत्री मंत्र की दीक्षा दी बल्कि उनका यज्ञोपवीत संस्कार कराया, उन्हें पुरोहित बनाकर यज्ञ संचालन करवाया और इस प्रकार तथाकथित धार्मिक नेताओं के कड़ा विरोध के बावजूद पूरे देश में ब्रह्मवादिनी बहनों की टोली निकली। यह एतिहासिक क्रांति पूज्य आचार्य ने किया, जो नारी जागरण के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ। फलस्वरूप आज देश भर में लाखों की संख्या महिलायें गायत्री मंत्र का जाप करती हैं।

स्वतंत्रता आन्दोलन में भागीदारी-    पूज्य आचार्य जी स्वतंत्रता आंदोलन मे भाग लेते हुए 4 बार जेल गये। जेल में मालवीय जी, स्वरूपा रानी नेहरू आदि का सानिध्य प्राप्त किया। एक बार टोली में पूज्य आचार्यजी झंडे लेकर सामने चल रहे थे, अंग्रजों नक डंडे बरसाये आचार्य जी जमीन में गिर गये लेकिन झंडे को मुह से दबा दिया उसे जमीन मे गिरने नहीं दिया, ऐसी थी उनकी देशभक्ति।
गाय को कटने से बचाया- गौ माता का प्रतिदिन पूजन करने वाले ब्राह्मण को यह कैसे सहन होता कि कोई कसाई गाय को कत्ल खाना ले जाये। ऐसे ही एक घटना में उन्होंने गायों को बचाकर उन्हें गौशाला पहुँचाये।

सांस्कृति क्रांति-    राजनैतिक क्रांति सफल रही, देश आजाद हो गया, लेकिन आचार्य जी जानते थे कि केवल राजनैतिक क्रांति से देश में रामराज्य नहीं आ सकता। इसीलिये उन्होंने देश के सांस्कृतिक पुनरूत्थान के लिये युग निर्माण योजना का शुभारंभ किये एवं इसके संचालन के लिये गायत्री परिवार रूपी विशाल संगठन का निर्माण किये जो आज विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक संगठन है।
युगनिर्माण का उद्देश्य- मनुष्य में देवत्व का उदय, एवं धरती में स्वर्ग का अवतरण है।

तीन निर्माण-

1.    व्यक्ति निर्माण- श्रेष्ठ चिंतन, चरित्र एवं व्यावहारिक व्यक्तित्व बनाना।
2.    परिवार निर्माण- श्रेष्ठ संस्कारों से सम्पन्न प्यार और सहकार भरे परिवार कार्य समूह बनाना।
3.    समाज निर्माण-  श्रेष्ठ व्यक्तियों एवं परिवारों के माध्यम से आदर्श सामाजिक व्यवस्था बनाना।

तीन उपलब्धियाँ- स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन एवं सभ्य समाज।
    उन्होंने सांस्कृतिक पुनरूत्थान के तहत सप्त ऋषियों की लुप्त हो चुकी विद्या को जनसामान्य के लिये पुन: प्रतिष्ठापित किया।

*  गायत्री महाविद्या को युगानुरूप प्रभावी स्वरूप देने के नाते उन्हें ‘‘युग के विश्वमित्र’’ कहते हैं।
*  सनातन अध्यात्म विज्ञान की धारा को पुन: प्रवाहित करने के नाते उन्हें युग भागीरथी कहा जाता है।
* युग व्यास के रूप में उन्होंने 4 वेद 108 उपनिषद्, प्रज्ञापुराण-प्रज्ञोपनिषद षड्दर्शन आदि के सहित विविध आर्षग्रंथो को युगानुरूप बोधगम्य बनाया।
* तप साधना की विशिष्टता तथा धर्म तंत्र एवं राजतंत्र में संतुलन बिठाने के लिये उन्हें युग वशिष्ट की संज्ञा दी गई।
* यज्ञ विज्ञान को सर्वोपयोगी बनाने के नाते उन्हें युग याज्ञवल्क्य भी कहा जाता है।
* उन्होंने बुद्ध परम्परा के धर्मचक्र प्रवर्तन के अनुरूप धर्मतंत्र से लोक शिक्षण एवं प्रवज्या की नयी विद्या प्रदान की।
* शंकराचार्य परम्परा के अन्तर्गत शंकराचार्य पीठों की तरह गायत्री शक्तिपीठों की स्थापना करके जन-जन में आध्यात्मिक चेतना जगाने का तंत्र विकसित किया।
* परशुराम परम्परा के अन्तर्गत ज्ञान कुठार से मस्तिष्कों में घुसी भ्रान्तियों का उच्छेदन करके सद्ज्ञान की स्थापना हेतु विचार क्रांति अभियान चलाया।
* इसी प्रकार चरक परम्परा के वनौषधि विज्ञान, चैतन्य परम्परा के अन्तर्गत संगीत से जन भावना का शोधन जैसे अनेक ऋषि परम्परा के प्रयोग को पुनर्जीवन प्रदान किया।

वेदमूर्ति- उन्होने सनातन ज्ञान को समय की आवश्यकता के अनुरूप जन सुलभ बनाया। मनुष्य एवं मनुष्यता के लिये चुनौती बनी समस्याओं के समाधान तथा विकास के मार्ग प्रशस्त करने के लिये प्रचुर मात्रा में उत्कृष्ट साहित्य की रचना की। गायत्री महाविज्ञान, प्रज्ञोपनिषद् सहित साधना विज्ञान वैज्ञानिक आध्यात्म जीवन जीने की कला, सत्प्रवृत्ति संवर्धन दुष्प्रवृत्ति उन्मूलन आदि विषयों पर हजारों पुस्तकें लिखी तथा उनके जन सुलभ संस्करणों के प्रकाशन की व्यवस्था की।

तपोनिष्ठ - उन्होने प्रचण्ड तप करके सूक्ष्मजगत से इतनी शक्ति अर्जित की जिससे लाखों-करोड़ों व्यक्तियों को पीड़ा एवं पतन सक मुक्ति दिला सके। संस्मरण इकट्ठा कियें जायें, तो महाभारत के कलेवर जैसा प्रंथ बन जाये। यही नहीं उन्होने तप शक्ति से सूक्ष्म प्रकृति में ऐसे अनुकूल प्रवाह पैदा किए कि गायत्री जैसी विशिष्ट साधना तथा यज्ञ जैसे विशिष्ट प्रयोग जन सुलभ बन सके, युग निर्माण के संसाधन विकसित हो सके।

आचार्य- वे सच्चे आचार्य रहे। उन्होने अध्यात्म विज्ञान की गरिमा को अपने आचरण से सिद्ध किया तथा टूटती जन आस्था को पुन: नवजीवन दिया।
 
  व्यसन मुक्ति रैली हेतु नारे

१. नशे को दूर भगाना है।
खुशहाली को लाना है।।
२. सोचो समझो बचो नशे से।
जीवन जीयो बड़े मजे से।।
३. बीड़ी पीकर खांस रहे हो।
मौत के आगे नाच रहे हो।।
४. पान, मसाला, जर्दा, गुटखा।
खाते ही कैंसर का खटका।।
५. गुटखा खाते गाल गलाते।
कैंसर एवं मौत बुलाते।।
६. छोड़ दो भाई छोड़ दो।   
दारू पीना छोड़ दो।।
७. नशा नाश की जड़ है भाई।
इसने ही सब आग लगाई।।
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