भविष्य के देव संस्कृति विश्वविद्यालय में वैज्ञानिक अध्यात्म के
भविष्य के अनेकों इन्द्रधनुषी रंग सुनने वालों के मनोआकाश में
उभर रहे थे। आज सांध्यकालीन
कक्षा थी। जिसका इन्तजार केवल उन्हीं को नहीं होता, जो इस
विश्वविद्यालय की विविध कक्षाओं में विभिन्न विषयों को पढ़ते हैं,
बल्कि उन्हें भी होता है जो इन्हें पढ़ाते हैं। विश्वविद्यालय के
कुलपति, कुलसचिव, संकायाध्यक्ष, अन्य अधिकारी एवं कर्मचारीगण सभी को इस विशेष कक्षा की प्रतीक्षा होती है। आज भी सांझ ढले मेस हॉल के ऊपर वाले दोनों हॉलों में लोग बैठ चुके थे। इस कक्षा में विश्वविद्यालय में अध्ययनरत एवं कार्यरत लोगों के अलावा शान्तिकुञ्ज एवं ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान के कार्यकर्त्ता
भी उत्साहपूर्वक पहुँचते हैं। क्षेत्रों से शान्तिकुञ्ज के
विभिन्न सत्रों में आए परिजन एवं अतिथि भी इस कक्षा में उपस्थित
होने के लिए आतुर रहते हैं। यही वजह है कि इस भारी उपस्थिति
के कारण न केवल ऊपर के दोनों हॉल भर जाते हैं, बल्कि बाहर के गलियारे में भी लोग खड़े और बैठे रहते हैं।
आज भी स्थिति कुछ ऐसी ही थी। विषय भी रोचक था। देवसंस्कृति
विश्वविद्यालय में वैज्ञानिक अध्यात्म के वर्तमान स्वरूप और इसकी
भविष्यत् योजनाओं पर प्रकाश डाला जाना था। पिछले कुछ समय पूर्व
विश्वविद्यालय में वैज्ञानिक अध्यात्म विभाग की विधिवत स्थापना हो चुकी है। प्रो. बी.पी.
शुक्ला इस विभाग के अध्यक्ष हैं। उन्हें सहयोग देने एवं विभाग
की सभी गतिविधियों के संयोजन एवं संचालन का दायित्व आध्यात्मिक अभिरूचि
की प्रखर प्रतिभाशाली युवा वैज्ञानिक शाम्भवी मिश्रा पर है। अभी
की स्थिति में वैज्ञानिक अध्यात्म विषय को प्रत्येक कक्षा के
प्रत्येक सेमेस्टर में विशेष एवं अनिवार्य प्रश्रपत्र
के रूप में जोड़ा गया है। यह प्रक्रिया उत्तरोत्तर विकसित क्रम
में है। प्रमाण पत्र पाठ्यक्रम के स्तर पर वैज्ञानिक अध्यात्म के
आधारभूत तत्त्व, पी.जी.
डिप्लोमा के प्रथम सेमेस्टर में वैज्ञानिक अध्यात्म के आधार,
इसके द्वितीय सेमेस्टर में वैज्ञानिक अध्यात्म के प्रयोग सम्मिलित
हैं।
स्नातक यानि कि बी.ए./बी.एस- सी.
की कक्षाओं के प्रथम सेमेस्टर में वैज्ञानिक अध्यात्म की
आधारभूत संरचना, द्वितीय सेमेस्टर में वैज्ञानिक अध्यात्म का
इतिहास, तृतीय सेमेस्टर में विश्व के विभिन्न धर्मों में वैज्ञानिक
अध्यात्म, चतुर्थ सेमेस्टर में आध्यात्मिक साधनाओं की वैज्ञानिक
प्रकृति, पंचम सेमेस्टर में वैज्ञानिक अध्यात्म के समसामयिक प्रारूप
(मॉडल्स) एवं षष्ठम् सेमेस्टर में जीवन प्रबन्धन में वैज्ञानिक अध्यात्म पढ़ाए जाने की व्यवस्था है। स्नातकोत्तर कक्षाओं यानि कि एम.ए./एम.एस-
सी के लिए यह क्रम अपेक्षाकृत अधिक विकसित है। इसके पहले
सेमेस्टर में वैज्ञानिक अध्यात्म का दर्शन, दूसरे सेमेस्टर में
विज्ञान एवं अध्यात्म में समान तत्त्व, तृतीय सेमेस्टर में
वैज्ञानिक अध्यात्म की अनुसन्धान विधियाँ एवं चतुर्थ सेमेस्टर में
पढ़ाया जाने वाला विशेष प्रश्र पत्र एम.ए. या एम.एस- सी विषय के अनुरूप निर्धारित किया गया है।
उदाहरण के लिए १. योग विज्ञान एवं समग्र स्वास्थ्य में वैज्ञानिक अध्यात्म के व्यावहारिक प्रयोग, २. व्यावहारिक योग एवं मानव उत्कर्ष में वैज्ञानिक अध्यात्म के व्यावहारिक प्रयोग, ३. नैदानिक मनोविज्ञान में वैज्ञानिक अध्यात्म के व्यावहारिक प्रयोग, ४. पत्रकारिता एवं जनसंचार में वैज्ञानिक अध्यात्म के व्यावहारिक प्रयोग एवं ५.
भारतीय संस्कृति एवं पर्यटन अध्ययन में वैज्ञानिक अध्यात्म के
व्यावहारिक प्रयोग। यह तो वर्तमान का ढाँचा है, जिसे वैज्ञानिक
अध्यात्म विभाग ने तैयार किया है। ऐसा कहते हुए कुलाधिपति ने
इसके पूर्व की पृष्ठभूमि बताई। किस तरह उनके माता- पिता समेत पूरा
परिवार दशकों से गुरुदेव से जुड़ा रहा है। उन्होंने यह भी बताया
कि अपने विद्यार्थी जीवन में जब कभी वह गुरुदेव से मिलने
मथुरा जाया करते थे तो उन्हें वैज्ञानिक अध्यात्म की भविष्यत्
योजनाओं के लिए तैयार करते थे। इसी क्रम में उन्होंने गुरुदेव के
कई अविस्मरणीय मर्मस्पर्शी संस्मरण सुनाए।
यह क्रम पता नहीं कब तक यूं ही चलता रहता, लेकिन तभी बी.एस- सी. की एक छात्रा ने पूछा- पापा जी! हम सबको वैज्ञानिक अध्यात्म के भविष्य के पाठ्यक्रमों के बारे में बताएँ। छात्रा के स्नेहपूर्ण प्रश्र से अन्तर्प्रज्ञा में स्वाभाविक ही उत्तर प्रतिध्वनित हुआ। यह विद्यार्थियों
का अपनत्व भरा स्नेह है कि वे सब अपने प्रिय कुलाधिपति को
पापा जी कहते हैं। उत्तर में उन्हें भी स्नेहशील अभिभावक का
स्नेह दिया जाता हे। उन पर जी- जान से हृदय की ममता लुटायी
जाती है। जहाँ तक वैज्ञानिक अध्यात्म की भविष्यत् योजनाओं की
बात है तो उन्हें बताया गया कि पूज्यवर के सूक्ष्म मार्गदर्शन
में वैज्ञानिक अध्यात्म विभाग इसके लिए जोर- शोर से तैयारियाँ कर
रहा है। कुछ महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं को केन्द्र में रखकर पी.जी.
डिप्लोमा एवं पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री के पाठ्यक्रम तैयार किए जा
रहे हैं। इनमें से पहला बिन्दु स्वास्थ्य पर आधारित है। इसमें
शारीरिक- मानसिक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य संरक्षण के दो आयाम हैं।
दूसरे बिन्दु का सम्बन्ध प्रबन्धन से है- इसमें संगठन, व्यवसाय एवं
अर्थ प्रबन्धन के क्षेत्र में वैज्ञानिक अध्यात्म के सिद्धान्त
एवं तकनीकों के उपयोग पर आधारित पाठ्यक्रम तैयार हो रहे हैं।
तीसरा बिन्दु व्यवहार विज्ञान से सम्बन्धित है, इसमें आध्यात्मिक
मनोवैज्ञानिक एवं मानव संसाधन विकास के क्षेत्र में वैज्ञानिक
अध्यात्म का उपयोग हो सके, इस पर पाठ्यक्रम तैयार किए जाने की
योजना है।
इसका अगला बिन्दु प्रतिभा विकास से सम्बन्धित है- इसमें
व्यक्तित्व परिष्कार, सुनिश्चित सफलता के लिए क्षमताओं का अर्जन,
व्यावसायिक एवं आध्यात्मिक कुशलताओं
के विकास के लिए उपयोगी पाठ्यक्रम तैयार किए जा रहे हैं।
वैज्ञानिक अध्यात्म की रीति- नीति से समाज विज्ञान एवं सामाजिक
कार्य के विषय में पाठ्यक्रम तैयार करने की योजना है।
वैज्ञानिक अध्यात्म का दायरा इन सभी क्षेत्रों के अलावा
आत्मविज्ञान एवं ब्रह्माण्ड विज्ञान तक व्यापक हो रहा है।
ब्रह्माण्ड विज्ञान भी बहुआयामी है। इनके लिए जो पाठ्यक्रम बनाए
जा रहे हैं, उन्हें केवल कक्षाओं में होने वाली प्राध्यापक,
विद्यार्थी की वार्ता तक सीमित नहीं रखा जाएगा। इनके लिए उच्च
तकनीकी क्षमता सम्पन्न प्रयोगशालाएँ स्थापित होंगी, जहाँ पर
वैज्ञानिक अध्यात्म सम्बन्धित बहुआयामी प्रयोग किए जा सकें।
विश्वविद्यालय में वैज्ञानिक अध्यात्म का अध्ययन- अनुसन्धान करने
वाले छात्र- छात्राएँ एवं उन्हें मार्गदर्शन देने वाले विशेषज्ञ
बाद में इनका निरन्तर विकास करते रहेंगे। इतना कहने के बाद वहाँ
उपस्थित सभी को खासतौर पर विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को श्रीमद्भगवद्गीता का एक शोकांश सुनाया गया-
मयैवैते निहताः पूर्वमेव, निमित्तमात्रं भव्य सव्यसाचिन्।
‘‘हे बायें हाथ से धनुष चलाने में प्रवीण अर्जुन! ये सभी शूरवीर पहले से ही मेरे द्वारा मारे हुए हैं, तू तो केवल निमित्त मात्र बन जा।’’
इसके बाद कक्षा में ध्यान का क्रम प्रारम्भ हुआ। इस श्लोक
के अनेकों अर्थ ध्यान में उभरते रहे। इस पुस्तक के लेखक के मन
में यही सत्य उभरा कि अब तक के जीवन में जो भी श्रेष्ठ हो
सका, वह सब युगऋषि परम पूज्य गुरुदेव के हाथों का यंत्र बनने,
स्वयं को उनका निमित्त बनाने से ही हुआ। महानता की डगर पर चलते
हुए अभी और मंजिले
तय करनी हैं। ध्यान के बाद सभी खुले आकाश में आए। आकाश में
तारों के दीप जल चुके थे। बाहर महाकाल के मन्दिर में दीपयज्ञ का
आयोजन था। सो वहाँ भी चहुँओर दीप जल रहे थे। यह सब देखकर सभी
को ऐसा लगा जैसे कि धरा और गगन में एक साथ वैज्ञानिक अध्यात्म
के अनगिन क्रान्ति दीप जगमगाने लगे हों।