व्यापारी समाज के हित के लिए व्यापार नही चलाता केवल अपने हित के लिए काम करता है और हर क्षेत्र में बेईमानी पैदा होती हुई चली जा रही है। खास तौर से खाद्य पदार्थों के संबंध में, जीवन मरण का प्रश्न है हम मसाले खरीदते हैं, लाल मिर्च खरीदते है गेरु मिला हुआ है, हल्दी खरीदते है पीली मिट्टी मिली हुई है। धनियां खरीदते है घोड़े की लीद मिली हुई है। जीरा खरीदते है जवारे किस्म का जो छिलका मिला होता है, हर चीज दवा पानी से लेकर कोई भी चीज सही मिल नही पाती, दूध सही मिल नही पाता, घी हमको सही मिल नही पाता, तेल हमको सही मिल नही पाता, अच्छा चावल और अच्छा गेहंू मिल नही पाता, खाद्य पदार्थ तक मिल नही पाते, हरी चीजों की बात क्या क ही जाय, और जो चीजें मिलती है वो घटिया किस्म की मिलती है। साबुन खरीद कर लाइये, उसकी नकल ही पैदा हो गयी, सनलाईट साबुन की नकल ले आई असली सनलाईट साबुन मिलती है १०० गुना नकली साबुन मिलता है। लाइफ ब्वाय साबुन ले आइये दुकानदार का इन्ट्रेस्ट इन बात में रहता है जहाँ से नकली चीजे मिले सस्ती चीजे मिले वहाँ से ले लें और ग्राहक को भेज दें ताकि वो मालदार जल्दी हो जाये, चाहे ग्राहक का कितना भी नुकसान क्यों न हो जाये। अब दुकान दार की बेईमानी पर अंकुश लगाना होगा। और इसका समाधान भी करना पड़ेगा अपनी खाद्य पदार्थों के लिए स्वावलम्बी भी होना पड़ेगा। ये कार्य गाँव के लोग एक सहकारी समितियाँ बनाये और सहकारी समितियों के माध्यम से इस तरह की व्यवस्था करें।
अच्छी और स्वस्थ वस्तुएँ गाँव वालों की देखभाल में, पंचायत की कमेटी में और अध्यक्षों के देखभाल में कमीटी देखभाल में बनाई जाये और एक ऐसा ईमानदार आदमी नियुक्त किया जाये जो अच्छी चीजे और सही चीजों अच्छी चीजों की गारंटी तो हुई, अच्छी चीजों की गारंटी तो हुई उसके मुस्किले दूर करने के लिए उनको रखने के लिए एक रास्ता तो खुला, जीवनोपयोगी वस्तुएं जो कभी ब्लेक में चली जाती है, कभी कहीं चली जाती है व्यापारी समय देकर चौगुनी दाम कर लेता है, कभी क्या कर देता है, कभी खराब चीजो को सस्ते दामों में बेच देता है। सारी के सारी मुसीबतों से दूर पाने के लिए, इससे छुटकारा पाने के लिए गॉव के कॉपरेटिव स्टोरों की आवश्यकता है, अगले दिनों व्यापार का विस्तार होने वाला है वह सहकारिता के माध्यम से होगा, समाजवाद आयेगा तो वह सहकारिता के माध्यम से आयेगा। सहकारिता की वृत्तियों को विकसित करने के लिए छोटे-छोटे कोआपरेटिव सोसायटियॉं, कोआपरेटिव स्टोर -समितियॉं हमको खोलनी चाहिए। इसके लिए गवर्नमेंट लोन देती है इससे पैसे की व्यवस्था और भी सरल हो जाती है। इन कामों को कराये जाना और भी सरल हो जाता है। हमको हर गॉव में कोआपरेटिव स्टोर खोलनी चाहिए। कोआपरेटिव व्यवस्था को बढ़ाने के लिए खाद्य पदाथों से प्रारंभ करके कपड़े तक, गाँव वालों की अन्य चीजों को पूरा करने के लिए सुई धागे से लेकर साबुन और तेल तक कोआपरेटिव स्टोर में जमा कर लेनी चाहिए फिर देखना चाहिए एक आदमी का खर्चा कितना निकलता है। हर आदमी को आवश्यकता आपूर्ति भी होती रहे, परस्पर सहयोग करने का माद्दा और परस्पर सहयोग करने की वृत्ति विकसित होती रहे। क्या ऐसी कोआपरेटिव आवश्यक नही है, हाँ ऐसी कोआपरेटिव स्टोरों की बड़ी आवश्यकता है। और वो सारी की सारी जगह जगह कोआपरेटिव सोसायटी खुलने लगे तो मजा आ जाये इसके इसी के साथ में एक और भी चीज सेवा की जुड़ जाती है, और वह है ग्रामोद्योग।