सेवा साधना

देव मंदिर पुस्तकालय

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        एक सेवा नं एक। सेवा नं २ जैसा कि अभी- अभी ज्ञान यज्ञ के अन्तर्गत कहा गया था, हमको एक देव मंदिर हर जगह स्थापित करना चाहिए। देव मंदिर वह नहीं है, जिसमें पत्थर की मूर्तियाँ रखी गई हैं, देव मंदिर वह है, जहाँ ज्ञान रखा हुआ है, ज्ञान जहाँ रखा हुआ है, असली भगवान का मंदिर उसी को कहते हैं। ज्ञान मंदिरों में, मंदिरों में यदि मुझसे पूछा जाय तो मैं एक ही तरह के मंदिर का सम्मान कर सकता हूँ, उसका नाम हो सकता है पुस्तकालय और पुस्तकालय भी वो, जहाँ श्रेष्ठ किस्म की पुस्तकें रखी गईं हों। दुनियाँ में संत, महात्माओं का एसेन्स निकाल कर, धर्म ग्रन्थों का एसेन्स निकालकर के, भगवान की विचारणाओं का एसेन्स निकालकर के, एक ही जिस लेबोरेट्री में रखा गया है, उसका नाम है पुस्तकालय। रवीन्द्रनाथ टैगोर अब नहीं हैं, और उनकी कविताओं का कवित्त हमारे लिए सुरक्षित नहीं है। मीरा बाई अब जीवित नहीं है, तो क्या उनके कविताओं का कवित्त हमारे लिए जीवित नहीं है, सूरदास से लेकर तुलसीदास तक और रैदास से लेकर कबीर दास जी तक, और सुकरात से लेकर अफलातून तक, ईसामसीह से लेकर अमुक तक महामानव इस विश्व में हुए हैं, जिन्होंने विश्वमानव के लिए अनेक अनुदान दिये हैं, एक से एक बढ़िया ज्ञान दिया। उन सारे के सारे ज्ञानों को एक जगह शीशी में रख करके जिस जगह पर रखा उस देव मंदिर का नाम है पुस्तकालय, पुस्तकालय मानव जाति के लिए सबसे बड़ी सेवा है।   
     
  दूसरा पुस्तकालय से बड़ा मंदिर हो ही नहीं सकता कहीं, क्योंकि उसके अंदर जीवित ज्ञान रखा हुआ है। और ज्ञान, ज्ञान मानव जाति के लिए सबसे बड़ी संपदा है। ज्ञान जिस जगह पर रखा हुआ है, उस जगह पर सारे की सारे ऋषि बैठे हुए है। महात्मा बैठे हुए हैं। रात को २ बजे जरूरत पड़ती है हमको तो पुस्तकालय खोल लेते है, किताब खोल लेते हैं। किताब लेकर पढ़ना लिखना शुरू देते हैं और हम रवीन्द्रनाथ टैगोर से सत्संग कर रहे हैं।  और मरे हुए महात्मा गाँधी से रात को १ बजे सत्संग करना हो चार घंटे करना हो तो उनकी पुस्तक खोल लीजिए और महात्मा गांधी जी से ऐसे ठीक १ बजे बात शुरू कर दीजिए और चार घंटे जारी रखिये।  

        ये सत्संग की आवश्यकता सब पुस्तकालय पूरी कर सकते हैं और कोई पूरी नहीं कर सकता। इसीलिए आवश्यकता इस बात की थी कि ये अभागा देश जिसकी बौद्धिक गुत्थियाँ बुरी तरह से पूरी तरह से उलझी हुई पड़ी हैं उनके गाँव- गाँव घर- घर, मोहल्ले- मोहल्ले पुस्तकालय स्थापित कर दी जायें और पुस्तकालय स्थापित करने के लिए और पैसे की जरूरत हो तो संकलन किया जाय। और पैसा की जरूरत न हो तो कम से कम अपना शारीरिक श्रम, घर घर जाया जाय जैसे कि चल पुस्तकालय के बारे में बताया गया था। पुस्तकालय अगर कोई स्थापित करें। उसकी महत्ता लोगों को समझाये जाये ऐसी गाय जैसे कि दूध के बारे में कहा गया था। गाय के दूध का महत्त्व पहले समझाना पड़ेगा। तब गाय की रक्षा होगी। इसी प्रकार से ज्ञान का महत्त्व और ज्ञान की उपयोगिता लोगों को समझानी पड़ेगी तब उसको लोग पसंद करेंगे। ये काम करने के लिए पुस्तकालय स्थापित किये जाये और ऐसे आदमी उस पर नियुक्त किये जायें जो लोगों में आकर्षण पैदा करें। जबरदस्ती थोपे। रुचि पैदा करें। ऐसे पुस्तकालय अगर स्थापित करना हर देश को, राष्ट्र को उठाने के लिए महती आवश्यकता है। इसके पश्चात् सेवा के माध्यमों में क्या- क्या आते। व्यायाम शालाओं की बहुत आवश्यकता है।   
       
हमारे गाँव- गाँव घर- घर, मोहल्ले- मोहल्ले में आदमी काहिल होता चला जाता है। कमजोर होता चला जाता है। आलसी होता चला जाता है। अब तो घरों में बाथरूम कम्बाइन्ड होने लग गये हैं। आदमी को हिम्मत या दम नहीं कि घर में से कमरे में से उठे पूजा करता है उसके बाहर भी पेशाब कर लेता है। पेशाब भी उसी चारपाई में करना चाहता है। इतना आलसी हो गया है। इतना शरीर ढीला हो गया कि आलस्य आदमी के शरीर के अन्दर बना रहा तो थोड़े ही दिनों में आदमी को रोटी चबाने के लिए, रोटी खाने की मशीनें लगाना पड़ेगी रोटी चबी- चबाई पेट में डालनी पड़ेगी। टट्टी करने के लिए मशीन लगानी पड़ेगी, आदमी चारपाई पर पड़ा- पड़ा टट्टी कर लिया करे। आदमी कैसा ढीठ और आलसी होता चला जा रहा है। इस आलसी आदमी को परिश्रमी और उद्योगी बनाने के लिए व्यामशालाओं की खेलकूद की बात को फिर से जागृत करना पड़ेगा। कीर्तिवान आदमी को बनाना पड़ेगा और मजबूत आदमी बनाना पड़ेगा। इसके लिए ये कार्य का शिक्षण करने के लिए जिन संस्थाओं की आवश्यकता है, उन संस्थाओं का नाम व्यायामशाला नहीं हो सकता क्या? हाँ हो सकता है।
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