युगऋषि और उनकी योजना

त्रिविध क्रान्तियाँ

<<   |   <   | |   >   |   >>
        युगऋषि का कथन है कि इस बार सामान्य क्रांति नहीं, व्यापक महाक्रान्ति की जानी है। अब तक भारत और विश्व में जो क्रांतियाँ हुई हैं, वे किसी एक क्षेत्र या एक देश के लिए तथा सीमित उद्देश्य के लिए हुई हैं। अब चूँकि विज्ञान और तकनीकी विकास ने विश्व के सुदूर भूभागों को भी पड़ोसी- परिवार जैसा निकट ला दिया है, इसलिए अब क्रांति भी क्षेत्रीय- एकदेशीय न होकर भूमण्डलीय (ग्लोबल) ही होगी। इसी प्रकार अब तक की क्रांतियों के लक्ष्य भी सीमित रहे हैं, जैसे किसी क्षेत्र विशेष की राजनैतिक स्वतंत्रता, शिक्षा क्रांति, हरित क्रांति आदि। अब समाज में व्याप्त सभी दोषों को हटाने तथा स्वर्गीय परिस्थितियों को साकार करने का लक्ष्य है, इसलिए क्रांति एकांगी नहीं, सर्वांगीण ही होगी। अस्तु, इस बार की सामाजिक क्रांति महाक्रान्ति ही होगी।

        युगऋषि ने जिस प्रकार समाज निर्माण को व्यक्ति निर्माण एवं परिवार निर्माण के ठोस आधारों पर खड़ा करने की बात कही है, उसी प्रकार सामाजिक क्रांति को भी बौद्धिक क्रांति (विचार क्रांति) एवं नैतिक क्रांति के आधारों पर ही आगे बढ़ाने की अनिवार्यता समझाई है।

बौद्धिक क्रांति :-

        मनुष्य का शरीर विचारों से संचालित दिव्य यंत्र है। विचार के अनुरूप ही संकल्पों, चेष्टाओं और कार्यों का स्वरूप बनता- बिगड़ता रहता है। गहराई से अध्ययन करने पर यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि मनुष्य का विचार करने का तरीका बहुत गड़बड़ा गया है। जितने भी प्रदूषण बढ़े हैं, वे मनुष्य के प्रदूषित विचारों की ही उपज हैं। इसलिए सामाजिक क्रांति को सफल बनाने के लिए विचार क्रांति करनी होगी। लोगों ने अध्यात्म विज्ञान, धर्म विज्ञान, समाज विज्ञान के प्रतिकूल संकीर्णता, स्वार्थपरता, हृदयहीनता, को पोषण देने वाली परिभाषाएँ, नीतियाँ गढ़ ली हैं। चिकित्सा विज्ञान एवं स्वास्थ्य की मर्यादाओं को दरकिनार करके तमाम नशे, व्यसन, फैशन अपना लिए हैं। उन सबको निरस्त करने वाले प्रखर विचारों को विस्तार देकर मनुष्य को जीवन की श्रेष्ठ  परिभाषाओं के प्रति आस्थावान् बनाना होगा। इसके लिए साहित्य, सत्संग, संगीत, कला, मीडिया सभी का सहारा लेना होगा।

नैतिक क्रांति:-

        देखा गया है कि यदि परिभाषाएँ सही गढ़ भी ली जायें और लोगों को तर्क द्वारा उनके लिए सहमत भी कर लिया जाय, तो भी बात बनती नहीं। सरकारी तथा गैर सरकारी समाज सेवी संगठनों द्वारा अनेक अच्छी योजनाएँ विशेषज्ञों द्वारा बनवा ली जाती हैं। उनके लिए पर्याप्त संसाधन भी खड़े कर लिये जाते हैं। संबंधित व्यक्तियों को उद्देश्य और नियम समझा भी दिये जाते हैं। उनसे शपथ भी उठवा ली जाती है, किन्तु उनके अंदर उच्च आदर्शों, सिद्धान्तों को अपनाकर चलने योग्य नैतिक बल नहीं होता, इसलिए वे कुछ कदम चलकर ही फिसल कर गिर जाते हैं या थक कर बैठ जाते हैं।

        इसलिए जहाँ जीवन में आदर्शनिष्ठ परिभाषाओं को समझने- समझाने, स्थान देने के लिए विचार क्रांति की जरूरत है, वहीं उन श्रेष्ठ परिभाषाओं, नियमों, सिद्धांतों को लेकर अविचलित क्रम से बढ़ते रहने योग्य नैतिक बल जगाने के लिए नैतिक क्रांति भी जरूरी है। मनुष्यों के चिंतन, चरित्र और व्यवहार में मनुष्योचित नैतिकता का समावेश करने की आवश्यकता है।

सामाजिक क्रांति:-

        समाज के विभिन्न वर्गों, विभिन्न क्षेत्रों की आवश्यकता के अनुरूप दुष्प्रवृत्ति उन्मूलन, सत्प्रवृत्ति संवर्धन के लिए तमाम क्रांतिकारी आंदोलन चलाने होंगे। उनके लिए समाज के पास व्यक्ति एवं शक्ति- संसाधनों की कमी नहीं है, किन्तु विचार क्रांति के अभाव में वे लक्ष्य निर्धारित नहीं कर पाते तथा नैतिक क्रांति के अभाव में वे लक्ष्य की ओर अडिग भाव, अथक पुरुषार्थ के साथ बढ़ नहीं पाते। इसलिए जैसे- जैसे विचार क्रांति और नैतिक क्रांतियों का स्तर बढ़ता जायेगा, वैसे- वैसे अनेक प्रकार की सामाजिक क्रांतियों का मार्ग प्रशस्त होता जायेगा और हर क्षेत्र एवं हर वर्ग की आवश्यकता के अनुरूप सामाजिक क्रांतिकारी आन्दोलनों की झड़ी लग जायेगी। चिर प्रतीक्षित ईश्वरीय योजना के अनुरूप महाक्रांति गतिशील हो उठेगी।
<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118